bhoot ki kahani horrific family ,

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चौधरी साहेब के नए मकान में ग्रह प्रवेश का दिन मकान का दरवाज़ा खुलता है , चौधरी साहेब के सभी नाती पोते दरवाज़ा खुलते ही कार से सीधा मकान के दरवाज़े के अंदर दौड़ लगा देते हैं , चौधरी साहब हाल में खड़े अपने बेटे बंटू और बबलू के साथ पंडित के आने का इंतज़ार कर रहे हैं , बबलू के दो बच्चे हैं चिंटू और मुनिया , बंटू अभी कुंवारा है उसकी शादी नहीं हुयी है , तभी चिंटू और मुनिया एक दूसरे की शर्ट पकड़ कर रेलगाड़ी बने दौड़ रहे हैं , चिंटू इंजिन और मुनिया डब्बा  , तभी चौधरी साहेब की नज़र बच्चों पर पड़ती है , चिंटू और मुनिया के पीछे पीछे एक लड़की दादा जी दादाजी करती दौड़ रही है , चौधरी साहब कहते हैं बेटा आराम से , और चौधरी साहेब किसी काम में लग जाते हैं , उनके पलक झपकते ही चिंटू और मुनिया के पीछे दौड़ रही लड़की दीवार में समां जाती है , बच्चों की ट्रैन एक बार फिर सीढ़ियों से नीचे की तरफ दौड़ पड़ती है , चौधरी साहेब उन्हें रोक कर पूछते हैं तुम्हारे पीछे जो बच्ची थी वो कहाँ है , चिंटू मुनिया कहते हैं कोई बच्ची नहीं थी हम दोनों हैं बस , खैर बात आई गयी करके बच्चे फिर ट्रैन चलाने में मस्त हो जाते हैं ।

दिन का वक़्त बीत जाता है , शाम का वक़्त है चौधरी साहेब अपने दोनों बेटों और नातियों के साथ बाहेर गार्डन में बैठे हैं , चौधरी साहेब की पत्नी और बहू शाम की पूजा कर रहे हैं , आरती के बाद बहू सारे कमरों में आरती लेकर घूमती है तभी बालकनी में लगी तस्वीर के चेहरे में हलचल होती है जिसे देख चौधरी साहेब की बहू चीख पड़ती है , बहू की चीख सुनकर सभी दौड़कर फ़ौरन बहू के पास पहुंच जाते हैं , बहू बताती है की तस्वीर का चेहरा अभी हरकत कर रहा था , होना हो इस घर में भूत है , चौधरी साहेब कहते हैं वहम है तुम्हारा दिन भर से बहुत काम की हो थक गयी हो जाओ आराम कर लो ।
रात का वक़्त है सभी सदश्य अपने अपने कमरे में सो रहे हैं , चौधरी साहेब का छोटा बेटा बंटू अभी भी जग कर प्रोजेक्ट की तैयारी कर रहा है , उसे देर रात तक जगने की आदत है , रात के सन्नाटे को चीरती रसोई से कुछ खटपट की आवाज़ सुनायी देती है , बंटू मोबाइल की फ़्लैश लाइट जलाकर रसोई की तरफ बढ़ता है , जैसे ही रसोई की लाइट ऑन करता है , कोई शख्स रसोई की खिड़की से बाहर की और गार्डन की झाड़ियों में जहां से कूद जाता है , बंटू डरता नहीं है , उसे लगता है कोई बिल्ली रही होगी ,
वो बढ़कर खिड़की के पास जाता है सोचता है खिड़की बंद कर दूँ मगर जब उसकी नज़र गार्डन पर पड़ती है तो एक शख्स लंगड़ाता हुआ , गार्डन की बॉउंड्री वाल फांदकर पीछे की ओर चला जाता है , उस शख्स के बारे में जानने की उत्सुकता और बढ़ जाती है मगर रात काफी हो गयी थी इसलिए बंटू रसोई की खिड़की बंद करके अपने कमरे में चुपचाप जाकर सो जाता है ।

