सारा का सारा शहर ख़ौफ़ज़दा था alfaaz shayari ,
सारा का सारा शहर ख़ौफ़ज़दा था ,
सारे के सारे शहर में शाम से चीखें गूँज जाती हैं ।
होते होंगे लोग ख़ुशनुमा मौसम ए बहार पर ,
है उनके वास्ते ये ओलों की बयार जिनके सर पर छत नहीं ।
कभी तेरी तस्वीर से भी हमको इश्क़ ए बेइंतेहाई थी ,
अब रूबरू ए जबीं में भी वो बात नहीं है ।
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दिन रात लिखूं अम्बर पर रूप तेरा सादा ,
समंदर को स्याही कर दूँ उस पर भी लगे जोबन तेरा ज़्यादा ।
जिश्म रेज़ा ही सही किरदार झीना तो नहीं ,
की शर्द हवा के झोकों से जान मेरी सूख ही जाए ।
ता उम्र का वाक़िया ये रहा ,
न शहर अपना रहा न अIब ओ हवा अपनी रही ।
खूबसूरत चेहरों से खूबरु ए नज़रों की उम्मीदगी कैसी ,
ज़माने की हवाओं से अदावतों की बदबू सी आती है ।
वक़्त की नज़ाक़त ने आब् ओ हवा क्या बदली ,
सारा का सारा ज़माना अंग्रेजी बोलने लगा ।
मोहब्बत की तासीर ऐसी है ,
जब उड़ती है बे पर हवाओं में बात चलती है , जब लुटती है ज़मीन ए ख़ाक तक नहीं मिलती ।
ग़र उसके दम से दम भरती है शहर भर की हवा ,
हमIरा इश्क़ पाके वो मग़रूर न हो हैरत की बात है ।
शहर भर की खुली हवा में दम घुटता है ,
चार दिवारी में बस तहजीबें महफूज़ बचती हैं ।
शर्द हवाएं सरगोशियों में बात करती हैं ,
जब तेरे कान की बाली मेरे नाम से चहक के झूम जाती है ।
शर्म का ज़ामा हटा कर ,
बड़ी बेहयाई के साथ हर रात की खैरात हर रोज़ बंटती है ।
आप ज़िंदा हो यही क्या कम बात है ,
गोया मुर्दों के जिश्मों से यहाँ क़फ़न खींचने की रवायत है ।
गुस्ताख़ निगाहों की बद्तमीज़ी,
शर्म से हर शाम अपनी इज़्ज़त बच बचा कर के निकलती है ।
हर रोज़ अँधेरे की दस्तक देती शाम ,
फुटपाथ में सोने वालों में वही दहशत , फिर कोई वहशी दरिंदा रौंद डालेगा ।
जाने कब होगा सवेरा या कभी होगा भी नहीं ,
जाने कब सुरमई शाम दिलों की वेहशत में बदल जाती है ।
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शाम को हर रात का इल्म होता है,
लब पे आने से पहले ही तेरा नाम ज़ाम थमा देती है ।
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