जंगल में मौत का साया: एक भयानक पिशाच की कहानी
जंगल में एक खुशनुमा दिन शहर की भाग-दौड़ से दूर, पाँच दोस्त, अर्जुन, कबीर, रोहन, प्रिया और ईशा, जंगल में पिकनिक मनाने आए थे। चारों तरफ़ हरियाली और ताज़ी हवा थी। नदी के किनारे उन्होंने अपना सामान रखा और हँसते-हँसते खाना खाने लगे। ”यार, ऐसा लग रहा है जैसे किसी और दुनिया में आ गए हैं,” प्रिया ने अपनी आँखें बंद करके कहा। अर्जुन ने जवाब दिया, “हाँ, यहाँ कोई फ़ोन नहीं, कोई शोर नहीं। सिर्फ़ शांति है।” वे सब हँसे और नदी में तैरने लगे। शाम होने लगी थी, और सूरज ढल रहा था। तभी, एक अजीब-सी ख़ामोशी छा गई। हवा में एक हल्की, मीठी गंध महसूस हुई, जो किसी ताज़े खून की तरह थी। रोहन ने अचानक अपनी पुरानी किताब बंद कर दी। उसका चेहरा पीला पड़ गया था। “यह क्या है? यहाँ कुछ अजीब लिखा है… यह जगह शापित है।” कबीर ने मज़ाक उड़ाया, “अरे, तू हमेशा डरावनी बातें क्यों करता है?” ”नहीं, यह कोई मज़ाक नहीं है।” रोहन ने काँपते हुए कहा, “किताब में लिखा है कि इस जगह पर एक भयानक पिशाच रहता है, जो अँधेरे में शिकार करता है। उसकी रूह प्यासी है, और वह तब तक चैन से नहीं बैठता जब तक उसे ताज़ा खून न मिले।”
रोहन ने काँपते हुए कहा, “प्लीज, मुझे और डराओ मत!” तभी, एक तेज़ आवाज़ के साथ, पेड़ों से कुछ उनके पास ज़मीन पर गिरा। यह देखकर वे सब डर गए। यह एक जानवर का कटा हुआ सिर था, जिसके शरीर से खून टपक रहा था और आँखें खुली हुई थीं। ईशा चीख़ पड़ी, “यह… यह क्या है?” कबीर ने फुसफुसाते हुए कहा, “हमें यहीं रुकना होगा। वहाँ जाकर देखते हैं कि क्या है।” वे सब झाड़ियों की तरफ़ दबे पाँव बढ़े। पेड़ों के पीछे छिपकर उन्होंने देखा कि एक विशाल नरपिशाच (आधा इंसान, आधा पिशाच) एक जानवर के बचे हुए माँस को बड़ी बेरहमी से नोच-नोचकर खा रहा था। उसके मुँह से खून टपक रहा था, और उसकी आँखें अँधेरे में चमक रही थीं। उसके दाँत इतने नुकीले थे कि वह हड्डियों को भी चबा रहा था। यह देखकर उनकी रूह काँप उठी। ”यार… यह… यह तो…,” ईशा ने डर से काँपते हुए कहा। प्रिया की आँखों में आँसू थे। “यह बहुत भयानक है।” तभी, नरपिशाच ने अपना सिर उठाया और उसकी नुकीली आँखें सीधे उनकी ओर देखने लगीं।
“भागो, जल्दी!” कबीर ने चीखकर कहा। वे सब अपनी जान बचाने के लिए जंगल में इधर-उधर भागने लगे। नरपिशाच
एक चीते की रफ़्तार से उनका पीछा कर रहा था। उसकी भयानक गुर्राहट जंगल में गूँज रही थी, और हर गुर्राहट के साथ उनके दिल की धड़कन और भी तेज़ हो रही थी। अर्जुन ने पीछे मुड़कर देखा, नरपिशाच कुछ ही दूरी पर था, उसकी लाल आँखें अँधेरे में चमक रही थीं। ”यह हमें छोड़ नहीं रहा है!” प्रिया ने डर से कहा। तभी, रोहन को एक पुरानी, टूटी-फूटी हवेली दिखाई दी। “शायद हमें वहाँ पनाह लेनी चाहिए,” उसने कहा।
“हवेली की तरफ़ भागो!” अर्जुन ने चिल्लाया। वे सब अपनी पूरी ताक़त से हवेली की तरफ़ दौड़ पड़े। उनके पीछे, नरपिशाच की भयानक गुर्राहट और उसके दौड़ने की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी। वे दरवाज़े के पास पहुँचे, लेकिन नरपिशाच उनसे कुछ ही कदम दूर था। जैसे ही कबीर दरवाज़े के अंदर जाने लगा, नरपिशाच ने उसे दबोच लिया। उसकी चीख़ हवा में गूँज उठी, “नहीं…!” अर्जुन, प्रिया और ईशा ने किसी तरह हवेली के अंदर छिपकर दरवाज़ा बंद कर लिया। वे डर से काँप रहे थे। हवेली के अंदर का माहौल बहुत भयानक था। दीवारों पर जाले लगे थे, और हवा में एक अजीब-सी सड़ी हुई गंध थी। बाहर से नरपिशाच के गुस्से भरी गुर्राहट की आवाज़ आ रही थी, “तुम लोग बच नहीं पाओगे! मैं तुम्हें ढूँढ लूँगा!”
