गरीबों के लिए कभी कोई सरकार नहीं बनती dosti shayari,

0
1139
गरीबों के लिए कभी कोई सरकार नहीं बनती dosti shayari,
गरीबों के लिए कभी कोई सरकार नहीं बनती dosti shayari,

गरीबों के लिए कभी कोई सरकार नहीं बनती dosti shayari,

गरीबों के लिए कभी कोई सरकार नहीं बनती ,

जाने कैसी कैसी खुशफ़हमी लोग पाल रखे हैं ।

 

कुछ परिंदे जिनका पुराने दरख़्तों पर बसेरा था ,

वो शहर की गलियों में अब आब ओ दाना तलाश करते हैं ।

 

तुम क़तरा क़तरा मेरे लफ़्ज़ों में जान भरो ,

हम गीली स्याही से ज़माने को जला जायेंगे ।

 

सड़कें तो चौड़ी हो गयी हैं मेरे शहर की ,

साद ए दिल को अब कहीं महफ़िल नहीं मिलती तो कहीं मंज़िल नहीं मिलती ।

 

वो मुझसे मेरी हाज़िर जवाबी माँगता है ,

गोया जुदा होता तो क्या हर लम्स बनकर धड़कता सीने में

 funny political poems,

परिंदों को परिंदे जीने नहीं देते ,

शहर ए रौनक में क्या ख़ाक ए मुजस्सिमो को पाल रखा है ।

 

शायरों की महफिलें सजती हैं सेहर का इंतज़ार किये बगैर ,

बदस्तूर हर वार दिल पर लेते हैं क़हर की परवाह किये बग़ैर ।

 

लड़खड़ाते लफ़्ज़ों को सम्हाल लेते हैं ,

तेरे तसब्वुर के बाद मेरे लब तक आते आते पैमाने ।

 

बत्तियाँ बुझा दो अब तो जश्न ख़त्म ,

ये रोशनी चुभती ही नहीं शहर ए दामन को ज़ार ज़ार करती है ।

 

दिल ए फाख्ता पे नज़र रखते हैं ,

हम तो टुकड़ों में बसर करते हैं ।

love shayari , 

सर पर खुर्सीद ए हिज़ाब यूँ सरे आम खुर्रम मिजाज़ी ,

ख़ानुम की ख़ुतबाबाजी ही समझी जाएगी ।

 

मैं मीलों चल भी दूँ पैदल तो क्या खुर्सीद का वारिश हूँ ,

शहर के हर गली कूचे में अँधेरा घर जमाया है

 

सर पर जो शेर ओ शायरी का शबाब चढ़ता है ,

क्या शब् ए माहताब तुझ पर भी ख़ुमार रहता है ।

 

वो कहते हैं सारी रात जाग के इश्क़ का माहौल बनाइये ,

अब है ख़ुमार ए इश्क़ तो कह रहे हैं गोया बत्तियाँ बुझाइए

 

मैं नदी का समतल धरातल मन गगन की डोर संग ,

ओर से उस छोर तक स्तब्ध साहिल चूमती कल कल लहर

pix taken by google