माँ बाप की खुरागी भी अखर जाती है one line thoughts on life in hindi,

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माँ बाप की खुरागी भी अखर जाती है one line thoughts on life in hindi,
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माँ बाप की खुरागी भी अखर जाती है one line thoughts on life in hindi,

माँ बाप की खुरागी भी अखर जाती है ,

जब बीवी शाम की चाय के साथ बुढापे की उलाहना भी खिलाती है ।

 

परवरिश की थी जो बुढापे का सहारा बनेगा ,

ज़मीन का बंटवारा हुआ साथ साथ किसी को माँ की किसी को बाप की ज़िम्मेदारी मिली ।

dard shayari 

घर की दीवार टूटी दिलों में दरारें पड़ गयीं ,

रिश्तों का बन्दर बाँट हुआ तहज़ीबी मिल्कियतें कंगाल हुईं

 

कौन मिलता है किसके मरने पर ,

हर रिश्ता ज़मीन के साथ चला जाता है

 

जब ज़ीस्त का जिस्म से रिश्ता था जबीन तक ,

कौन मरने के बाद के खुदाओं का ऐतबार करे ।

 

ताउम्र निबह जाए ज़रूरी तो नहीं ,

वक़्त की फेर बदल रिश्तों पर भी हावी है

 

मौसमो की तर्ज़ पर बदलते हैं रिश्ते ,

तर्क़ ओ ताल्लुक़ है वही जेबें जहाँ भारी है ।

 

रोज़ रिश्तों से तौबा करता हूँ ,

दिल रोज़ नए तर्क़ ओ ताल्लुक़ तरास लेता है

 

टूटता है बदन अपनों का जिस्म ढोते ढोते ,

अब और किससे तर्क़ ओ ताल्लुक़ का वादा रखें

 

उम्रें गुज़ार दीं जिनके कूचे में ,

सुना है अब पूछ लेते हैं गैरों से हाल ए मुक़ाम अपना

 

जो नज़र तेरे फलक से ज़मीन तक की ख़बर रखती है ,

वो तेरा अपना होगा कोई ग़ैर तो नहीं ।

 

आज फिर तन्हाइयों में टकरा गया हवा का झोंका सा कोई ,

यूँ लगता है उससे दिलों का रिश्ता है कोई ।

 

बड़ी ख़ामोशी से बयान होती है ये अंदाज़ ए गुफ़्तगू ,

जिन रिश्तों के तार दिलों से जुड़ा करते हैं ।

 

कोटि कोटि अनंत सहस्त्र बाहुबल ,

दिग दिगंबर पीताम्बर वरण कमल नयन श्वेताम्बर ।

 

आज फ़िज़ाओं में बगावत सी नज़र आती है ,

कल तक ज़र्रा ज़र्रा वादी ए गुल का हिमायती हुआ करता था ।

urdu shayari 

दिन के चार प्रहर हर नज़र में ,

मल्लिका ए हुश्न का नज़ारा गज़ब का होता है

 

कौन जाने पतंगों की फ़ितरत में क्या था ,

एक एक करके सभी शमा में सिमटते गए ।

pix taken by google