तारीफ़ ए हुश्न किसको मंज़ूर नहीं होती love shayari,

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तारीफ़ ए हुश्न किसको मंज़ूर नहीं होती love shayari,
तारीफ़ ए हुश्न किसको मंज़ूर नहीं होती love shayari,

तारीफ़ ए हुश्न किसको मंज़ूर नहीं होती love shayari,

तारीफ़ ए हुश्न किसको मंज़ूर नहीं होती ,

बस ये अंदाज़ ए गुफ़्तगू होठों से क़बूल नहीं होती ।

 

एक मुश्त थी मोहब्बत सारी ,

फिर तमाम उम्रें दाख़िल खारिज़ में ज़ाया हुईं ।

 

अगर दर्द ए दिल का ही रोना था प्यारे ,

न करते बदनाम मोहब्बत को हमें अपने दिल से ही दफ़ा कर देते ।

 

आफत ए सेहरा दिल ने सजाया तो कई बार ,

मगर जान ए दुश्मन की बर्बादियों से हर बार सहम जाता हूँ ।

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साल दर साल इज़ाफ़ारंग ओ बू ए गुल ,

सहीद ए आज़म की चिताओं के फूल हैं कोई नाज़ुक कली तो नहीं ।

 

कहाँ से पाता कागज़ी फूल ये लाली ,

वतन की सब्ज़ फसलों को रंग ए खून से सींचा था ।

 

एक दुल्हन जो डोली चढ़ गयी होती ,

अभी एक और दुल्हन है आज़ादी की जिसका सिंगार बाकी है ।

 

मैं इंसान हूँ फ़रिश्ता तो नहीं ,

तेरी शान ए बज़्म में ऐ मेरे हिंदुस्तान फ़रिश्ते भी सर झुकाते हैं ।

 

तेरे मेरे दरमियाँ भी कई पर्दे हैं ,

पर्दा उठ न सके तो पर्दों में ही इश्क़ के रंग भर दो ।

 

बंद कमरे में महक जाता है ,

वो दबे पाँव चिलमन के ओट से मुझे तकते रहना ।

 

जलते सरारों से न पूछो तिश्नगी क्या है ,

रात के दामन से निकल कर जाने किसका दिल जलायेगी ।

 

जिन निगाहों की निगेहबानी में वतन महफूज़ रहते हैं ,

वो भी होते हैं चश्म ओ चराग घर के किसी की नज़रों के नूर होते हैं।

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कुछ एक किस्से थे अपने राज़ ए दिल की सल्तनत के भी ,

कैसे ढल गया शकील इस रात की सेहर किये बगैर ।

 

तमाम उम्रें दराज़ में रख कर ,

हम शब् ए महताब शकील होने चले ।

 

मेरी बर्बाद मोहब्बत के नज़ारे थे माह ए रु ,

मैं बर्बाद जिया ताउम्र नशेमन में बस अँधेरा ही रहा ।

 

जो थे हमसे बीसियों जमात आगे ,

जाने इश्क़ ए दरिया में कैसे डूब के मर गए ।

pix taken by google