मंदिर का जीर्णोद्धार a short story ,

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मंदिर का जीर्णोद्धार a short story ,
मंदिर का जीर्णोद्धार a short story ,

मंदिर का जीर्णोद्धार a short story ,

मंदिर का जीर्णोद्धार आपने सुना होगा मंदिरों में बहुत रुपया आता है पुजारी माला माल हैं , आये दिन पेपर्स न्यूज़ चैनल्स बाला तिरुपति ,

शिर्डी साईं बाबा सिद्धिविनायक जैसे बड़े बड़े मंदिरों में चढ़ने वाले चढ़ावे की बात करते हैं , मगर हिन्दुस्तान में ऐसे भी

बहुत से मदिर हैं जहां एक धेले का चढ़ावा नहीं चढ़ता फिर भी पुजारी आज भी बाकायदा पूरी लगन से भगवान् की पूजा

आराधना में लगे हैं ,

हमारी कहानी एक छोटे से गाँव के बांके बिहारी राधा कृष्ण जी के मंदिर की है , जहां एक लगभग ७५ साल की बुढ़िया

रोज़ सुबह ५ बजे से मंदिर की साफ़ सफाई पूजा पाठ में लग जाती है । उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य भगवत भक्ति है

, दीन दुनिया से उसका कोई लेना देना नहीं है उसका सब लोग उसे जगत मैया के नाम से बुलाते हैं , दुनिया में कोई नहीं

उसका पति शास्त्री जी थे जो पेशे से शिक्षक थे उससे पहले वो उन्ही के साथ मंदिर की देख रेख का काम किया करती थी।

 

जगत मैया की कोई औलाद नहीं थी इसलिए शास्त्री जी को वंश चलाने के लिए दूसरी शादी करनी पड़ी थी , दूसरी शादी

वाली पत्नी शास्त्री जी के दूसरे गाँव में रहती है जहां के शास्त्री जी वासिंदे थे , उसी का बेटा कभी कभी जगत मैया को

देखने आ जाता है , जगत मैया की जीविकोपार्जन का प्रमुख आधार शास्त्री जी की पेंशन ही है जो लगभग ५००० रुपये

मिलती है जिसमे से आधी पेंशन का रूपया शास्त्री जी की दूसरी पत्नी को चला जाता है , शास्त्री जी की दूसरी पत्नी से दो

बेटे हैं एक बाहर नौकरी करता है दूसरा है जो शहर में अपनी दूकान चलाता है।

 

मंदिर की जो थोड़ी बहुत ज़मीन थी वो लगभग बंजर पड़ी है , इंदारा ( कुंआ ) सूखा पड़ा है जिससे पीने के लिए पानी

मिल जाए इतना ही बहुत है , और गाँव में मजदूर मिलते नहीं मिलते भी दूने तिगुने रेट पर खेती में लागत से अच्छा है

खरीद कर खा ले , अब आते हैं मंदिर की कहानी पर कृष्णा जन्म अष्टमी, होली ,कजलियां ये मंदिर में मनाये जाने वाले

प्रमुख त्यौहार में से हैं इसमें सैकड़ों लोग आते हैं जिनकी व्यवस्था जगत मैया की देख रेख में ही होती है , २५०० शास्त्री

जी की पेंशन और मासिक ५०० रुपये सरकार की तरफ मंदिर की देख भाल के लिए मिलता है वो भी साल साल भर में

इकठ्ठा मिल जाता है , जिसमे बिजली का बिल मंदिर का रखरखाव सब कुछ करना पड़ता है ।

 

सार्वजनिक कार्यक्रमों में गाँव वाले भी बढ़चढ़कर सहयोग करते हैं लेकिन मंदिर का प्रतिदिन का खर्चा वो तो जगतमैया

को खुद ही वहन करना पड़ता है , अब सालाना कार्यक्रमों में भी लोगों की उतनी भीड़ नहीं होती , लोग त्यौहार घर पर ही

मनाना पसंद करते हैं , खैर बात यहां तक होती तो ठीक थी , अब सब जानते हैं जगत मैया के आगे पीछे कोई है नहीं तो

मंदिर की ज़मीन उनके आँखों की किरकिरी बनी रहती है , आये दिन लोग कलेक्ट्रट में अर्जी फॉर्म जमा करते हैं की मंदिर

जगत मैया के हाँथ से चली जाए , जगत मैया कोई समस्या नहीं है वो कहती हैं लेलो मंदिर और करो सेवा भगवान् की वो

भी लोगों को मंज़ूर नहीं है , मंदिर की हालत जीर्णछिर्न है मंत्री विधायकों से भी जगत मैया ने मंदिर की दशा बेदशा

सुधारने की गुहार लगाई मगर चुनाव के बाद कोई नेता मथानी लौटकर गांव झांकता कहाँ है । गाँव के तमाम जुआरी

सटोरियों गंजेड़ियों कॉरेक्सियों का अड्डा बन चूका है मंदिर का प्रांगण जगतमैया चिल्लाती रहती है मगर उस जर्जर

बुढ़िया की सुनता कौन है ,

 

शास्त्री जी की दूसरी पत्नी का वही बेटा है रह रहा कर जो कभी कभी जगत मैया की खोजखबर लेने जाता रहता है , वो

भी बेचारा क्या करे एक शादी सुदा है एक बच्ची भी है आजकल के ज़माने में कौन औरत गाँव में रहना पसंद करती है ,

गाँव में स्कूल न हस्पताल उस पर कमाई ठन ठन गोपाल ।जाने क्या होगा राधा कृष्ण मंदिर का जगत मैया की मौत के

बाद भगवान् ही मालिक है ।

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pix taken by google