पिशाचों का नगर {city of demons) New horror story in hindi
पिशाचों का नगर रात के सन्नाटे में अंधेरी घाटी के बीचोंबीच बसा था कालनगर — एक ऐसा शहर जहाँ सूरज की किरणें शायद ही कभी पहुँचती थीं। सदियों से यह अफवाह थी कि इस नगर पर पिशाचों का शासन है। लेकिन अब अफवाह नहीं, यह सच्चाई थी।हर रात जब鐘 बजता, गलियों में धुंध छा जाती, और लोगों के दरवाजे बंद हो जाते। फिर शुरू होती थी रक्त की खोज।दृश्य 1: नगर परिषद की बैठकस्थान: नगर की पुरानी लाइब्रेरी, जो अब गुप्त सभा स्थल बन चुकी थी। पात्र: राघव (शहर का मुख्य योद्धा), मीरा (वैज्ञानिक), पंडित सोमेश (पुरोहित)राघव (धीमी आवाज़ में): “अब और इंतज़ार नहीं किया जा सकता। कल रात भी तीन लोग गायब हो गए। हमें सीधे महल तक पहुँचना होगा।”मीरा: “महल तक पहुँचने का मतलब है, खुद अपनी मौत को बुलाना। लेकिन… मेरे पास एक योजना है। मैंने मंत्रित चांदी की गोलियाँ तैयार की हैं। ये उनके खून को जला देंगी।”पंडित सोमेश (मंत्र पढ़ते हुए): “रात्रि के अंधकार को मिटाने के लिए, हमें प्रकाश बनना होगा। यह युद्ध केवल हथियारों से नहीं, आत्मबल से जीता जाएगा।”राघव: “तो तय रहा… आज आधी रात को हम महल पर हमला करेंगे।”दृश्य 2: काले महल का द्वार काले महल के चारों ओर फैला था पुराना कब्रिस्तान। हवा में गंधक और सड़ांध की बू थी। दीवारों पर लाल रौशनी झिलमिला रही थी। राघव (धीरे से): “सब तैयार रहो… कोई आवाज़ मत करना।”अचानक, एक छाया फुर्र से उनके सामने से गुज़री। पिशाचों की लाल आँखें अंधेरे में चमक उठीं।पिशाच रानी ल्यूसारा (ठंडी मुस्कान के साथ): “क्या तुम्हें लगा था, हम सो रहे हैं? स्वागत है, राघव… आखिरकार मिले हम।”मीरा (गुस्से में): “आज रात तुम्हारी अंधेरे की हुकूमत खत्म होगी!”ल्यूसारा: “मेरे बच्चों… इनका खून बहाओ।”धड़ाम! दीवारें हिल गईं। मीरा ने चांदी की गोलियाँ दागीं, पिशाचों की चीखें गूँज उठीं।राघव: “अब खत्म कर दो, मीरा! उस दीये को जलाओ!”मीरा ने मंत्रित अग्नि दीया जला दिया — उसकी नीली लौ ने सारा महल रोशन कर दिया। पिशाच एक-एक कर राख में बदलने लगे।दृश्य 3: नए सवेरे की शुरुआतसुबह की पहली किरण जब कालनगर की गलियों में फिसली, लोगों ने सदियों बाद पक्षियों की आवाज़ सुनी। बच्चे दौड़ते हुए बाहर आए, छतों पर हँसी गूँज उठी।मीरा (थकी लेकिन मुस्कुराती हुई): “देखो राघव… सूरज उग आया है।”राघव: “हाँ… और साथ में नई उम्मीद भी। कालनगर अब हमारा है, इंसानों का।
लौट आया अंधेराकालनगर में सूरज उगने के बाद सबको लगा कि अंधेरे का दौर खत्म हो चुका है। लोग खुले आसमान के
नीचे हँसने-गाने लगे, बच्चे गलियों में खेल रहे थे। लेकिन, महल की गिरी हुई दीवारों के नीचे, राख के ढेर में… एक लाल चमक अब भी जिंदा थी।दृश्य 1: टूटी हवेली के नीचेराख के बीच से एक फटी-पुरानी अंगूठी चमक रही थी। अंगूठी पर बंधा था एक काला पत्थर, जो धीरे-धीरे धड़क रहा था। फिर… राख कांपी, और उससे निकला एक आकार — लंबी नुकीली उंगलियाँ, लाल-लाल आँखें और होंठों पर ठंडी मुस्कान।अज्ञात पिशाच (गहरी आवाज में): “ल्यूसारा मेरी रानी थी… लेकिन अब इस शहर का राजा मैं बनूँगा।”उसका नाम था द्रावक — पिशाच सरदार, जो सदियों से परदेश में कैद था। ल्यूसारा की मौत ने उसकी बेड़ियाँ तोड़ दी थीं।दृश्य 2: मीरा की प्रयोगशालामीरा: “राघव, एक अजीब बात हो रही है… महल की राख खुद-ब-खुद हिल रही है। मैंने जाँच की— उसमें अब भी पिशाच ऊर्जा मौजूद है।”राघव: “तो इसका मतलब है… हम खत्म नहीं कर पाए?”