“कबीर! कबीर!” प्रिया ने चिल्लाकर दरवाज़े पर मुक्का मारा। बाहर सन्नाटा छा गया था। नरपिशाच की गुर्राहट रुक चुकी थी। उन्हें लगा कि शायद वे अब बच गए हैं। ”शायद… शायद वह चला गया है,” ईशा ने हिचकिचाते हुए कहा। अचानक, उन्हें हवेली के एक कोने से कुछ फुसफुसाने की आवाज़ सुनाई दी। वहाँ एक और जोड़ा, राहुल और स्नेहा, भी छिपे हुए थे। वे दोनों भी जंगल में खो गए थे। राहुल ने अपनी उँगली अपने होठों पर रखकर उन्हें शांत रहने का इशारा किया। अँधेरे में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। अर्जुन ने अपने पॉकेट से लाइटर निकाला और उसे जलाया। जैसे ही हल्की सी रौशनी फैली, उसकी नज़रें ठीक सामने पड़े एक बड़े, पुराने सोफे़ पर पड़ीं। सोफ़े पर एक बहुत ही भयानक और विशाल आकृति बैठी हुई थी। यह मुख्य पिशाच था। उसकी त्वचा सूखी हुई और दरारों से भरी थी, जैसे सदियों से सोई हुई हो। उसकी आँखें पूरी तरह से काली थीं और उनमें कोई पुतली नहीं थी। उसके नुकीले दाँत उसके होंठों से बाहर निकले हुए थे, और उसकी पंजे में ख़तरनाक नुकीले नाखून वाली उंगलियां थी । उसने धीरे-धीरे अपनी गर्दन उठाई और उन सब को देखा। एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। फिर, पिशाच के मुँह से एक भयानक हँसी निकली, “मैं तुम लोगों का ही इंतज़ार कर रहा था!” उसने अपनी उँगली उठाई और स्नेहा को हवा में उठा लिया। वह चीख़ पड़ी, “राहुल!” पिशाच ने उसे अपने पंजों से दबोच लिया। राहुल अपनी प्रेमिका को बचाने के लिए दौड़ा, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कर पाता, पिशाच ने स्नेहा के शरीर को दो टुकड़ों में फाड़ दिया। उसके खून से पूरा कमरा भर गया। राहुल की आँखों के सामने उसकी प्रेमिका की मौत हो गई।
स्नेहा की चीख़ से पूरी हवेली गूँज उठी। उसका कटा हुआ शरीर ज़मीन पर गिरा और खून की बदबू हवा में फैल गई।
राहुल सदमे में अपनी प्रेमिका को देख रहा था। अर्जुन, प्रिया, और ईशा की रूह काँप रही थी। दोहरी मौत का खेल तभी, बाहर से एक भयानक आवाज़ आई। दरवाज़ा ज़ोरदार आवाज़ के साथ टूट गया और नरपिशाच हवेली के अंदर घुस आया। उसकी आँखें लाल थीं और वह अपने नुकीले दाँट दिखा रहा था। ”अब कोई नहीं बचेगा!” नरपिशाच गुर्राया। दोनों पिशाचों ने मिलकर उन पर हमला कर दिया। मुख्य पिशाच ने अपनी लंबी, नुकीली उँगलियों से राहुल की गर्दन पकड़ ली। राहुल छटपटाने लगा, पर पिशाच की पकड़ इतनी मज़बूत थी कि वह साँस भी नहीं ले पा रहा था। एक ही झटके में पिशाच ने उसकी गर्दन मरोड़ दी, और राहुल का शरीर ज़मीन पर गिर गया। अर्जुन, प्रिया और ईशा भागने की कोशिश करने लगे, लेकिन नरपिशाच उनके रास्ते में आ गया। उसने प्रिया को ज़मीन पर गिरा दिया और उसके शरीर पर