“Hostel: A Short Horror Story – Part 2”
“Hostel: A Short Horror Story – Part 2” का अगला भाग दिया गया है, जो पहले भाग से भी ज़्यादा डरावना, रहस्यमयी और थ्रिल से भरपूर है। यह कहानी वहीं से शुरू होती है जहाँ दीनू हॉस्टल छोड़कर विले पार्ले शिफ्ट हो चुका है, लेकिन हॉस्टल के फ्लैट 403, 404 और 406 की परछाइयाँ अब भी पीछा नहीं छोड़तीं… Hostel: Part 2 – “लौट आया वो साया” (Based on a True Event) 1. एक साल बाद… मुंबई की भागती ज़िन्दगी में वक़्त कब उड़ गया, पता ही नहीं चला। दीनू अब विले पार्ले में स्थायी हो चुका था, एक नई जॉब, नई ज़िन्दगी… लेकिन पुरानी यादें और डर अब भी दिल के किसी कोने में ज़िंदा थे। एक दिन अचानक समीर का कॉल आया — आवाज़ काँप रही थी… “दीनू भाई… अभिषेक नहीं रहा…” “क्या?? क्या हुआ?” “हमारे हॉस्टल वाले 403 फ्लैट में… उसने खुद को फाँसी लगा ली… लेकिन… कमरे की दीवारों पर खून से लिखा था – ‘मैं लौटी हूँ’…” दीनू के हाथ-पाँव सुन्न हो गए। समीर बताता है कि घटना वाले दिन से पहले अभिषेक कई बार कह चुका था कि उसे कोई औरत पुकारती है — “चल मेरे साथ 404 में…”
2.फ्लैशबैक: समीर की जुबानी समीर ने बताया कि होली के बाद जब सिर्फ वो और अभिषेक ही हॉस्टल में रह गए, तो
अजीब घटनाएं फिर शुरू हो गईं। रात को कोई दरवाज़ा खटखटाता। 406 का हमेशा बंद रहने वाला दरवाज़ा आधी रात को खुला मिलता। और 404 में से आती किसी औरत की धीमी हँसी। एक रात अभिषेक ने कहा – “समीर, मैं उस औरत से मिला हूँ… उसका चेहरा पूरा खून में लथपथ था… लेकिन उसकी आँखें बहुत शांत थीं… वो कहती है – मैं फिर से इंसाफ चाहती हूँ…” 3. दीनू की वापसी अभिषेक की मौत के बाद, समीर के कहने पर दीनू एक बार फिर उस हॉस्टल में वापस आता है। बिल्डिंग वही थी, लेकिन अब और ज़्यादा वीरान लग रही थी। बच्चन जी भी अब वहाँ नहीं थे — सुनने में आया वो अचानक लापता हो गए थे। रात को जब दीनू 403 में समीर के साथ सोने की कोशिश करता है, तभी… …दरवाज़े पर किसी के नाख़ून घसीटने की आवाज़ आती है… “खर्रर… खर्रर…” लाइट बंद… पंखा बंद… मोबाइल स्विच ऑफ… फिर वही आवाज़… “दीनू… चल 404 में…” 4. 404 का दरवाज़ा खुला था दीनू और समीर, हाथ में मोबाइल की टॉर्च लेकर डरते डरते 404 की ओर बढ़ते हैं। दरवाज़ा बिना छुए ही धीरे-धीरे खुलता है। अंदर चारों ओर मकड़ियाँ, टूटी हुई चीज़ें, और दीवारों पर उकेरी गई किसी महिला की पेंटिंग – खून से बनी हुई। अलमारी का दरवाज़ा अपने आप खुलता है… अंदर एक पुराना रिकॉर्डर पड़ा है, जैसे किसी ने जानबूझ कर वहीं रखा हो। दीनू उसे प्ले करता
है… रिकॉर्डिंग: “मैंने सिर्फ सच लिखा था… मुझे मार दिया गया… मेरी आत्मा जब तक इंसाफ नहीं पाएगी, ये फ्लैट किसी
को चैन से जीने नहीं देगा…” 5. सच्चाई का पर्दाफाश दीनू अब खोज में लग जाता है और पुराने अखबारों और रिपोर्ट्स में पता लगाता है कि वो पत्रकार महिला जिसने घटिया निर्माण के खिलाफ आवाज़ उठाई थी, किसी औरत नहीं बल्कि बच्चन जी की बीवी थी, और बच्चन जी ही उसे बिल्डिंग में जबरन खींच लाए थे! शॉकिंग खुलासा: बच्चन जी और बिल्डर कंपनी के मालिक ने मिलकर उसकी हत्या की थी, और अब बच्चन गायब नहीं बल्कि उसी आत्मा ने उसे खींच लिया… 6. अंतिम टकराव – “404 की आग” 404 का फ्लैट एक रात अचानक जलने लगता है, समीर और दीनू जैसे-तैसे भागते हैं, लेकिन बाहर खड़े होकर देख पाते हैं कि 404 की खिड़की में वही खून से लथपथ औरत मुस्कुरा रही है… दीनू बोलता है – “अब वो चैन से सोएगी… क्योंकि अब सबको उसकी सच्चाई पता चल चुकी है…” लेकिन तभी पीछे से आवाज़ आती है – “नहीं दीनू… अब बारी तुम्हारी है… तुमने उस रात 404 में देखा था मुझे… लेकिन किसी को बताया नहीं…” …और कहानी फिर एक नई दिशा में मुड़ जाती है…
