ग़ालिब की ग़ज़ल और जश्न ए मीर तक़ी मीर love shayari ,
ग़ालिब की ग़ज़ल और जश्न ए मीर तक़ी मीर ,
महफ़िल में आके पूछते है शायर है यहाँ कौन ।
जिसको हो ऐतबार ए इश्क़ अब भी मुड़ने का चलन आज़माये ,
हमको तो बेशक्ल के साये से भी डर लगता है ।
सब्ज़ बागों को नज़रों में सजा रखा है ,
रंग ए खूँ के शहर को अख़बार से मिटाओगे कैसे ।
कुछ ख़ुमार ए इश्क़ क़लम पर था सनम ,
कुछ स्याही ने भी ज़ौक़ ए आशिक़ी फ़रमाई ।
ज़रूरी नहीं हाल ए दिल को हर्फ़ ए पयाम बनाया जाये ,
गोया कुछ लफ़्ज़ों को अश्क़ों में भी बहाया जाए ।
मैं लफ्ज़ दर लफ्ज़ तुझे सुनता हूँ ,
तू शब् ए बज़्म जो गीत गुनगुनाता है हमदम ।
रेत् के घरोंदों का टूटना जाएज़ है ,
हम तुम भी रूठ जाएँ बात वाज़िब तो नहीं ।
सिर्फ आँखों में अज़ाब रखते तो बात और थी ,
गोया तुम तो दिल में क़त्ल का सामान तैयार किये रखते हो ।
शहर ए बर्बादियों के बाद आमिर ,
कोई मुफ़लिश भी घर बनाता है ।
किसके दर से उठे किस पर इल्तेज़ा ए नज़र रखते ,
सब तो मेरे अपने थे आमिर किसका मुब्तला करते ।
दिल ए नासाद के आगे सियासत और होती है ,
दिल ए बर्बाद के आगे हमेशा मुस्कुराउँगा ये मैंने सोच रखा है ।
हमें मोहब्बत नशीब हो न हो ,
तुझे दो दो घरोंदों का कारोबार मिले ।
जाम सब लुढ़के पड़े हैं मैखाने वाले ,
अब तेरी नज़रों से तौबा करेगे पैमाने वाले ।
शाही क़लम का सियासी फरमान ,
ढाई घर आगे बढ़ता है उलट पलट के वार करता है ।
लाटसहबी निकल गयी शाही क़लम के दम पर ,
अबहूँ झूरै ठकुरसुहाती बची है ।
बिन पिये भी बहक जाते हैं ,
महफ़िल ए ग़ालिब का नशा ही कुछ ऐसा है ।
कुछ तो मौसम ए मिजाज़ आशिक़ाना है ,
कुछ उनकी नज़रों की बेहयाई है ।
pix taken by google ,