reservation in india advantages and disadvantages,

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बड़े दुर्भाग्य की बात है की आज़ादी के इतने सालों बाद भी हम जाती पाँति धर्म मज़हब क्षेत्रीयता के नाम पर लड़ रहे हैं ,

और सियासी हुकुमरान सिंहासन पर बैठकर मज़ा ले रहे हैं, उन्हें पता है उसके वोटर्स की औक़ात चन्द खनकते सिक्के

और शराब की बोतल , अगर इतने में भी बात नहीं बानी तो ५% का आरक्षण , बस इससे ज़्यादा न हिन्दुस्तान का

नागरिक सोच सकता है और नहीं नेता चाहते हैं की आप इससे आगे की सोचें उन्हें तो गुलाम चाहिए जो उनके हर हुकुम

को मन की बात समझकर चुप चाप रेडियो में कान लगाकर सुनता रहे , और अपनी आँखों से कभी अंधभक्ति की पट्टी

हटने ही न दे , दोस्तों कभी आपने सुना है की इस शहर की हस्पताल व्यवस्था खराब है , उसे सुधारने के लिए कभी कोई

आंदोलन या धरना प्रदर्शन हुआ हो या कोई ऐसा स्कूल है जहां गरीब आम जनता के बच्चे पढ़ते हों , वहाँ की शिक्षा

व्यवस्था को सुधारने के लिए धरना प्रदर्शन हुआ हो नहीं सुना न , मैंने भी अपने ३८ साल की उम्र में कभी नहीं सुना ,

हमने सिर्फ यही सुना है हिन्दू मुसलमान लड़ाओ , द्रविड़ आर्यन लड़ाओ , दलित सामान्य लड़ाओ , नार्थ इंडियन साउथ

इंडियन लड़ाओ और सत्ता हथियाओ , ये महज़ सियासी हथकंडे हैं जो जिस हद तक सोच सकता है सियासी उसकी

 

औक़ात के हिसाब से दांव खेल देते हैं , आज हमारे देश में विश्व के सबसे ज़्यादा ह्रदय रोगी हैं हार्ट अटैक से मरने वालों

की संख्या विश्व में सबसे ज़्यादा है , ये एक गंभीर बीमारी है , जिसका इलाज़ सिर्फ बड़े शहरों में और महज हस्पतालों में

होता है जिसका इलाज करवाना सबके बस की बात नहीं है , नेताओं का क्या है ज़ुकाम हुआ तो एम्स में भर्ती हो गए

मरता तो आम इंसान है इन सरकारी हस्पतालों में , लेकिन बोलता कोई नहीं है क्यों की सोच तो ५% के रिजर्वेशन वाले

लॉलीपॉप पर जो जाके अटक गयी है , हस्पताल हर शहर में हैं मगर न तो ढंग के डॉक्टर हैं न सुवधाएं लेकिन इन बातों

में कभी किसी का ध्यान नहीं गया , सरकार शिक्षा के लिए कितना कुछ खर्च करती है मगर उसका रिजल्ट सिर्फ प्राइवेट

स्कूल्ज में देखने को मिलता है सरकारी स्कूल सिर्फ खानापूर्ति बनकर रह गए हैं , सरकार तो हमसे टैक्स लेने में कोई

कसर नहीं छोड़ती फिर हम अपना हक़ क्यों नहीं मांग पाते , क्यों की नेताओं को पता है इनकी औक़ात कितने रूपये की

है ये कितना सोच सकते हैं , जहां थोड़ा बहुत धुंआ उठता भी है तो बिकाऊ मीडिया मुद्दा ही बदल देती है ,रही बात

आरक्षण की अगर दलित और पिछड़ा वर्ग के बच्चे जो कितने भी गरीब हों , अगर सरकार उनकी पढ़ाई पर ध्यान देगी ,

तो आज नहीं तो कल दलित भी पूरे आत्मसम्मान के साथ सबके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल सकेगा बसर्ते सोच

आगे की रखे तभी संभव है , वरना आरक्षण का लाभ भी हर वर्ग का वही तबका उठा रहा है जो पहले से साधन संपन्न है

 

, जिसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए वो वर्ग आज भी आरक्षण से वंचित है , क्या आज़ादी के बाद देश में भिक्षावृत्ति

बंद हुयी नहीं बंद हुयी , बल्कि भिखारियों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ी है , क्या आज हमारा ये फ़र्ज़ नहीं बनता

हम भिखारियों के लिए आंदोलन करें , जो वाक़ई ज़रुरत मंद है उसके हक़ की लड़ाई लडें , हक़ की लड़ाई से तात्पर्य

हिंसात्मक आंदोलन से कदापि नहीं रहा , गाँधी जी के सिद्धांतों का पालन करना , बिना हथियार उठाये उन्होंने देश

आज़ाद करा दिया , बिना एक गोली चलाये कोई कुछ भी कहे मगर सत्य तो सत्य ही होता है , ऐसे बहुत से छोट छोट

टॉपिक हैं जिनके लिए सब एक साथ सरकार से अपनी मांगे रख सकते हैं , उसे सरकार को पूरा करना होगा किन्तु उसके

लिए हमे स्वार्थ त्यागकर परमार्थ पर भी विचार करना होगा , हमारे साथ सबसे बड़ी चीज़ पता है क्या है हम कभी साथ

बैठकर किसी बात पर चर्चा नहीं करते नहीं है , समाज का कोई एक नेता बना लेते हैं और उस काठ के उल्लू के पीछे

दुमछल्ले बने भागते हैं , ऊपर के लेबल में तो सब साथ बैठकर जाम से जाम भिड़ाते हैं और बेवकूफ बनता है नीचे का

तपका , कभी सुना फलाने नेता के नेतृत्व में को धरना प्रदर्शन ऐसा बहुत कम ही होता है , वो ऐसे कामो के लिए अपने

सियासी गुर्गों को लगा देते हैं , जो की आपका ब्रेन वाश इस तरीके से करेंगे की आपको लगेगा की बस ये ही अपना

हिमायती है और सारी दुनिया दुश्मन , मैं ये बात पहले भी बता चूका हूँ की इनका टारगेट सिर्फ मंदबुद्धि वाले होते हैं

जिन्हे ये आसानी से बरगला सकें और , और ये बेचारे नासमझ नादान लोग इन नेतृत्व कर्ताओं के बहकावे में आकर खुद

की जान खतरे में डाल देते हैं ।

 

जय हिन्द जय भारत ।

पकोड़ा तले और पैसे कमाएं ,

pix taken by google