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अगला दिन आज घर में कोई नहीं है सब शहर से बाहर शादी के फंक्शन में गए हुए हैं , रात का वक़्त है बंटू अपने रूम में पढ़ाई कर रहा है , तभी किचन से खट की आवाज़ सुनायी देती है , बंटू का एक मन तो करता है हो सकता है बिल्ली हो मगर दूसरा मन कहता है जाकर देखना चाहिए , बंटू मोबाइल की फ़्लैश ऑन कर किचन की तरफ बढ़ता है , और किचन की लाइट्स ऑन करता है एक शख्स फिर खिड़की से धड़ाम की आवाज़ के साथ उस पार की झाड़ियों में कूद जाता है और गार्डन की तरफ भागने लगता है , बंटू भी उसके पीछे खिड़की से कूदता है , और उस शख्स को आवाज़ देता है कौन हो , वो शख्स वहीँ रुक जाता है , बंटू उस शख्स के पास जाते समय बोलता है कितने चोर हो तुम खाना ही खाना था तुम्हे तो मुझसे मांग लेते रोज़ रोज़ किचन में चोरी करने क्यों घुसते हो , और एक झटके से उस शख्स के चेहरे को अपनी तरफ फेर लेता है , मगर वो उस शख्स को देखते ही भय के मारे थर थर्राने लगता है , क्यों की सामने जो शख्स था वो एक बुढ़िया थी , जिसके हाँथ में उसके खुद के जिस्म का निकला हुआ कलेजे का टुकड़ा था जिसका कुछ हिस्सा वो खा चुकी थी , और बचा खुचा हिस्सा चाव से खा रही थी । बंटू को देखते ही वो बुढ़िया अपने कलेजे का टुकड़ा जल्दी से खा लेती है अपने आँचल से अपना मुँह हाँथ पोंछ कर पुनः जिस्म को साल से ढँक लेती है । और बंटू को देखकर मुस्कुराती हुयी बोलती है नए नए आये हो अभी तुम्हे पहले कभी नहीं देखा , डर के मारे बंटू की सिट्टी पिट्टी गुल हो जाती है , वो हाँ में सर हिलाता है , बुढ़िया कहती है तुम जानना नहीं चाहोगे मैं कौन हूँ , बंटू पहले न फिर हाँ में सर हिलाता है , बुढ़िया कहती है इस बॉउंड्री के उस पार मेरा घर है , चलो दिखाती हूँ , तभी चौधरी साहेब के कार की आवाज़ सुनाई  देती है और लाइट का प्रकाश पड़ते ही बुढ़िया बॉउंड्री वाल कूंद कर उस पार चली जाती है , बंटू गेट खोलता है , चौधरी साहेब कार से उतरते ही बंटू से पूछते ही इतने रात गए तुम गार्डन में क्या कर रहे थे , बंटू बताता है , ऐसे ही गर्मी ज़्यादा थी तो टहल रहा था , बुढ़िया वाली बात उसने घर वालों का बताना उचित नहीं समझा उसे लगा ख्वामख्वाह डर जायेगे सब के सब ।

बुढ़िया को देखने के बाद बंटू की आँखों से नींद ओझल थी , आँखों आँखों में जाने कब सवेरा हो गया बंटू को पता भी नहीं चला , सुबह नहाने धोने के बाद उसने कॉलोनी की बॉउंड्री वाल के उस पार जाने का निश्चय किया , और उस बुढ़िया का रहश्य जानने की कोशिश में लग गया , बाउंड्री के उस पार आम का काफी घना बगीचा था जिसमे एक कच्ची मिटटी की झोपडी थी , उसे लगा अवश्य बुढ़िया उस झोपडी में ही होगी , उसने उस झोपडी की झाँक तांक सुरु की ही थी की तभी पीछे से आवाज़ आती है , तुम आगये बेटा मुझे पता था की तुम मुझसे मिलने ज़रूर आओगे , मेरे बेटों की मौत के बाद मैं अकेली ही इस झोपडी में रहती हूँ , बंटू पूछता है क्या हुआ था तुम्हारे बच्चों को , बुढ़िया बताती है , ये जिस ज़मीन पर तुम लोगों की कॉलोनी बानी है न ये राघव राज की ज़मीदारी का छोटा सा हिस्सा था , कोर्ट में बहुत बड़े बैरिस्टर रहे वो आस पास की सरकारी ज़मीन भी उन्होंने अपने नाम करवा ली थी , अंग्रजों के ज़माने से हमारे बाप दादा राघव राज के यहां लघुआ मज़दूर हुआ करते थे , उन्होंने ने ही हमें इस जगह पर बसाया था , और यहां उनका अस्तबल हुआ करता था , चारों तरफ खेत ही खेत लहलहाते थे , और हम उन खेतों और आम के इस बगीचे की रखवाली करते थे बस , राघव राज की मौत के बाद जब से घुन्नू और छुट्टन जवान क्या हुए बेंच खाये सब बाप दादा की मिल्कीयत ,

