retro creepy story in hindi pishach ,

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गौधूलि की बेला है शाम का वक़्त सूरज लगभग डूब चुका है सारा का सारा शहर अँधेरे की आगोश में सिमटने के लिए बेताब है , हनुमान मंदिर के पुजारी का शिष्य परमानन्द प्रभु नाम का जाप करते हुए , शहर से भगवान् के श्रृंगार का सामान लेकर पगडण्डी के रास्ते गाँव की और लौट रहा है , की रास्ते में उन्हें गाय का एक नन्हा बछड़ा दिखाई देता है , पुजारी को लगता है की ये बच्चा गाय के झुण्ड से बिछड़ गया है , बछड़े की रम्भाने की आवाज़ में करुणा और दया थी जिससे पुजारी का का दिल पसीझ जाता है , और वो उस गाय के बछड़े को काँधे में टांग कर प्रभु भक्ति के भजन में लीं आगे बढ़ता जाता है , तभी पुजारी को महसूस होता है , जैसे गाय के बछड़े का वजन बढ़ रहा है , पर उसे लगता है की शायद थकान की वजह से से उसे बछड़े का वजन ज़्यादा लग रहा है , कुछ दूर चलने के बाद उन्हें ऐसा लगता है बछड़े का वजन वाक़ई बढ़ रहा है , मगर वो गाय के बच्चे को वहाँ सुनशान में नहीं छोड़ सकते हैं , धीरे धीरे चलते चलते परमानन्द मंदिर की सीमा में प्रवेश कर जाता है , तभी मंदिर से शंख ध्वनि सुनायी देती है शायद संझा वंदना का समय हो गया है , शंख और झांझ की आवाज़ सुनते ही , परमानन्द की पीठ पर सवार गाय का बछड़ा अचानक बहुत भारी हो जाता है , तभी परमानन्द की नज़र बछड़े के बढ़ रहे पैर पर पड़ती है वो समझ जाते हैं ये गाय का बछड़ा नहीं कोई दुष्ट आत्मा है , और वो उसे काँधे से उतार कर दूर फेंक देते हैं ज़मीन पर गिरते ही वो गाय का बछड़ा एक बहुत बड़ा सांड बन जाता है , तभी सतानंद मंत्रोच्चारण करते हैं और वो सांड एक भयानक हंसी के साथ धुएं में गायब हो जाता है ।

परमानन्द घबराता नहीं है वो संयम से काम लेता है , और मंदिर पहुंचने में पुजारी जी को घटना से अवगत कराता है , पुजारी सब समझ जाते हैं , वो परमानन्द को समझाते हैं की रास्ते में जो आम का बृक्ष है अगर मंदिर आते समय रात हो जाए तब उस बृक्ष के पास से गुज़रने की कोई आवश्यकता नहीं है पूर्वकाल से ही उस वृक्ष पर पिशाच का वाश है जो अब बहुत पुराना होने के साथ साथ ताकतवर भी हो गया है , परमानन्द के साथ घटी घटना असामयिक नहीं है ऐसी कई घटनाएं आये दिन उस मार्ग से गुजरने वाले पथिक के साथ घटती रहती हैं ,  आस पास हो रही असमय मृत्यु का कारण भी उस बृक्ष का पिशाच है , परमानन्द के साथ खड़े पुजारी जी और अनुयायी उस बृक्ष के इतिहास के बारे उत्सुकतावश पूछ लेते हैं गुरुवर क्या आपके साथ भी कोई घटना घटी , कृपया हमें भी बताइये , तब पुजारी जी सारी घटना विस्तार से बताते हैं जिस जगह में पर आज ये हमारा शहर बसा हुआ है पहले यहां चम्पावन नाम का जंगल हुआ करता था , तब पुजारी जी बताते हैं , की पूर्वकाल में विदिशा नगरी के राजा की पुत्री एकबार सुगंधवर्षा जब आखेट के लिए चम्पावन आई थी थक हार कर उन्होंने इस सरोवर का मनोरम दृश्य देखकर नहाने का निश्चय किया और जब सुगंधवर्षा सरोवर में स्नान के लिए उतरी तभी दैत्याकरण नामका राक्षस सरोवर में मगरमच्छ का रूप धारण किये मछलियों का शिकार कर रहा था , तभी उसकी नज़र जल में चमकती वस्तु पर पड़ी वो सुगंधवर्षा का का सुन्दर शरीर था सुगंधवर्षा अत्यंत सुन्दर देव कन्या थी , कहते हैं की उसका जन्म धरती पर नहीं हुआ था वो चित्रसेन को देवताओं द्वारा वरदान स्वरुप प्राप्त हुयी थी , उसके शरीर से एक अद्भुत प्रकाश दिव्यमान होता था , जो अँधेरे में भी उजाला करने की अद्भुत शक्ति रखता था ,

