बहकते जज़्बातों से हालात फिसल जाते हैं love shayari,
बहकते जज़्बातों से हालात फिसल जाते हैं ,
तक़दीर के अंगूर कभी कभी लंगूर निगल जाते हैं ।
लहू के क़तरा से औक़ात की बात न कर ,
एक चिंगारी भी समंदर को राख़ बना देती है ।
रात का तन्हा सफर और मंज़िलों की फ़िराक ,
सुर्ख सफक दिन के उजालों में कदम न लड़खड़ा जाएँ कहीं ।
जहां जलते हैं छाले रेत् की तपती ज़मीनो पर ,
मीलों चल के पैदल माँ बीहड़ों से पानी खींच लाती है ।
मोहल्ले बड़े बड़े लोगों के दिल छोटे होते गए ,
पहले गलियों में खेलते थे बच्चे अब घर के गलियारों में मौका ढूढ़ लेते हैं ।
खिंच गयी सरहदों पर सरहद्दी ,
आँगनों में अँगनाई बनी, बँट गयी जब खाट बिछौने ज़मीन पर दसने लगे ।
कितने टुकड़े और करोगे मेरे लख़्त ए जिगर के तुम ,
गोया गैरों के कहने पर घर दुकान देश माँ बाप तक तो बाँट रखे हो ।
बूढ़े माँ बाप थे साथ में रहगुज़र कर लेते ,
जाने कैसी औलादें थी घर के टुकड़े कर सफ़र में चल दिए ।
किस्मत से कोई राज़ ए गुल कभी ज़ाया नहीं जाता ,
कोई है सेज़ की सजधज में कोई अर्थी संवारा है ।
परिंदों के टूटे पर हवाओं का मिजाज़ तौल लेते हैं ,
बेज़बानी में मादर ए वतन का हाल ए बयानी बोल देते हैं ।
तुम तो कूचों की ख़ाक ए ज़मीन क़दमो में लेकर के निकल गए ,
उन नादान दिलों का क्या जो हर दिन जल कर राख होते हैं ।
वो जो तिनके उड़े थे धूल में कभी तेरे शहर को ,
किस्मत बदल गयी जल के तो आफ़ताब हो गए ।
सारगर्भित हो तो मधुशाला को तपस्यालय घोसित कर दो ,
बैठे जोगी मदपान करें बैरागियों का स्थान सुनिश्चित कर दो।
मुद्दतों बाद मिले हो अजनबी बनकर ,
यूँ गैर से गले मिलकर फिर मुकर तो न जाओगे ।
जश्न बस रात भर का है ,
सुबह सबको खुद उसकी औक़ात बता देती है ।
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