दिलों से ख़ुमार ए इश्क़ कब उतरता है romantic shayari,

0
790
दिलों से ख़ुमार ए इश्क़ कब उतरता है romantic shayari,
दिलों से ख़ुमार ए इश्क़ कब उतरता है romantic shayari,

दिलों से ख़ुमार ए इश्क़ कब उतरता है romantic shayari,

दिलों से ख़ुमार ए इश्क़ कब उतरता है ,

महफ़िल ए रानाई में भी दिल को साद ओ ग़म की तलाश रहती है ।

 

सुर्खरू हैं तेरी यादें रंग ओ बू भी मद्धम है ,

जश्न ए रानाई का भरी महफ़िल में दिल कब तलबग़ार नज़र आता है ।

 

सँवर रही हैं हर्फ़ दर हर्फ़ ग़ज़लें कितनी ,

जाने किन महफ़िल ए रानाईओं को बढाएगी ।

 

फ़िज़ा में फैली जश्न ए रानाई के बाद ख़ामोशी ,

हँसते दिलों को ज़ार ज़ार किया करती है ।

 

दुनिया में अपना है कौन जिसके ख़ातिर जश्न ए रानाई तरास करते ,

ग़म न करते तो साद ए दिल को सरीक ए महफ़िल तलाश करते

literature poetry 

दो वक़्त की रोटी और आँखों में शर्म बना के रख ,

ज़र ज़ोरू और ज़मीन के ख़ातिर क्या ज़मीर बेंच खायेगा ।

 

ये हसीं वाकिया होकर के गुज़र गया ,

हम ठगे खड़े रहे हुश्न ए क़ाफ़िला निकल गया ।

 

शहर भर में गर्द ए ख़ाक सही , घुप अंधेरों में ग़र सुराख़ नहीं ,

जज़्बा ए अमन लबरेज़ जहां रानाई दिल ए महफ़िल में नामुमकिन ही नहीं ।

 

हाल ए दिल लफ्ज़ दर लफ्ज़ सफहों में उतार लेता हूँ ,

शेर ओ शायरी की ख़ातिर साज़ ओ सामान बाँध लेता हूँ ।

 

साद ए दिल जश्न ए रानाई में न खो जाएँ कहीं ,

शाम ए बज़्म तेरी यादों के घर उधार लेता हूँ ।

 

क़ैद ए बामुशक़्क़त में हैं नज़रें इज़्ज़त लगा के दाँव ,

विसाल ए यार की ख़ातिर ही रतजगा कर ले ।

 

चंद सफ़हों की लिखाई और दिन रात पसीना ,

गोया मुफ्लिशी में है ग़ालिब माझी बिन है सफ़ीना

 

नाक़ाम ए इश्क़ और दर ओ दीवार पर सर पीटते रहना ,

नीक सूख लौट आने में ही भलाई है ।

love shayari

दरियाओं के दरीचे पर कुछ सफ़ीने सूखे खड़े हैं ,

इश्क़ की लहरों पर समंदर के कितने कड़े पहरे हैं ।

 

नक़ाब के पीछे की सिलवटें ,

रुख़ पर गुज़रे वक़्त की तहरीरें कहती हैं ।

pix taken by google