 

सरोवर में पहले विद्यमान दैत्याकरण नाम का राक्षस , सुगंधवर्षा के शरीर से प्रस्फुरित हो रहे प्रकाश की ओर आकृष्ट हो

जाता है , वो धीरे धीरे सुगंधवर्षा की ओर बढ़ता है , और सुगंधवार्षा के निकट पहुंचते ही जैसे मुख खोलता सुगंधवर्षा मगरमच्छ को देख कर चीख पड़ती है , उसकी गुहार सुनकर वहाँ से गुज़र रहे एक युवक की नज़र सरोवर के दृश्य पर पड़ती है , वो फ़ौरन अपने धनुष पर तीर लगा कर एक तीर उस मगरमच्छ की ओर चलाता है , वो तीर सीधा मगरमच्छ के जबड़े को भेदता हुआ आर पार निकल जाता है , और राजकुमारी के पास आकर पूछता है हे सुंदरी आप कौन हैं कृपया अपना परिचय दीजिये , राजकुमारी बताती है मैं विदिशा नगरी के राजा चित्रसेन की पुत्री सुगनधवर्धा है , यहां वन में आखेट के लिए आये थे , सरोवर के शीतल जल ने हमे मोह लिया इसलिए स्नान के लिए सरोवर में उतर गए तत्पश्चात इस मगरमच्छ ने हम पर हमला कर दिया , अगर तुम नहीं आते तो आज हम जीवित नहीं बच पाते , और फ़ौरन अपने हाँथ की मुद्रिका उतार कर उन्होंने उस युवक को दे दी , और कहा कभी विदिशा नगर आना तो ये मुद्रिका दिखा देना द्वारपाल तुम्हे हमसे मिलने देंगे ,

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युवक सुगन्धवर्षा के रूप सौंदर्य के प्रति इतना मंत्रमुग्ध हो गया की वो मन ही मन राजकुंवारी से प्रेम करने लग गया , और एक दिन वो राजकुंवारी सुगंधवर्षा से मिलने विदिशा नगरी पहुंच जाता है , नगरी दुल्हन की तरह सजी हुयी है , वो वहां के लोगों से पूछता है भाई यहां क्या हो रहा है , लोग कहते हैं आज हमारे राजा चित्रसेन की पुत्री राजकुमारी का विवाह कच्छ देश के राजकुमार से होने जा रहा है तुम भी रुको विवाह में भोज का आयोजन है यहीं प्रसाद ग्रहण करना , युवक दौड़ता हुआ महल के प्रमुख द्वार पर पहुंच जाता है , वो द्वार पाल से राजकुंवारी को मिलने की इच्छा ज़ाहिर करता है , और उसे बताता है की उसने राजकुंवारी की जान बचाई थी , निशानी के तौर पर राजकुंवारी से अपनी मुद्रिका उसे दी थी , द्वारपाल बोलता है मुद्रिका है तो दिखाओ तभी राजकुंवारी जी से मिल सकते हैं अन्यथा अपना रस्ता नापो , वो अपने कुर्ती की जेब में हाँथ डालता है मगर राजकुंवारी द्वारा दी हुयी मुद्रिका नहीं मिलती है , और द्व्वार पाल उसे धक्के मारकर भगा देता है , तभी राजकुंवारी की सवारी वहाँ से गुज़रती है , वो युवक राजकुंवारी को आवाज़ देता है राजकुंवारी उस युवक की तरफ देखती है फिर अनदेखा करके आगे चली जाती है ये बात युवक को बिलकुल अच्छी नहीं लगती है , एक तरफ़ा प्यार में चोंट खाया हुआ निराश युवक वापस लौट जाता है , और गर्मी से थक कर एक बृक्ष की छाया में बैठ जाता है ,  निराशा और हताशा की मार वो युवक सहन नहीं कर पाता है , वो राजकुंवारी सुगंधवर्षा को जान से मारने का निश्चय करता है और आखिर कार एक रात जब सुगंधवर्षा , अपने सयन कक्ष में गहरी निंद्रा में सोयी हुयी होती हैं तो युवक उन पर कटार का प्राण घातक वार करता है जिससे सुगंधवर्षा चिरकाल के लिए गहरी नींद में चली जाती है , सुबह जब दास दासियाँ रक्त रंजित राजकुंवारी का शव सयन कक्ष में देखते , तो सारे राजमहल में हड़कंप मच जाता है , सैनिको को आदेश दिया है जाता है , की राजकुंवारी के खूनी का तुरंत पता लगाया जाए , राजा चित्रसेन खूनी को मृत्य दंड देने की घोसणा कर देते हैं और और खूनी का नाम बताने वाले को सहस्त्रों स्वर्णमुद्राएँ देने की घोषणा कर देते है नगर में डुग्गी पिटवा दी जाती है नगर के कोने कोने में सिपाही छान बीन में लग जाते हैं , द्वार पाल बताता है की एक दिन कोई युवक राजकुंवारी से मिलने की इच्छा ज़ाहिर कर रहा था , मगर उसने उसे उनसे मिलने नहीं दिया राजा फ़ौरन आदेश देता है उस युवक को तुरंत ढूँढा जाए , ये बात सुनकर युवक डर जाता है उसे पता था की उसकी मृत्यु सुनिश्चित है और अंततः अतिभय से व्याप्त युवक वहीँ उसी कटार को अपने सीने में घोंप कर आत्म हत्या कर लेता है । तब से उस युवक की आत्मा एक पिशाच के रूप में इस आम के बृक्ष में विद्यमान है , और हर आने जाने पथिक को परेशान करती है जो कमज़ोर दिल वाले होते हैं वो उनको अपना शिकार बनाता है , इतना बताकर गुरुवर सबको विश्राम करने की अनुमति प्रदान करते हैं और सब अपने अपने कक्ष में चले जाते हैं ।

