बेटे की लालच में बेटी की जान खतरे में a true short story ,
यूँ तो आये दिन कन्याभ्रूण हत्या के प्रकरण सुनायी देते ही रहते हैं उसके पीछे कारण अज्ञानता अशिक्षा जैसे भले ही हों ,
मगर जो आज कहानी यहां लिखी जा रही है वह उस मासूम लड़की की है जो महज़ एक वंश चलाने वाला न दे पाने की
वजह से बली के बेदी में चढ़ाई गयी।
राजकरण सिंह वेल एजुकेटेड फॅमिली से बिलोंग करते हैं , उनके तीन बेटियां दो बेटे हैं बच्चों को पढ़ाने लिखाने में ठाकुर
साहेब ने कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी थी , अब बच्चे पढ़े न पढ़े ये उनका दुर्भाग्य है , ठाकुर साहेब के दो बेटे मुन्ना
और पप्पू हैं बेटियां तीन है विनीता , सुनीता , अनीता , विनीता की शादी हो चुकी है उसके एक लड़का है , सुनीता के
शादी की बात चल रही है और अनीता अभी कॉलेज में पढ़ती है ,
हाँ तो ये कहानी घूमती है सुनीता की ज़िन्दगी पर सुनीता पढ़ी लिखी पोस्टग्रेजुएट होनहार लड़की है इसलिए राजकरण
सिंह को लड़का भी उसके हिसाब से ही ढूढ़ना पड़ेगा , अपनी नौकरी के चलते ठाकुर साहेब वर तलाशने में ज़्यादा वक़्त
नहीं दे पाते थे , इस काम की ज़िम्मेदारी उन्होंने अपने परिवार वालो पर रख छोड़ी थी , खैर परिवार वालों ने वर तलाश
किया ठाकुर साहेब को भी पसंद आया घर अच्छा था लड़का ज़्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं था मगर जायदाद बहुत थी ,
ठेकेदारी करता था और परिवार का बिजनेस खेती बाड़ी को ही आगे बढ़ा रहा था , राजकरण सिंह को बात जम गयी दहेज़
का तय तवाडा हुआ और उन्होंने देर नहीं की सुनीता का विवाह कर दिया सब कुछ ठीक से हुआ , संगीता अपने ससुराल
चली गयी , साल भर बाद खबर आई की सुनीता माँ बनने वाली है , ससुराल और मायके में दोनों जगह ख़ुशी का माहौल
था की नए कुंवर साहेब आएंगे नामकरण भी करदिया गया , आखिर कार वो दिन भी आया जब सुनीता की डिलीवरी होने
वाली थी सभी देवी देवताओं की पूजा अर्चना की गयी इसके बावजूद भी सुनीता ने एक बेटी को जन्मा सास रो पड़ी बोल
ही दी चूल्हे में पानी पड़ गया हमारे सुनीता बेचारी बेहोश हॉस्पिटल के बेड में डली थी ऑपरेशन के बाद कोई एक गिलास
पानी देने वाला नहीं था उसको ,
सुनीता की माँ को जब पता चला वो गयी बेटी और नातिन को सम्हाला दामाद जी को ढाढ़स बंधाया , और सुनीता को
बेटी के साथ मायके ले आई , गाँव वाले परिवार वाले सबकी बहुत समझाइस के बाद दामाद जी सुनीता को लेने आये
सुनीता का बुझा चेहरा थोड़ा मुस्कुराया और वो ससुराल चली गयी ससुराल में वही ताने बेटी जन्मी थी न ताने भी
कसमसा के सह जाती बेचारी चलो कुछ दिन बीते सुनीता के फिर से पाँव भारी थे , दोनों तरफ ख़ुशी का माहौल था ।
इधर राजकरण भी अपनी छोटी बेटी अनीता की शादी की तैयारी में जुटे थे अनीता का ग्रैजुएशन भी कम्पलीट होने वाला
था , उसका आखरी साल था ग्रैजुएशन का राजकरण ने सुनीता की हालत देखकर अनीता को नौकरी के बाद ही शादी
करवाने का निर्णय लिया ,
उधर सुनीता ने ऑपरेशन से फिर एक बेटी को जन्म दिया , ये दूसरा ऑपरेशन था डॉक्टर ने मना कर दिया अब तीसरा
बच्चा जच्चा बच्चा दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है पहली बेटी २ साल की थी दूसरी तो अभी पैदा ही हुयी थी ऊपर
से सास के ताने और ठाकुर परिवार का वंश डूबने का खतरा , बेचारी एक हाँथ से काम करे की दोनों बच्चियों को सम्हाले
, खैर रो गाके ज़िन्दगी कट रही थी सुनीता की । साल गुज़रा छोटी बेटी स्कूल जाने लायक हो गयी थी वो रोज़ अपने पति
को कहती बिटिया का अड्मिशन करा दो नर्सरी स्कूल में सुनते ही सास का ताना सुरु हो जाता क्या करेगी पढ़ लिख कर
आखिर बिटिया की जात है करेगी तो चूल्हा चौका ही तू पढ़के कौन सा कलेक्टरनी बन गयी , ये बात सुनीता कसमसा
जाती मगर ठाकुर खानदान की इज़्ज़त का सवाल था , मुँह ढांप के कमरे के भीतर चली जाती और फिर जब आत्मा को
ठंडक मिल जाती तो आंसू पोंछ के बाहर आजाती , खैर अब सबकुछ पहले से बेहतर हो रहा था बिटिया भी स्कूल जाने
लगी थी सास भी व्यंग्य ताना कम ही मारती थी ,
४ साल होचुके थे शादी को अब सुनीता घर की बेटी ही नहीं किसी के घर की इज़्ज़त भी बन चुकी थी , सास का सुनीता
पर एक बार फिर दबाव बना की एक पोता चाहिए वंश चलाने के लिए नहीं तो दूसरी बहू लानी पड़ेगी , आखिर कार
डॉक्टर के मन करने के बावजूद सुनीता एक बार फिर प्रेग्नेंट हुयी और इस बार सिर्फ बेटी बची सुनीता को ज़िन्दगी से
हाँथ धोना पड़ा । अब सुनीता के पीछे हैं तीन मासूम ज़िन्दगी भगवान् जाने उनका भविष्य क्या होगा ।
इधर अनीता पढ़ाई ख़त्म करके अब सरकारी टीचर बन चुकी थी , उसकी शादी भी हो गयी थी वो अपने ससुराल में थी ,
उसका पति भी टीचर ही था दोनी की ज़िन्दगी आराम से चल रही थी ,
इस घटना से मैं इस नतीजे पर पंहुचा हूँ की बेटी को न सिर्फ पढ़ाओ और बचाओ अपितु उसे अपने पाँव पर खड़ा हो जाने
दो इसके बाद ही विवाह रचाओ ।
pix taken by google