बर गयो जस खलिहान दुपहरी मैं बिरहन तस वारी रे,
बर गयो जस खलिहान दुपहरी मैं बिरहन तस वारी रे,
मंत्र मुग्ध श्यामल अधिलोचन अँसुअन भर नैना तोहे निहारी रे ।
श्याम बरन बादल पर मर मिटी ,
धमक भड़क चमकत जस बिजरी भाव भंगिमा तेज़ लालिमा जियरा पर बनी गाज गिरी।
रात की लज्जित उपेछित मैं प्रखर वो राग हूँ ,
साज़ सब रुदन करने लगे जब मैं शहर की शाम हूँ ।
राह टुकूरते तोहरी सवरिया ,
सुबह ठुमकते शाम चली रात अँधेरी जस जस सवरी मैं बिरहन कोयला जल जस राख भई ।
वक़्त बेवक़्त तोरे नैना फैलाएं पंचायत ,
बिन जमादार दरोगा न देखें दिन दोपहर सुबह ओ शाम ।
वक़्त के साथ चौपाल सिमटी फरिका कुनमा में है परिवार ,
अब इंतज़ार है कब मरे पडोसी कुलिया बड़ी साँकर होत हमार।
खलीफा के खलीसा का वो जो टूटा था गुदाम ,
झुकते ही बच्चों ने लूट ली खट्टी मीठी गोली बंटों की दुकान ।
टांग दिहिन खूँटिन मा गेरमा बर्दा छुट्टा करके ,
सांझ धुँधुरके लौट आना अटक न जाना कहीं चिलम पी कर के ।
खेप दर खेप नींदें सपन को खरपतवार उखाड़ ,
भोर भये न हाँथ कछु छूँछ भये बैराग ।
सावन जर गयो राह तकत तोरी ,
बदरा जस कुम्हलायो रूप रंग नवयौवन भर के रस फुहार बरसायो ।
रैना न गुज़री मुई भोर खड़ी तकती रहे ,
अजहू न आये काहे श्याम कहूँ और भिड़े नैना लिए ।
बतियाँ बीती रतियाँ बीती हम भी जैसे बीत गए ,
ऊब गए हो हमसे सजन अब या कह दो हमरी मोहब्बत से तुम रीत गए ।
पनघट मा भरे पनिया आँचल से झलके है करधनिया ,
मंद मंद मुस्कान तोरी करे मोरे दिल के संग ठिठोली ।
बड़ा पाँव हाथिन के पाएंन पाएन समाय ,
भरी सभा अपना के हमहूँ समाये आये ।
हलुक चलें हलकइयाँ गुरू चले दबाये भार ,
धार समुन्दर का जल बहै जौनौ थिराय थिराय ।
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