हर्फ़ दर हर्फ़ ज़हन को कागजों में उरेख रखा है urdu shayari in hindi,

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2005
हर्फ़ दर हर्फ़ ज़हन को कागजों में उरेख रखा है urdu shayari in hindi,
हर्फ़ दर हर्फ़ ज़हन को कागजों में उरेख रखा है urdu shayari in hindi,

हर्फ़ दर हर्फ़ ज़हन को कागजों में उरेख रखा है urdu shayari hindi ,

हर्फ़ दर हर्फ़ ज़हन को कागजों में उरेख रखा है ,

ज़िल्द से कोई क़िताब ए दिल का खरीदार नहीं ।

 

वो बुतों पर इतिहास बनाने की बात करता है ,

मैं हर ज़बान पर तहरीर ए मोहब्बत लिखना चाहता हूँ ।

 

मीलों मील फैले नदी के दो पाट पर तैरती कुछ तितलियाँ ,

कुछ को मंज़िल ज्ञात है कुछ मृत्यु से अज्ञात हैं ।

 

वो जो नदियों को गुनगुनाते थे ,

आज भी साहिलों के सुर ताल से अनभिज्ञ हैं ।

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बेबाक ताक लेती है निश्छल निर्मल नदी,

बिना नज़रों के मन झाँक लेती है ।

 

वो पर्वतों को तोड़ झरनों में उतर जाती है ,

आ गयी जो वेग में भूल छमा शीलता प्रलय में बदल जाती है ।

 

कुछ तबीयत भी नासाज़ रहा करती है ,

कुछ दिल का साद ओ ग़म से वास्ता भी नहीं पड़ता ।

 

लिखेगे कभी फुर्सत में हाल ए दिल अपना ,

अभी नींद में कुछ सपनो के मोती पिरोने दो ।

 

अभी तो बैठो की शाम ढलने दो ,

अभी तो सिन्दूरी आसमान पर घटा बनके छाई है ।

 

रात का जश्न चलेगा चलने दो ,

दिल को टुकड़ों में आज जलने दो ।

 

हम दिल के टुकड़ों को हाँथ में लेकर ,

शब् ए माहताब आहें भरते रहे ।

 

हुश्न की तारीफ़ करना भी कोई काम है ,

जो समझते हैं बेरोज़गार हमें उन्हें ही बस काम काजी रहने दो ।

 

सुकून ए रूह का इंतज़ाम नहीं होता ,

गोया जब तक ज़माने में इश्क़ बदनाम नहीं होता ।

 

क़र्ज़ उतरे तो सुकून मिल जाए ,

क़ब्र तक बोझ तेरे नाम का उठाया नहीं जाता ।

 

मर गए लैला मजनू और सीरी फ़रहाद मरे ,

न मिला सुकून ए रूह मोहब्बत को ज़माने भर की बर्बादियों के बाद ।

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थमते नहीं किस्से महफ़िल ए रानाईयों के शहर में रात देर तलक ,

वीरानियों में भी शहनाईयाँ गूँजती रहती हैं ।

 

देर रात तक चलता है शेर ओ शायरी का दौर ,

दौर ए मुफ्लिशी में भी शहर बेफिक्र कभी होता नहीं ।

pix taken by google