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बुढ़िया का पति छकौड़ी और बुढ़िया दोनों राघव राज की दी हुयी ज़मीन पर धान का रोपा लगा रहे हैं , तभी घुन्नू भैया की बुलेट धान के खेत को रौंदते हुए खेत के मेड पर आकर खड़ी हो जाती है , घुन्नू भइया ने अभी पांव ज़मीन पर रखा ही था की छकौड़ी ने तुरंत उनके जूते अपने गले में डाले गमछे से साफ़ किया , तभी घुन्नू के साथ आये चमचे ने पान की संदूकची से पान निकाला और जी हुज़ूर कहते हुए उनके मुँह में ठूंस दिया , एक दोबार पान की चबाकर गिलोरी को मुँह में दबाये हुए अधखुले मुँह से घुन्नू ने समझाया तो का सोचे हो छकौड़ी , कहूँ दूर जाके बस जाओ हमारी अहरी वाली ज़मीन में बस जाओ कछु न कहेगे और यहां की ज़मीन हमें देदो , पैसा लेलेना पक्का मकान बनवा देंगे तुम्हारे लिए ठाठ से गुज़रेगा बाकी का जीवन , लौंडों को फटफटिया दिला देंगे फिर दिन भर उड़ान भरना कोलाने में का बोलते हो बे बंशी ललबी छकौड़ी जी मालिक करता हुआ हाँ में सर हिलाता है की तभी चुप खड़ी छकौड़ियाइन तपाक से बोल पड़ती है , देखो लल्लाजी (घुन्नू भैया को ) आप हमसे उम्र में छोटे हैं , और ये ज़मीन आपके दद्दा जी (राघव राज ) ने हमें कानूनी तौर पर सौंपे थी जिसके कागजात आज भी हमारी पास सही सलामत हैं , जिसे हम किसी भी हाल में तुम्हरे हाँथ में न देंगे बस , घुन्नू समझाता है की देख लो बाद में पछताओगे फिर मत कहना की पहले समझाए नहीं थे , हम कॉलोनी बना रहे हैं यहां और हम अपनी ज़मीन से रास्ता नहीं देंगे तुम्हे , बस यहीं तक सीमित रह जाओगे निकलोगे कहाँ से । छकौड़ियाइन कहती है हम कहूँ से निकल लेब मगर तोरे आगे न झुकब बस , गुस्से से तमतमाया घुन्नू तुरंत बुलेट स्टार्ट कर वहाँ से निकल जाता है ।

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राघव राज के दूसरे बेटे का नाम है छुट्टन जिसके दिमाग में पार्षद बनने क जूनून था , वो हर हाल में पार्षदी का चुनाव जीतना चाहता था , जिसके लिए उसने पांच लाख रुपये देकर पार्टी की टिकट का भी इंतज़ाम कर रखा था , वो घुन्नू भैया की प्रॉपर्टी डीलिंग में हाँथ बटाने का काम करता था , उसका ये लक्ष्य था की अगर इस बार वो पार्षदी का चुनाव जीत जाता है तो , वार्ड का विकास गया तेल लेने सर्वप्रथम वो पार्षद निधि के पैसे से अपने प्लॉट्स पर पक्की सड़कें नाली और लाइट के खम्भे लगवायेगा , और अंततः दारू मुर्गा के दम पर वो चुनाव जीत भी जाता है और वार्ड की जानत त्राहि त्राहि करती रही छुट्टन ने सारा पार्षद निधि का बजट अपने प्लॉट्स में खर्चा कर दिय जिससे उसके प्लॉट्स की वैल्यू बढ़ गयी मगर उसके भी रास्ते का रोड़ा छकौड़ी की ज़मीन थी   और घुन्नू भाई के कहने पर वो आये दिन छकौड़ी को धमकाने पहुँचता रहता  है , घुन्नू और छुट्टन ने छकौड़ी के परिवार का जीना हराम कर रखा था जिसके चलते छकौड़ी के दोनों बेटो बंशी और ललबी दोनों पैसा कमाने के लिए सूरत गुजरात भागना पड़ गया  बेटी ससुराल जा चुकी थी और राघव राज के दोनों बेटों का अत्याचार कम होने का नाम नहीं ले रहा था , एक कानून की धमकी दे के जाता तो दूसरा गुंडागर्दी के दम पर ज़मीन हथियाने के जुगाड़ में लगा था ।