दरवाजा ज़ोर से खुला, और अंदर पंडित सोमेश दौड़ते हुए आए।सोमेश (घबराकर): “रात में दक्षिणी पहाड़ी के पास तीन लोग मरे हैं… उनके गले पर वही पुराने निशान थे।”मीरा: “वो… वापस आ गया है।”दृश्य 3: द्रावक का हमलाकालनगर की गलियों में अचानक तेज़ ठंडी हवा चल पड़ी। लैंप की रोशनी बुझ गई। धुंध में एक काला साया चल रहा था।द्रावक: “तुम इंसानों ने सोचा था कि सूरज तुम्हारी ढाल है… लेकिन मैं रात को दिन में ला सकता हूँ।”उसने अपनी हथेली आकाश की ओर उठाई। आसमान पर काले बादल छा गए, और शहर फिर अंधकार में डूब गया। चीखें गूंजने लगीं।दृश्य 4: नई तैयारीराघव, मीरा और पंडित सोमेश ने तय किया कि इस बार केवल हथियार ही नहीं, बल्कि पिशाच जादू का सामना करने के लिए प्राचीन ग्रंथ की मदद लेनी होगी।राघव: “हमें उस किताब को ढूँढना होगा, जो ‘सूर्य-रक्त’ मंत्र का राज बताती है।”मीरा: “लेकिन वह किताब कालवन में है… और कालवन, पिशाचों का जन्मस्थान है!”सोमेश: “तो ये तय है। हमें उनके घर में घुसकर उनकी जड़ें खत्म करनी होंगी।
कालनगर के तीन संरक्षक — राघव, मीरा, और पंडित सोमेश — अब जानते थे कि जीतने का एक ही रास्ता है: पिशाचों
के जन्मस्थान कालवन में घुसकर ‘सूर्य-रक्त’ मंत्र की किताब हासिल करना।दृश्य 1: कालनगर से प्रस्थानअंधेरे के बीच लाल मशालें जलाकर वे निकल पड़े। चारों ओर सन्नाटा था, केवल उनकी कदमों की आवाज। रास्ते में टूटे पुल, वीरान गाँव, और झाड़ियों में चमकती आँखें उनका पीछा कर रही थीं।मीरा (धीरे से): “ये रास्ता बिल्कुल सुरक्षित नहीं… लगता है हम पर नज़र रखी जा रही है।”राघव (तलवार थामते हुए): “जो भी हो… हमें रुकना नहीं है।”दृश्य 2: कालवन का प्रवेशद्वारघाटी के नीचे फैला था कालवन, जहाँ हवा में बुझी हुई राख और जले हुए मांस की गंध थी। काले पत्थरों से बना एक विशाल द्वार, जिस पर खून से लिखे शब्द चमक रहे थे — “केवल अंधेरा ही यहाँ जीवित रहता है।”जैसे ही वे अंदर बढ़े, पेड़ों की टेढ़ी-मेढ़ी शाखाओं पर पिशाच चमगादड़ लटके दिखे। अचानक, पीछे से आवाज आई।द्रावक (गूंजती हुई): “तो आखिरकार तुम मेरे घर पहुँच ही गए…”दृश्य 3: युद्ध की शुरुआत द्रावक ने हवा में छलांग लगाई और उसके नुकीले पंजे राघव की ओर बढ़े। मीरा ने चांदी की गोली चलाई, लेकिन द्रावक ने धुएं में बदलकर बचाव किया।द्रावक: “तुमने ल्यूसारा को मारा… और अब तुम्हें उसकी जगह लेनी होगी… मौत की गद्दी पर!”राघव: “हम यहाँ जीतने आए हैं… मरने नहीं!”मीरा ने मंत्रित मशाल पंडित सोमेश को दी। सोमेश ने मशीन सी तेजी से मंत्र पढ़ा: “सूर्य की शपथ, रक्त को शुद्ध कर, अंधकार का अंत करो!”दृश्य 4: मंत्र का असरआकाश पर एक सुनहरी किरण फूटी और सीधे द्रावक पर गिरने लगी। उसकी त्वचा जलने लगी, वह दर्द से चीखने लगा। लेकिन वह आखिरी वार के लिए आगे बढ़ा। द्रावक: “अगर मैं मरूँगा… तो तुम्हारे साथ!”राघव ने तलवार में मशाल की नीली लौ समेटी और एक ही वार में द्रावक का सिर उड़ा दिया। वह राख में बदलकर फट गया, हवा में लाल चिंगारियाँ फैल गईं।दृश्य 5: कालवन का अंतकाल वन के पेड़ सीधा खड़े हो गए, काली नदी साफ़ पानी से भर गई, और सूरज ने घाटी को रोशन कर दिया। किताब अब मीरा के हाथ में थी। मीरा (मुस्कुराते हुए): “अब अगर अंधेरा लौटेगा… तो हमारे पास उसका इलाज होगा। “राघव: “हाँ… अब ये धरती इंसानों की है।”क्या आप चाहेंगे कि मैं भाग 4 में दिखाऊँ कि किताब की ताकत से वे पिशाचों के खून से नए योद्धा बनाते हैं, और एक और बड़े दुश्मन का सामना करते हैं?
