गगन को चूमते तरुवरों पर लिपटी अमर बेलें alfaaz shayari ,

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गगन को चूमते तरुवरों पर लिपटी अमर बेलें alfaaz shayari ,

गगन को चूमते तरुवरों पर लिपटी अमर बेलें alfaaz shayari,

गगन को चूमते तरुवरों पर लिपटी अमर बेलें ,

सूर्य की प्रथम किरणे जड़ों तक प्रसस्थ करने में बाधक हैं ।

 

उद्वेलित मन जैसे भंवर के बीच फंसी उठती लहरें ,

कुछ चंद शिलाखण्डों से छणभंगुर सी हो जाती हैं ।

 

आजकल हिचकियाँ बहुत आती हैं ग़ालिब,

हो न हो उनके तसब्वुर में भी मेरा ख़्याल होता है ।

 

भवरों सा गुनगुनाता गुलों पर ,

तितलियों सा कलियों में रंग भरता मन ।

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चराग ए लौ संग अरमान रखे थे इसी ठौर कहीं ,

ग़म ए गर्दिश में पिघली मोम का ठिकाना नहीं मिला ।

 

कैसे कैसे दरियाओं से गुज़री है किश्ती ,

अब के रेत् के साहिलों पर मायूस खड़ी है हस्ती

 

उम्र ए दराज़ और नाज़नीन ए नुख़्ताचीनी हरसू ,

तरास ए मुजस्सिम भी मुआइने का एक पहलू है ।

 

कैसे कैसे फ़लसफ़े उधेड़ रखे हैं रात के दरीचे में ,

एक पल की नज़र आइना ए अक़्स से,

हट जाए तो क़त्ल ए आम मच जाए ।

 

दाग़ दामन के दिखा दिखा के लोग,

पाक़ीज़ा ए मोहब्बत पर कैसे कैसे इल्ज़ाम लगा देते हैं ।

 

अब तो आइना भी बेनक़ाब हुआ जाता है ,

रोज़ कहता है मुझसे मेरी सूरत सवार लूँ ।

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सहूलियत ए वक़्त कदमो में आती है ,

एक तज़ुर्बा ए उम्र के बाद ।

 

ये नफ़ासत यूँ ही नहीं निख़र जाती है ,

चंद कदमो से तय किये चंद कदमो के फासले तक ।

 

बुत परस्तिश में ग़र ख़ुदा मिलता ,

पत्थरों से जुदा मिलता ।

 

ज़िन्दगी मौत सजा की खातिर ,

दुआ में नाम बचा किसकी रज़ा की खातिर ।

 

उल्फत ए आईन की किताबों का मुब्तला करके ,

ग़म ए तन्हाईयाँ ही हाँथ लगी हैं वफ़ा करके ।

 

सेहराओं से जब भी जमाल ए यार का कारवां गुज़रा ,

आशिक़ों में चर्चा आम हुयी इधर के बाद फिर कहाँ गुज़रा

 

कहाँ से लाता है वो हर रोज़ नए रंग नए ढंग के तेवर ,

अब से पहले दीवानो में कोई रुतबा तो न था उसका ।

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