बुढ़िया की दर्द भरी दास्तान सुनकर बंटू का दिल पसीज गया , भरी हुयी आवाज़ में उसने बुढ़िया से पूछा अब तो सारे देश में कोरोना संकट चल रहा है , क्या तुम्हारे दोनों बेटे घर वापस नहीं आये , पहले बुढ़िया ने कुटिल मुस्कान के साथ बंटू की तरफ देखा फिर फ़फ़क फ़फ़क कर रोने लगी , और बोली क्या बताऊँ बेटा मुझ करमजली के भाग्य में तो पहले ही कलंक लिखा था , मेरे पति की मौत के बाद सबने मुझ पर पति की हत्या का आरोप लगा कर मुझे डायन साबित कर दिया ,जात बिरादर वालों ने दाना पानी बंद कर दिया अब करते भी तो क्या करते बेचारे गभुआर , मेरे दोनों बेटे बाहर गाँव जा बसे इस कोरोना संकट में दोनों पैदल ही रवाना हुआ थे , कोई कहता है आ जायेगे अभी ढाई महीने ही तो हुआ है , कुछ कहते हैं रास्ते में हादसे का शिकार हो गए होंगे , नहीं तो जंगली जानवर खा लिए होंगे ,

और बुढ़िया एक बार फिर अपने सिर पर हाँथ रख कर अपने करम किस्मत के नाम पर रोने लग गयी , तभी बंटू बुढ़िया को ढाढस बंधाता है चिंता मत करो माई , खाने का सामान मैं तुम्हे ला दूँगा , ऊपर वाले के ऊपर भरोसा रखो तुम्हारे बच्चे भी जल्दी ही सही सलामत लौट आएंगे , बुढ़िया हाँ में सिर हिलाती है , और अपने मैले आँचल से अपने आंसू पोछती है , बंटू इतना कह कर जैसे मुड़ता है , वैसे ही उसके सिर पर फावड़े का प्रहार होता है , और उसकी खोपड़ी उसके भेजे से अलग हो जाती है , बंटू का शरीर तड़पने लगता है , और थोड़ी देर बाद शांत हो जाता है , तभी बुढ़िया के दोनों बेटे जाने कहाँ से प्रकट हो जाते हैं , और हँसते हुए कहते हैं अच्छा शिकार ढूढ़ा तूने अम्मा बहुत दिन हुआ ताज़ा इंसानी गोस्त खाये हुए , बुढ़िया हँसते हुए कहती है मर गया बेचारा मुझे खाना खिलाने वाला था खुद मेरा खाना बन गया , तभी ललबी बंटू के मस्तष्क से अलग हुयी खोपड़ी पर लात मारता है जिससे कटोरा नुमा खोपड़ी का ढक्कन दूर चला जाता है , बंशी बंटू के जिस्म को दीवाल के सहारे टिका कर बिठा देता है , और ललबी लार टपकाता हुआ अंदर से कटोरा और छुरी लेकर आता है , और कहता है इसका भेजा मैं खाऊंगा तभी पास बैठी बुढ़िया कहती है चुप करो नासपीटों इसका कलेजा मैं खाऊँगी , इसको यहां लाने के चक्कर में मुझे अपना कलेजा खाना पड़ गया था , तीनो माँ बेटे आपस में लड़ने लगते हैं तभी बंटी की आँखों में हरकत होती है खोपड़ी खुली होने वजह से , खून उसके चेहरे और आंखों से बह चला था , बंटी फ़ौरन उठता है और अपनी खोपड़ी के ढक्कन को उठाता है और अपने खुले हुए सिर पर सेट करता है , और पास पड़े फावड़े को हाँथ में लेकर पहला वार बंसी के सिर पर करता है , जिसे बचाने के लिए ललबी बंटी को पीछे से पकड़ लेता है , और बोलता है मत माल मेले भाई को बहुत दिनों से भूखा था ले , (ललबी तोतला है ) दूस्ररा वार वो ललबी के जबड़े पर करता है , एक शॉट में ही ललबी चारों खाने चित्त हो जाता है , अपने दोनों बेटों को मरता देख बुढ़िया (छकौड़ियाइन ) डंडा लेकर बंटू की तरफ बढ़ती है , बंटू उसकी छाती पर एक लात मारताहै जिससे वो पास के पेड़ पर टूटी हुयी शाख की खूँटी पर टंग जाती है , खूँटी , बुढ़िया के पेट पर घुसी थी बुढ़िया का जर्जर जिस्म खुद का वजन बहुत देर तक उस शाख के टुकड़े पर टिक नहीं पाया और खुद बा खुद जिस्म के दो टुकड़े होकर ज़मीन पर धड़ाम से जा गिरे । और खून से सना हुआ फावड़ा लिए बंटू , अपनी बॉउंड्री के अंदर एंट्री करता है , चौधरी साहेब बंटू को देखते ही अपने गले से लगा लेते हैं , और कहते हैं की मुझे पता था की मेरा शेर ज़िन्दगी की हर जंग जीतेगा । अपने पिता के गले लग कर बंटू के चेहरे में एक अलग ही विजयी मुस्कान थी ।