रक्त योद्धाओं का उदयद्रावक की हार के बाद कालवन में मिली ‘सूर्य-रक्त मंत्र’ की किताब अब कालनगर की सबसे बड़ी
ताकत बन चुकी थी। लेकिन मीरा ने उस किताब को पढ़ते हुए एक चौंकाने वाला रहस्य पाया — इसमें केवल पिशाचों को खत्म करने का ही नहीं, बल्कि उनके रक्त से अर्ध-मानव योद्धा बनाने का तरीका भी लिखा था।दृश्य 1: गुप्त प्रयोगकालनगर की पुरानी फॉर्ज (लोहार शाला) को मीरा ने प्रयोगशाला में बदल दिया। वहाँ बड़ी-बड़ी ताम्बे की कड़ाहियों में सूर्य जल और मंत्रित चांदी मिलाई जा रही थी।मीरा: “अगर हम उनके ही खून को शुद्ध करके उसमें जादुई ताकत भर दें… तो ऐसे योद्धा बनेंगे जो दिन और रात दोनों में लड़ सकेंगे।”राघव: “लेकिन ये खतरनाक है… अगर मंत्र विफल हुआ तो वो इंसान नहीं, दानव बन जाएँगे।”मीरा: “हमारे पास अब विकल्प नहीं है।”पहले प्रयोग के लिए चुने गए तीन बहादुर सैनिक प्रमाण के रूप में आगे आए। उनका खून साफ़ किया गया, और मिश्रण उनकी नसों में डाला गया। पीड़ा से उनकी चीखें सुनसान गलियों में गूँज उठीं… लेकिन कुछ ही पल बाद उनकी आँखें सुनहरी चमकने लगीं।दृश्य 2: नए ख़तरे की आहटकालनगर की विजय का जश्न अभी पूरी तरह शुरू भी नहीं हुआ था कि पूर्व की दिशा में आकाश पर एक लाल धधकता गोला उभर आया। वह कोई सूर्य नहीं… बल्कि खून से भरा चंद्र-पिंड था। पंडित सोमेश (घबराकर): “ये… रक्त-चंद्र है! इसका मतलब है कि पिशाचों का मालिक, महापिशाच वेह्रान, जाग चुका है।”राघव: “तो द्रावक तो बस उसकी छाया था…”दृश्य 3: रक्त योद्धाओं की पहली परीक्षारक्त-चंद्र के नीचे वेह्रान के अनुचर — काले कवच पहने विशाल पिशाच योद्धा — सीधे कालनगर की दीवारों से टकराए।राघव (गर्जते हुए): “रक्त योद्धाओं! इस शहर की आखिरी सांस तक लड़ो!”तीनों नए रक्त योद्धा बिजली की गति से भागे, उनकी तलवारें लाल और नीली लौ से लिपटी थीं। एक ने दुश्मन का सिर काटा, दूसरे ने दोनों हाथों में चांदी के भाले घुमाए, तीसरे ने मंत्रित धनुष से ज्वलंत तीर दागा। दृश्य 4: महापिशाच का आगमनयुद्ध के बीच, आकाश की धुंध को चीरते हुए एक विशाल पंखों वाला, सींगों से सजा काला दैत्य उतरा। उसकी आँखें आग की तरह जल रही थीं — वही था वेह्रान। वेह्रान (गर्जना करते हुए): “तुमने मेरे बच्चों को मारा… अब तुम्हें मेरी अनन्त भूख निगल जाएगी!”राघव ने तलवार उठाई और रक्त योद्धाओं की ओर देखा। राघव: “ये लड़ाई हमारी अब तक की सबसे बड़ी है… और शायद आखिरी भी।
story written and pix by ai