चढ़ गया। प्रिया चीख़ रही थी, “अर्जुन! बचाओ!” अर्जुन ने हिम्मत करके एक टूटी हुई लकड़ी उठाई और नरपिशाच के सिर पर मार दी। नरपिशाच को चोट तो नहीं लगी, पर वह थोड़ी देर के लिए रुका। ”भागो!” अर्जुन ने प्रिया से कहा। प्रिया भागने लगी, लेकिन मुख्य पिशाच ने उसका रास्ता रोक लिया। उसके भयानक पंजे प्रिया की तरफ़ बढ़ रहे थे। ईशा ने एक जलती हुई मोमबत्ती उठाई और पिशाच पर फेंक दी, लेकिन पिशाच ने उसे पकड़ लिया। ”आग मुझे जला नहीं सकती,” उसने हँसते हुए कहा।
अर्जुन ने मोमबत्ती को अपने पास खींच लिया और चिल्लाया, “भागो प्रिया, जल्दी!” खून का खेल और अंतिम साँसें प्रिया ने भागने की कोशिश की, लेकिन नरपिशाच ने उसे पकड़ लिया। उसके नुकीले पंजे प्रिया के शरीर में धँस गए। प्रिया की एक दर्दनाक चीख़ निकली और उसका शरीर वहीं बेजान हो गया। अब सिर्फ़ अर्जुन और ईशा बचे थे। मुख्य पिशाच ने ईशा को देखा और अपनी काली आँखों से हँसने लगा, “अब तुम्हारी बारी है।” ईशा ने हिम्मत करके पास पड़ी एक टूटी हुई मेज उठाई और पिशाच पर फेंकी। मेज पिशाच से टकराई और चूर-चूर हो गई। पिशाच ने ईशा को हवा में उठा लिया और उसकी गर्दन को अपने नुकीले दाँतों से काट दिया। अब सिर्फ़ अर्जुन अकेला था। उसने अपनी आँखों के सामने अपने सारे दोस्तों को मरते हुए देखा था। उसका दिल टूट चुका था, लेकिन उसके मन में सिर्फ़ एक ही बात थी: बदला। अर्जुन ने उस पुरानी किताब को देखा, जो ज़मीन पर पड़ी थी। उसे याद आया कि रोहन ने कहा था कि पिशाच को सिर्फ़ एक मंत्र से कमज़ोर किया जा सकता है। वह किताब की ओर भागा। पिशाच ने उसे देखा और बोला, “यह किताब तुम्हें बचा नहीं सकती।” एक भयानक अंत पिशाच तेज़ी से अर्जुन की तरफ़ बढ़ा। अर्जुन ने जल्दी से किताब के पन्ने पलटे और मंत्र पढ़ने लगा। जैसे ही उसने पहला शब्द पढ़ा, पिशाच के शरीर से धुआँ निकलने लगा और वह दर्द से चीख़ने लगा, “नहीं…!” अर्जुन ने मंत्र पढ़ते हुए पिशाच को एक जलती हुई मोमबत्ती दिखाई। पिशाच की चमड़ी जलने लगी, और वह कमज़ोर होने लगा। अर्जुन ने इस मौक़े का फ़ायदा उठाया और उस पर एक टूटी हुई लकड़ी से वार किया। पिशाच ज़मीन पर गिर गया और उसकी आँखें जलने लगीं। उसने दर्द से चिल्लाते हुए कहा, “तुम… तुम मुझे नहीं… मार सकते…!” लेकिन अर्जुन ने उसे जवाब नहीं दिया। उसने अपनी पूरी ताक़त से पिशाच के शरीर पर एक गहरा घाव किया। पिशाच की एक भयानक चीख़ निकली और उसका शरीर राख बन गया। उसके करिंदे भी हवा में गायब हो गए। सुबह होते ही, अर्जुन घायल और थका हुआ था, पर वह ज़िंदा था। उसने एक-दूसरे को गले लगाया और जंगल से बाहर निकलने का फ़ैसला किया। उस दिन के बाद, उसने कभी भी जंगल में अकेले जाने की ग़लती नहीं की।
writer and pix by ai