white tiger safari mukundpur satna madhya pradesh adventures journey

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white tiger safari mukundpur satna madhya pradesh adventures journey

२०१६ में जब सुना की रेवा में सफ़ेद शेर आने वाला है दिल की बेचैन सम्हालते बड़ी उत्सुकता था टाइगर को आमने

सामने देखने की , इसके पहले बाघ देखने की लालच में बांधवगढ़ नेशनल पार्क की ख़ाक बहुत पहले भी छान चुका था ,

एक दिन जिप्सी से दुसरे दिन हांथी से मगर जंगल के राजा ने दर्शन नहीं दिए , आखिर कार थक हार कर जब गार्ड साहेब

ने कहा की साहेब गर्मी के दिन में बाघ के दर्शन बहुत कम ही होते हैं , मैदान छोड़कर हमें वहाँ से कूच करना पड़ा , मगर

बाघ देखने के लिए हम बचपन से लालायित रहे , और आखिर कार एक सर्कस हमारे शहर में आया हमने सोचा अब तो

बाघ को देखेंगे ही सर्कस का आखिरी दिन था , उस समया हम १२ क्लास में रहे होंगे , बस बाघ का शो सुरु होने ही वाला

था की झमाझम बारिश हो गयी , और आखिर कार बाघ देखने का अरमान दिल ही दिल में घुट के रह गया ,

 

नकुल बाड़े के अंदर चहल कदमी करता हुआ

 

 

अब हम मन में सोच चुके थे की सर्कस में भी शेर दिखने बंद हो गए सरकार ने बंद कर दिया है अब शायद ये जनम बिना

शेर के दर्शन के ही जीना पड़ेगा , तब मम्मी समझाती की जब तुम डेढ़ साल के थे तब तुमने मोहन को देखा था मोहन के

बाड़ा गोविंदगढ़ में, मैं बोलता अच्छा फिर पापा बोलते जब तुम चार साल के थे हम मंडला जा रहे थे तो हमारी बस के

सामने शेर आ गया था , ड्राइवर ने बस रोक दी थी , ये सुनकर मैं मन ही मन दिल को तसल्ली देता , चलो मम्मी पापा

बोल रहे हैं तो सच ही होगा , मगर दिल कम्बख्त कहाँ मानता है , खैर दिन गुज़रे साल गुज़रे दिल से शेर देखने की

उम्मीद ख़त्म हो चुकी थी ,

 

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साल २०१६ मेरा भांजा अक्षय रीवा आया उसने पेपर में पढ़ा होगा रीवा में व्हाइट टाइगर सफारी खुल गया है , वो आते ही

बोला आज टाइगर देखने चलना है , मैंने सोचा चलो आखिर शेर को देखने का मौका आ ही गया , मई की चिलचिलाती

दोपहर , गाड़ी आग की तरह तप रही थी , रीवा से लगभग १५ किलो मीटर की दूरी पर है मुकुंदपुर , जहां आप बेला से

और गोविंदगढ़ से भी जा सकते हैं यहां से ये लगभग ९ किलोमीटर है , हम तपती दोपहर में आखिर कार मुकुंदपुर पहुंचे

दिन बुधवार का था टाइगर सफारी बंद था , गार्ड ने बताया बुधवार के दिन और , नेशनल हॉलीडेज में टाइगर सफारी बंद

रहता है , हमे एक बार फिर बिना टाइगर देखे लौटना पड़ा , मुहे लगा की शायद दो टाइगर का आमना सामना बहुत

मुश्किल है ,

 

 

मेरा भांजा उदास हो गया बेचारा , खैर उस दिन के बाद हर रोज़ न्यूज़ पेपर्स में पढ़ने को मिलता था की व्हाइट टाइगर सफारी में 

आज इतने जानवर आये उतने जानवर आये , दिल में देखने लालसा थी मगर इतना पास होते हुए भी कभी कोशिश नहीं

की अब दुबारा व्हाइट टाइगर सफारी जाना है , २०१७ भी गुज़र गया , २०१८ में मेरा भांजा एक बार फिर गर्मियों की

छुट्टियों में रीवा आया   , इस बार वो फिर व्हाइट टाइगर सफारी जाने का पूरा मन बना के आया था , आखिर कार एक

बार फिर गाड़ी का रुख मुकुंदपुर की ओर किया गया , गर्मी थी मगर टाइगर दखने का जूनून दिल को सुकून पंहुचा रहा

था , गाड़ी हमने पार्किंग में लगाई , दोपहर का डेढ़ बजा था , काउंटर से टिकट ली ५ साल तक के बच्चों का किराया नहीं