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समय बीतता जाता है उस जगह पर वह आम का पेड़ अब बहुत बड़ा आम का बृक्ष बन चुका था , राज रजवाड़े सब

समाप्त हो जाते हैं , देश अंग्रेजों का गुलाम हो जाता है , और जिस जगह पर कभी चंपवान हुआ करता था उस जगह पर अब अंग्रेजी आर्मी बटालियन का कब्ज़ा है , लोगों का मानना था की उस वृक्ष पर किसी पिशाच का वास है , उसी पिशाच के भय के चलते लोगों ने उसी मैदान के बीचो बीच एक सिद्ध बाबा का चबूतरा बनवा लिया और हर मंगलवार शनिवार उस जगह पर हनुमान चालीसा का पाठ किया जाने लगा , मगर कर्नल विदेशी था , और वह इन सब बातों को नहीं मानता है , वो इसे अन्धविश्वास का द्योतक मानता है, जिसके चलते वो वो इस शिद्ध बाबा के चबूतरे को तुड़वा देता है , जिसका उसे बेहद गंभीर परिणाम भुगतना पड़ता है , कर्नल का बेटा है विक्टर , जो की विलायत से पढ़कर इंडिया आया है , कर्नल चाहता है की विक्टर का विवाह , उसकी ही बटालियन के एक दुसरे अफसर की बेटी से हो जाए , मगर विक्टर विलायत में ही किसी और लड़की से प्यार करता था जिसके चलते , वो पिता की बात मानने से इंकार कर देता है, और बहुत कहासुनी के बाद विक्टर रात में ही घर से बाहर चला जाता है , कर्नल की पत्नी कर्नल को समझाने का बहुत प्रयत्न करती है , मगर कर्नल एक नहीं सुनता है और अंततः सुबह सिपाही आकर सूचना देते हैं की विक्टर की लाश आर्मी कैंपस में मौजूद आम के पेड़ पर लटकती हुयी मिली है , जवान बेटे की मौत का सदमा उसको अंदर तक झकझोर देती है ,

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मगर अब भी कर्नल किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था , एक रात जब कर्नल ऑफिस से घर की तरफ लौट रहा था , तब रास्ते में अचानक झमा झम बारिश होने लगती है , रास्ते में अचानक एक भयानक चिंघाड़ के साथ कार का ड्राइवर गाडी रोक देता है , कर्नल पूछता है कार क्यों रोक दी ड्राइवर बताता है साहेब रास्ते में सिद्ध बाबा लेटे हुए हैं कर्नल को यकीन नहीं होता वो रास्ते में देखता है एक बहुत बड़ा सांप रोड के इस पार से उस पार रोड क्रॉस कर रहा है , कर्नल बोलता है तुम इंडियन के साथ एक ही प्रॉब्लम है , जानवर को भी भगवान् बना लेते हो , चलो गाडी बढ़ाओ , तभी सांप बने सिद्ध बाबा रोड क्रॉस कर चुके होते हैं , और ड्राइवर कार सीधा बंगलो के सामने रोकता है , घर में बेटी (स्टेला ) दरवाज़ा खोलती है और डैडी बोलती हुयी कर्नल के गले से लिपट जाती है , तभी कर्नल पूछता है माँ कहाँ है तुम्हारी स्टेला बताती है माँ की तबीयत थोड़ा खराब है इसी वजह से वो जल्दी सो गयी , कर्नल भी खाना खा के सो जाता है , स्टेला अपने रूम में चली जाती है और अपने मंगेतर से फोन में बात करने लग जाती है , स्टेला का मंगेतर आर्मी में ही अफसर है बहुत जल्दी उन दोनों की शादी होने वाली है ।