“आत्मा का न्याय” (The Final Encounter) [Based on a true event – Horror Hindi Story] 1. पीछे मुड़ो मत, दीनू! 404 के जलते फ्लैट से बाहर भागते वक़्त जब दीनू ने पीछे से वो डरावनी फुसफुसाहट सुनी – “अब बारी तुम्हारी है…” – तो उसकी रीढ़ में बिजली दौड़ गई। समीर चिल्लाया – “दीनू भाग चल! पीछे मत देख!” लेकिन इंसान जितना डरे, उतना ही वो देखने को मजबूर होता है… दीनू ने जैसे ही पलटकर देखा — एक औरत की जली हुई, सड़ी-गली आत्मा — उसकी आँखों से काला खून टपक रहा था, होंठ नहीं थे, बस हड्डियों से लटकती चमड़ी थी। “तू भी गुनहगार है… तूने देखा था, पर चुप रहा…” 2. मौत या मोक्ष? समीर जैसे-तैसे दीनू को खींचकर बिल्डिंग के बाहर ले आया। अगली सुबह दोनों पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट लिखवाते हैं, लेकिन कोई यकीन नहीं करता। पर जब फायर डिपार्टमेंट की रिपोर्ट आई, तो एक चौंकाने वाली बात सामने आई — “404 में आग तो लगी, लेकिन उसमें जलने लायक कोई सामान ही नहीं था। वहाँ कुछ भी नहीं था।” और सबसे हैरानी की बात – फ्लैट कई सालों से “लॉक” था, किसी को किराए पर दिया ही नहीं गया। तो दीनू किसके साथ रह रहा था? किसे उसने हर रात चलते हुए सुना? 3. आत्मा की डायरी समीर को 403 में एक पुरानी अलमारी में एक छोटी-सी डायरी मिलती है — जिस पर लिखा था: “रूबी चौधरी – पत्रकार,
अंतिम शब्द” डायरी में लिखा था: “मैंने सच्चाई लिख दी… लेकिन बिल्डर और बच्चन मुझे मार देंगे। अगर ये डायरी कोई
पढ़ रहा है… तो समझ लो… मेरी आत्मा इस हॉस्टल से कभी नहीं जाएगी… जब तक मेरे कातिलों को सज़ा न मिले।” “एक लड़का है… जो मुझे देख सकता है… उसका नाम दीनू है…” “वो मेरा इकलौता गवाह है…” 4. दीनू की आत्मग्लानि दीनू की हालत अब दिन-ब-दिन बिगड़ने लगी। उसे हर रात नींद में कोई चिल्लाता – “गवाही दे… गवाही दे…” वो खुद को अपराधी मानने लगा था। उसके सपनों में 406 की छत, फांसी का फंदा, और रूबी की चीखें गूंजतीं। अंत में, दीनू ने फैसला किया कि अब वह चुप नहीं रहेगा। 5. सच्चाई सबके सामने दीनू और समीर ने रूबी की डायरी, फायर रिपोर्ट, और CCTV फुटेज की मदद से कोर्ट में केस फाइल किया। केस दो साल चला… लेकिन अंत में… बिल्डर और बच्चन – दोनों को उम्रकैद की सज़ा हुई। लेकिन… बच्चन को सज़ा सुनते ही कोर्टरूम में अजीब ढंग से हार्ट अटैक आया, और उसकी मौत हो गई। मरते वक़्त उसके मुँह से निकला – “मैंने उसे मारा था… लेकिन… अब वो मुझे छोड़ने वाली नहीं…” 6. आत्मा को मोक्ष केस जीतने के बाद दीनू एक आखिरी बार हॉस्टल गया। 403, 404 और 406 — अब सब खाली थे। रूबी की आत्मा की तरह… शांति चारों ओर फैल चुकी थी। उस रात दीनू ने पूजा की, और अगरबत्ती जलाकर बोला — “रूबी, अब तुम्हें न्याय मिल गया… अब तुम जा सकती हो।” दीवार पर पड़ी रूबी की परछाईं मुस्कराई… और धीरे-धीरे गायब हो गई।
अंत या एक नई शुरुआत? अगली सुबह बिल्डिंग का नया गार्ड आया… उसका नाम था — राज बच्चन। कहानी खत्म नहीं हुई… बस नाम बदल गए हैं।

story writer pics by ai