लगता ,

 

अंदर खाने की कोई वस्तु ले जाना वर्जनीय है , तलासी के बाद इलेक्ट्रिक गाड़ी आई जिससे हमे पहले तीन बाड़े बाद मे

दिखाने का वादा करके आगे के तीन बाड़ों के दर्शन कराये गए जिनमे चीता , भालू और तेंदुआ थे , गर्मी बहुत थी वो

आर्टिफीसियल गुफाओं में आराम फरमा रहे थे , उन्हें देखकर हमें भी लगा , हम ख्वामख्वाह दोपहर में परेशान हुए घर में

आराम करना था , गाडी हमें उस गेट के पास ले गयी जहां सुरु होता है असली मोहन व्हाइट टाइगर सफारी , वहाँ हमें १०

मिनिट तक और पैसेंजर आजाने का वेट करने के लिए कहा गया , जहां हमने रीवा रियासत और व्हाइट टाइगर के

इतिहास की जानकारी को पढ़ा की कैसे व्हाइट टाइगर के पहले पूर्वज मोहन को महाराजा मार्तण्ड सिंह जू देव ने पाला

और दुनिया भर में व्हाइट टाइगर की प्रजाति को आगे बढ़ाने में प्रमुख योगदान दिया , वहां लिखी जानकारी के अनुसार

मोहन ही दुनिया भर के तमाम व्हाइट टाइगर का पूर्वज है उसका अंतिम संस्कार भी महाराजा मार्तण्ड सिंह के

आदेशानुसार राजकीय सम्मान के साथ किया गया था , मोहन को महाराजा मार्तण्ड सिंह जू देव ने गोविन्द गढ़ के किले

में पाला था ,

 

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मोहन को जिस जगह पर रखा गया था उस जगह का नाम था मोहन का बाड़ा , ये सभी जानकारियां पढ़कर दिल को

बड़ा गौरव महसूस हुआ , लगभग १० मिनिट बाद गाड़ी वाले ने हमे चलने को कहा हम दौड़कर फ़ौरन वन में जा बैठे वैन

को बाद कर दिया गया , गाड़ी वाइट टाइगर सफारी के अंदर शेर ढूढ़ने में लग गयी वाइट टाइगर सफारी लगभग ६४ एकड़

के एरिया में बना है , बहुत जल्दी व्हाइट टाइगर के दर्शन हुए वो हमसे २० फ़ीट की दूरी पर था , वो एक मादा शेरनी थी

जिसका नाम राधा था , ड्राइवर जब पास गाड़ी लेकर गे तो राधा ने एक नज़र हमको देखा फिर सो गयी , वो पानी के

किनारे आराम फरमा रही थी , लगभग १० मिनिट देखने के बाद ड्राइवर ने वैन को आगे बढ़े एक गहरे नाले के किनारे रघु

दूसरा व्हाइट टाइगर आराम से लेट हुआ था ड्राइवर ने रघु को आवाज़ लगाई रघु एक बार मुंडी उठा के देखा फिर सो गया

, वो आराम से सोने के मूड में था , हमने काफी देर तक उसे देखा लगभग २० मिनिट बाद हम वापस लौटे ,

 

 

हमारी टिकट पर पंचिंग हुयी , फिर इलेक्ट्रिक वैन से हमे सुरु के तीन बाड़ो के पहले छोड़ दिया गया , बोला गया की अब

आप इन तीनो बाड़ों को पैदल देखिये , हमने पहले बाड़े में फिर दो व्हाइट टाइगर को देखा , दूसरे में दो बब्बर शेर थे ,

तीसरे में बंगाल टाइगर था , देखकर सबने कहा भाई आज तो पैसा वसूल हो गया , मुझे भी लगा तक़दीर सही थी सब

तरह के शेर एक साथ देखने को मिल गए आखिर जन्म सफल हुआ , व्हाइट टाइगर सफारी २०२२ तक पूरी तरह से तैयार

होगा , इसमें हर दिन नए जानवर लाये जा रहे हैं , यहां काला हिरन , और हिरन की बहुत सी प्रजातियां हैं जिन्हे आप

देख सकते हैं । व्हाइट टाइगर सफारी से लौटते वक़्त हम लोगों ने गोविंदगढ़ के मशहूर सुन्दरजा आम का लुत्फ़ लिया ,

गोविंदगढ़ के तालाब को देखा जो बहुत बड़ा है , यहां गोपाल बाग़ भी है जिसमे बोटिंग की जा सकती है , इसके बाद हम

अपने घर रीवा आ गए ।।

 

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