शराब तो ख़्वामख़्वाह बदनाम है साक़ी one line thoughts on life in hindi,
शराब तो ख़्वामख़्वाह बदनाम है साक़ी ,
लोग तेरे दर पर शेर ओ सुख़न से भी बहक जाते हैं ।
कम्बख़्त तेरा इश्क़ भी शराब से कम नहीं ,
चढ़ता है तो ख़ुमारी बढ़ जाती है उतरता है तो दिल ए बेक़रारी बढ़ जाती है ।
वो ज़माने और थे जब बाब ए सुखन को तरसते थे लोग ,
अब दौर ए आशिक़ी में उर्दू खुद ब खुद नगमो में संवर जाती है ।
बारहां यही एक साल ऐसा गुज़रा ,
जो क़तील ए शहर पर भी बेमिशाल गुज़रा ।
जाते जाते सारी शहर ए अवाम क़तार में लगा के महज़ ,
चंद सियासी हुकुमरानों ने दौलत ए मौजें लूटीं ।
जाते जाते वो अज़ाब दे देगा अच्छी खासी ज़िन्दगी मुहाल कर देगा ,
उम्मीद न थी शहर ए मुंसिफ मिलेगा ऐसा क़ातिलों को क़तील कर देगा ।
शब् ए बज़्म में आ बैठे जाहिलों की तरह ,
शेर ओ सुखन के शौकीनों से पूछते हो ये हुजूम ए क़तील का माज़रा क्या है ।
हम घर से तो निकले थे उजले लिबास में ,
गोया ज़माने की गर्द में कफ़न भी मैला हो गया ।
मुद्दतों बाद लब पर आकर ठहरी सी है ,
शराब छूई भी नहीं फिर भी ख़ुमार ए मैक़शी सी है ।
अभी तो शाम गुज़री है चाँद आधा है ,
शब् ए फ़िराक के बाद जाने क्या इरादा है ।
वो नज़रों का तग़ाफ़ुल लबों का पयाम क़बूल न करना ,
गुनाह ए इश्क़ दिल ने किया और इल्ज़ाम हम पर लग गया ।
ख़त जला दिए अच्छा ही किया , गूँजते लफ़्ज़ों को कहाँ छुपाओगे ,
नाम लब पर मेरा जो आया धोखे से बहते अश्क़ों में भीग जाओगे ।
खाली बेग़ैरत की ज़िन्दगी अपनी न पता न मक़ाम अपना ,
ख़त बेरंग लौट जायेगा किसके हाँथों भेजोगे हाल ए पयाम अपना ।
कुरेदे ज़ख्मों की उठती टीस में ग़ज़ल होती है ,
दर्द दिल में हो तो ये इनायत ए करम खुद बा खुद ज़हेनशीब होती है ।
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