अगले दिन कर्नल फिर ऑफिस जाता है , इधर स्टेला के मंगेतर की ड्यूटी उस जगह पर लगा दी जाती है जहां समुद्री बेड़े से दुश्मनो का हमला होने वाला है , एक भयानक युद्ध के बाद स्टेला का मंगेतर वीरगति को प्राप्त हो जाता है ,ये खबर कर्नल तक पहुँचती है , कर्नल इस बात को दबाने की कोशिश करता है मगर ये बात स्टेला को पता चल जाती है , वो मंगेतर की मौत का सदमा बर्दास्त नहीं कर पाती है , और एक रात उसी आम के पेड़ से फांसी पर लटक कर अपनी जान दे देती है , ये बात कर्नल के दिमाग में घर कर जाती है , वो उस आम के पेड़ को काटने का निश्चय करता है मगर , असफल हो जाता है , और एक रात जब कर्नल अपनी कार खुद चलाता हुआ अपने घर की तरफ जा रहा था , तो रास्ते में अचानक उसकी गाडी के सामने एक बहुत बड़ा व्यक्ति आ जाता है , जो की सफ़ेद वस्त्र धरण किया हुआ है उसकी लम्बाई लगभग १२ फ़ीट की थी , तभी मौसम साफ़ होने के बावजूद भयानक तूफ़ान आजाता है , और कर्नल की गाडी बहक कर उसी मैदान की तरफ मुड़ जाती है , जिस मैदान में वो पिशाच वाला आम का पेड़ था , और सामने पेड़ के आते ही एक भीषण टक्कर के साथ गाडी आम के पेड़ से टकरा जाती है , और कर्नल वहीँ बेहोश हो जाता है ।

सुबह जब कर्नल की आँख खुलती है , तो सामने बीवी को खड़ी पाता है वो उसके लिए चाय लेकर आती है , और पूछती है

कल रात आप कब आये मुझे पता ही नहीं चला , कर्नल पूछता है मुझे रात में यहां कौन लेकर आया , कर्नल की बीवी बोलती है मुझे क्या पता मुझे तो लगा आप खुद आये है , आपने मुझे जगाया भी नहीं कर्नल फ़ौरन आईने में अपना चेहरा देखता है , उसके चेहरे में या शरीर के किसी अंग में चोंट का कोई निशान न पाकर वो आश्चर्यचकित रह जाता है , वो फ़ौरन गराज में खड़ी अपनी गाडी देखता है , वो भी बिलकुल सही सलामत थी , तब वो कमरे में वापस आकर अपनी बीवी को रात की सारी घटमा का वृत्तांत बताता है , कर्नल की पत्नी कहती है , यहां के लोग जो बोलते हैं वो गलत नहीं है , देखो जी आपने सिद्ध बाबा कचबूतरा तुड़वा कर सही नहीं किया उसका गंभीर परिणाम हम भुगत चुके हैं , हमारे जवान बेटे बेटियां उन्ही के शाप की वजह से अकालमृत्यु मारे गए , मैं नहीं चाहती की आप को भी कुछ हो जाए , कृपया आप उस जगह पर एक बार फिर से चबूतरे का पुनः निर्माण करवा दीजिये , ताकि आम के पेड़ वाले पिशाच का आतंक ख़त्म हो सके , और ये सिर्फ तभी संभव है जब सिद्ध बाबा को उनका उचित स्थान वापस दे दिया जाए ।

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पत्नी की बात कर्नल के दिमाग में घर कर जाती है , वो दूसरे ही दिन उस जगह पर एक भव्य चबूतरे का निर्माण कार्य सुरु करवा देता है , और वो स्थान आम जनता की पूजा वंदना के लिए खोल दिया जाता है , धीरे धीरे उस जगह पर एक महान तीर्थस्थल का निर्माण हो जाता है , जिसके चलते उस जगह पर आये दिन भक्ति संगीत के कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है , और जिसके कारण उस आम के पेड़ पर रहने वाले पिशाच का आतंक भी समाप्त हो जाता है , आज देश की आज़ादी के बाद भी वर्तमान समय में सिद्ध बाबा के चबूतरे के पुनः निर्माण का उल्लेख शिलालेख में देखने को मिल जाता है ।

pix taken by google ,