टपक न जाए कहीं ये शबनमी नूर चू करके love shayari, 

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टपक न जाए कहीं ये शबनमी नूर चू करके love shayari, 
टपक न जाए कहीं ये शबनमी नूर चू करके love shayari, 

टपक न जाए कहीं ये शबनमी नूर चू करके love shayari,

टपक न जाए कहीं ये शबनमी नूर चू करके ,

एहतियात बरत जमाल ए यार ज़रा छू करके ।

 

चेहरा हम भी तो देखें ज़ीनत ए क़रीना का ,

सज़दे में जिनके शहर भर के लोग कसीदे सुबह ओ शाम पढ़ते हैं ।

 

लहरों पर तैरते खाली ज़ाम खाली पैमाने ,

बेख़बर समुन्दर क्या जाने वो भी इनमे डूब सकता है ।

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जो खुद कभी एक घूँट भी पीता नहीं ,

बिन पिए कैसे सारा सैलाब पी गया होगा ।

 

दिन भर बीनता हूँ रात के टूटे टुकड़े ,

चाँद जाने किसके लिए ज़मीन पर बिखरता है

 

दिलों के टूटने का जाम से रिस्ता ,

आँख छलकने से पहले पैमाना छलक जाता है

 

जाम से ही अगर बुझती प्यास ,

लोग मैकदों में ही मक़बरा बनवा लेते

 

मैकशी में भी इबादत होती है ,

शराब में लोग आँसू भी मिलाकर के पी जाते हैं ।

 

जब आना बेनक़ाब होकर के आना मिलने ,

चेहरों पर चेहरे वाले दोस्तों पर हमें ऐतबार नहीं ।

 

काँच का बना नाज़ुक सा है फिर भी ,

जाम टूटे हुए दिलों का बहुत सहारा है

 

तुम कैसे चेहरा बदल लेते हो पल दो पल में ,

हमसे एक नक़ाब सँवारा नहीं जाता

 

जितने चेहरे हो सामने कर दे ,

आज तेरा हिसाब करने बैठा हूँ

 

रात चेहरा तरासता है ,

दिन की तलास खत्म नहीं होती ।

 

यूँ तो मिलते हैं हज़ारों चेहरे सड़क पर ,

जो फ़िर से दिल में उतर जाए वो बात नहीं मिलती ।

 

आशिक़ों के जनाज़े क्या निकले खुली सड़कों पर ,

खुदा आसमानों से आँसू बहाने लगे ।

 

हूबहू तेरा चेहरा मेरी तरह दिखता है ,

तू भी हर रोज़ आईना बदलता रहता है

 

कभी तू कबीर लगता है कभी तू रहीम लगता है ,

बाब ए सुख़नवर से तू बहता समीर लगता है ।

 

चेहरा ए आफ़ताबी को नज़र करते वक़्त ,

कुछ आगाज़ ए सुख़न हर रोज़ झुलसे हैं

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दुश्मनों की बस्ती में कुछ चेहरे अपनों से होंगे ,

हर शक़्स शहर ए मुंसिफ हो ज़रूरी तो नहीं ।

pix taken by google