नज़ूल की ज़मीन पर सारा शहर बना रखा है Alfaaz shayari,

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नज़ूल की ज़मीन पर सारा शहर बना रखा है Alfaaz shayari,
नज़ूल की ज़मीन पर सारा शहर बना रखा है Alfaaz shayari,

नज़ूल की ज़मीन पर सारा शहर बना रखा है Alfaaz shayari,

नज़ूल की ज़मीन पर सारा शहर बना रखा है ,

फिर फुटपाथ के बासिंदों को क्यों आसमान की चादर उढा रखा है ।

 

आसमानी परिंदे शिकारों पर नज़र रखते हैं ,

गुज़र करने दो उन्हें जो सुनहरे पिंजरों में बसर करते हैं ।

 

शहर भर की लौ में बुझे बुझे क्यों हैं ,

पलकों की ओट में फिर चराग जले जले क्यों है ।

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तूफानी आँधियों से परिंदों के हौसले तौले नहीं जाते ,

परों के ज़ोर पर सुनामी हाँफ जाते हैं ।

 

गर्म साँसों का तलफ़्फ़ुज़ कैसा ,

नरम लहज़े से ही जज़्बात बहक जाते हैं ।

 

यहां ज़िंदा को काँधे नशीब होते नहीं ,

बाद ए मौत का जतन कौन करे ।

 

उसको रुख़्सत नज़र की दे देते ,

गोया मामला ए दिल में दखलंदाज़ी मुनासिब ही नहीं ।

 

हुश्न वाले तो क़त्ल करते हैं ,

आह शब् भर मरे या चाँद जल के ख़ाक हो जाए ।

 

यादों के झरोखों से कोई चाँद निकल आया है ,

फिर आसमान को पलकों तले तकिये में दबाया है ।

 

चाँद के पार भी जहान हो शायद ,

आ मेरे साथ सारे आसमान की तफरी कर लें ।

 

एक तेरा जहान मुक़म्मल शायद ,

चाँद तारों के आगे मेरा आसमान होगा ।

 

हर रात ज़हर लगता है ,

क्या तेरे वतन का चाँद भी क़हर लगता है ।

 

दीदा ए माहताब के बाद हर ख़ास ओ आम ,

बस एक आखिरी जाम की प्यास रखता है ।

 

शहर भर में चाँदनी क्यों है ,

या मेरे आसमान का चाँद सरे आम हुआ ।

 

चाँद फलक से हलक में आके बैठा है ,

वो कहते हैं गोया तल्ख़ नज़रों से न इश्क़ की बात करो ।

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लोग मुर्दों को क़फ़न देते नहीं ,

गोया मैं हर रोज़ रिश्तों को दफ़न करता हूँ ।

 

सहेजती हैं जतन से पत्ते दिन भर वो बुढ़िया पीपल के तले ,

अबकी बार दिवाली में उसके घर में भी उजाला होगा ।

pix taken by google