सारे शेर ही बचे हैं जिगर के टुकड़ों में sad shayari,
सारे शेर ही बचे हैं जिगर के टुकड़ों में ,
थे जो अरमान तह ए दिल में वो भी लेके गया ।
तमाम उम्र हसरतें यूँ ही जलती बुझती रही ,
रूबरू ए माहरू हो तो सुकून दिल को मिल जाए ।
हम तो आशिक़ थे इश्क़ में बर्बाद हुए ,
तुमने क्या गुनाह किया गोया जो ग़म ए ख़रीदार हुए ।
डर से सिहर उठती हैं तन्हा रातें ,
बेख़्याली में भी गर तुझसे जुदा होता हूँ ।
बदस्तूर था रात का तन्हा कटना ,
तू भी तो सेहर तक नहीं आया ।
मुबारक़ हों ख़्वाब उनको जन्नतों वाले ,
हम दिल के अंजुमन में हज़ारों चाँद तारे सजाये बैठे हैं ।
शाम ए सरगोशियों की गूँजती सी ग़ज़ल ,
अधखुले नैनो में तेरे अधरों की प्यास सिमट आई है ।
चराग जलने दो रौशनी का सफ़र अच्छा है ,
वो अँधेरे हैं दिलों के रास्ते तबाह कर देगे ।
ये जो वादियों में हैं दूर तक सल्तनतें हरी भरी ,
तारीफ़ ए हुक़ूमत में सुख़नवर की कम पड़ जाए न झड़ी ।
दिल को हदें पार करने दो आज मौसम है बेईमान ,
परिंदों के परों को न रोको आज गोया देखो सरहदों के पार भी है परवाज़ इनकी ।
साँझ ढलते ही तेरी यादों का चौखट पर आना ,
गोया रात फिर ज़ख्म ए गिरफ्तार हुयी है जैसे ।
बागन में कूके कोयलिया मगन मयूरा नाचे भिन्न भिन्न ,
सावन मोरा जर गयो रतियन मा बदरा जब गरजे छिन्न छिन्न।
रात करवटों में बदल जाती है ,
दिन सिलवटों में उलझ जाते हैं ।
गैरों से क्या गिला शिक़वा साथ कब तक निभा पाएंगे ,
ज़ख्म अपनों के दिए दूर तलक ता उम्र साथ साथ जायेंगे ।
जब से जाना ज़ख्म देना है उसकी फ़ितरत में ,
दर्द से खेलना हम भी सीख गए ।
हुकुमरानों के घर ताँता लगा है चापलूसों का ,
वतन पर मिटने वालों को कफ़न मुनासिब नहीं दौर ए सियासत में ।
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