सरगोशियों से क़त्ल होते हैं इश्क़ करने वाले romantic shayari,
सरगोशियों से क़त्ल होते हैं इश्क़ करने वाले ,
लबों पे न गिला शिकवा न दिलों के दिखते हैं छाले ।
उल्फ़त ए दौर में ज़बान और लफ्ज़ संग चल नहीं पाते ,
जो एक सम्हलता है कमबख्त दूजा लड़खड़ाता है ।
मत पूछ मेरे दिल से ग़ालिब का ख्याल क्यों आया ,
नज़रें उठा के तूने आशियाना ए दिल को ढहाया ।
तन्हाइयों में हवा संग ख़ुश्बू ,
सरगोशियों में तेरे शहर का हाल ए मुआइना होता है ।
हो जश्न मुबारक़ तुझे मेरी तबाही का ,
गोया गर मर्ज़ी तेरी इसी में है मैं हर रोज़ ख़ुदकुशी करूँ ।
कुछ सम्हाला गर्दिशों ने कुछ हमने हिम्मत की ,
ले देके गनीमत थी मंज़िल ए मक़सूद हुए हैं ।
ता उम्र अपनों को छनवाई ख़ाक आँखों से ,
जो गैरों के लिए दिल में मोहब्बतों का गुबार लिए फिरते हैं ।
लिबास बदलने से कोई पाक नहीं होता ,
दिल से साफ़ होना पड़ता है ख़ुदा की बंदगी के लिए ।
बिन तेरे बहारों में हिना रचती नहीं ,
अब तो हर मौसम खिज़ा का लगता है ।
दिल में सावन भादौ की झड़ी लगती है ,
गोया आँख हैं जो दो बूँद छलकती भी नहीं ।
हमने शराब क्या छोड़ी ,
मैक़दे दर पे हमारे खुद ही लड़खड़ाते चले आये ।
कूत भर तोंद सम्हाली नहीं जाती ,
अब बच्चे कहते हैं चच्चा फाइटर टोड बनो ।
डस गयी रात बैरन नागिन बनकर ,
काली ज़ुल्फ़ों सी घनेरी थी कहीं पानी न मिला ।
हसरत अभी भी है मेरे जनाज़े में वो आएँ ,
मुस्कुराएँ हमें देखकर गोया ताकि चैन से हम सो पाएँ ।
माँ से सुबह हो मेरी माँ से ही शाम हो ,
अब किस ख़ुदा की बंदगी से मामला तमाम हो i
यूँ सोख निगाहों से न जलवा बिखेरो यार ,
मुमकिन है आगे और भी दिल ए सब्ज़ बाग़ हरे हों ।
उलझी उलझी लटों में फिर उलझ गयी रात ,
वो सुरमयी आँख के इशारे तिलिस्म बातों का ।
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