फिर हुश्न के कुनबे में जाके अटका है फ़राज़ romantic shayari,

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फिर हुश्न के कुनबे में जाके अटका है फ़राज़ romantic shayari,
फिर हुश्न के कुनबे में जाके अटका है फ़राज़ romantic shayari,

फिर हुश्न के कुनबे में जाके अटका है फ़राज़ romantic shayari,

फिर हुश्न के कुनबे में जाके अटका है फ़राज़ ,

पहले दुआ सलाम फिर गुफ़्तगूग़ज़ल में रातें बर्बाद करेगा ।

 

राह ऐ मुफ़लिश में चाँदनी की चमकती चम् चम् ,

रोशनी के मुलाज़िमो ने समझा नगीनाकोहिनूर मिल गया ।

 

लाख मिलते हैं बेज़बान बुतों की मुख़ालफ़त वाले ,

गोया कोई ऐसा नहीं मिलता जो रूहों की तारीफ़ करे ।

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ये उम्र ऐ दराज़ उसपर इश्क़ ऐ जूनून ,

दिल टूटे न टूटे मुनीर हड्डियाँ ज़रूर टूटेंगी ।

 

ग़फ़लतबाज़ी में दिल मुनीर है अपना ,

कहाँ का जामा किसके साफ़े में जाके लाद दिया ।

 

ज़िन्दगी की हर रात में गर जश्न होता,

बात इतनी न तन्हा उदास सी होती ।

 

बदन में टूटती अकड़न ,

चमकती बिजलियाँ फिर भी ज़हन के कोने कोने में घुप अंधियारी छाई है ।

 

वो लिख के निकल गए तहरीरदस्तकारी में ग़ज़ल ,

मैं ज़िन्दगी के लतीफों से नज़्म बीनता रहा ।

 

न वो अब राम रहे न मथुरा काशी ,

जिह्वया में धर्म की शहद रखकर घूमते फिरते हैं रक्त पिपासी

 

अब तो बदन पर भी सिलवटें दिखती हैं ,

गुज़रे वक़्त की दास्तान कह रही हो जैसे ।

 

फ़िज़ाओं में संदली खुश्बू ,

तेरा कुंदन बदन मैं ख़्यालों में तरास लेता हूँ ।

 

ख़्वाब जलते हैं गुलपोश नगीने की जुम्बिश से ,

तू किसी ठौर ठिकाने में नज़र भर के ठहर ।

 

गुमसुम से चेहरे पर थिरकते लफ्ज़ की लाली ,

ज़बान के बाद की भी एक दास्तान कहते हैं ।

 

तू सुन सकता है तो मेरे साँसों की सरगम को सुन ,

तेरे आने से मेरी धड़कनों का क़ाफ़िला बहुत तेज़ चलता है ।

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दो कदम का फासला था कोई ,

मंज़िल पे लाके मुफ़लिश का साथ छोड़ दिया ।

 

एक सी क़दक़ाठी एक सी दुआओं की ताबीज़ पहनते हैं ,

बस मज़हबी तस्बीह में अल्लाह तो कोई राम जपते हैं ।

 

गर मादर ऐ वतन की ख़ाक में न मिले जिस्म तो वजू क्या है ,

सब्ज़ बागों में मिले खिज़ा के गुल तो फिर लहू क्या है ।

pix taken by google