cut to story in flash back ,

कोरोना का क़हर सारे विश्व को अपनी चपेट में ले चुका था , एक रात बंटू की तबीयत अचानक बिगड़ गयी , बंटू को सरकारी जिला हस्पताल में भर्ती कराया गया जहां बंटू का कोरोना टेस्ट कराया गया और कोविद पेसेंट वाले वार्ड में भर्ती कर दिया गया , बंटू की तबीयत में सुधार हो रहा था , रात को ८ बजे ही घर वालों की बंटू से बात हुयी थी , और रात के ११ बजे बंटू को हार्ट अटैक के चलते हुयी मौत से मृत घोसित कर दिया जाता है , और नगर निगम के कर्म चारियों द्वारा लाश को जला दिया जाता है , मगर २ दिन बाद बंटू की जब कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आती है , तो शहर भर में हंगामा मच जाता है , घर वाले धरने पर बैठ जाते हैं सरकार द्वारा आनन् फानन में कुछ लोगों को पद मुक्त तो कुछ लोगों का स्थानांतरण कर दिया जाता है , मामला कुल मिला कर दबा दिया जाता है ।

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नगर निगम कर्मचारी जब लाश को जलाने के लिए श्मशान घाट पहुंचते हैं तभी वहाँ कुछ अघोरियों का आगमन हो जाता है , अघोरियों द्वारा नगर निगम के कर्मचारियों को मार पीट कर भगा दिया जाता है , आज पूरनमाशी की रात है कहते हैं तंत्र मंत्र के लिए इस रात बड़ा अच्छा शुभ मुहूर्त होता है अघोरी बंटू की लाश अपने साथ ले जाते हैं , बंटू के जिस्म से कुछ अंग गायब थे शायद किसी ने लाश से कुछ अंग चोरी किये थे , मगर अघोरियों ने अपनी तंत्र विद्या से , बंटू के जिस्म पर पुनः जान डाल दी थी । और बंटू को आशीर्वाद दिया था जा बच्चा जा कोई दुश्मन बैरी चाहकर भी तेरा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा , बंटू सकुशल घर वापस आजाता है , बंटू को जीवित पाकर चौधरी साहेब और उनकी फॅमिली का ठिकाना नहीं रहा ।

cut to ,

इधर छकौड़ियाइन और उसके बेटों के जो टुकड़े बंटू ने फावड़े से किये थे , वो धीरे धीरे खुद बा खुद एकत्रित होने लगे हैं , और क्रमशः सभी के अंग जहां जहां से जो जो कटे थे एक एक करके जुड़ जाते हैं ,

story in flash back ,

कोरोना संकट काल में सम्पूर्ण लॉक डाउन के दौरान जब छकौड़ियाइन और उसके बेटे आँगन में सो रह थे तबाही घुन्नू और छुट्टन दोनों भाइयों ने सारे परिवार की नृसंश हत्या कर दी थी , और शव को पोक्लिन की मदद से वहीं गाड़ दिया था , मुर्दों का अंतिम संस्कार न होने की वजह से छकौड़ियाइन और उसके बेटों की रूहें आज भी भटक रही है और अपने हक़ की ज़मीन हासिल करने के लिए घुन्नू और छुट्टन की बसाई कॉलोनी में घुस जाती हैं ।

to be continue……

next part ,,,,, bhoot ki kahani horrific family ,

pics taken by google ,