हवालों पर हवाले हैं घोटालों पर घोटाला हैं funny political shayari,
हवालों पर हवाले हैं घोटालों पर घोटाला हैं ,
अब देखेंगे आम जनता के हिस्से में दिवाली हैं या दिवाला हैं ।
आज इसकी सत्ता हैं तो क्या कल और कोई इससे उठ न पायेगा ,
ये सियासी गोलगप्पा हैं जाने अब किसके मुँह में जाएगा ।
कुछ मुद्दे हैं जो हर रोज़ उठते हैं सियासत के गलियारों से ,
फिर न जाने किस ठौर ओझल हैं अवामों से ।
देवालयों और मज़ारों से गर बच गए होते ,
ककड़नाथ चिकन शॉप में बिक गए होते ।
भोले नाथ विष समझ कर सम्पूर्ण सोमरस पी गए होते ,
न होते बच्चे यतीम न उजड़ते बेवाओं के सुहाग न रास्तों पर रोज़ इतने हादसे हो रहे होते ।
कभी ग़मगीन होती होगी रातें भी फकीरों की ,
कभी ख़्वाबों में उनके मेनका रंभा का रसराग होता होगा ।
कभी खिलते होंगे गुलों में गुल ,
कभी देवदासियों का भी शृंगार होता होगा ।
अभी नेता जी चुप हैं कभी श्रोता जी चुप थे ,
क्या सोचा हैं बस यूँ ही चुपचाप में सियासी जनाज़ों का क़ाफ़िला निकल जायेगा ।
फिर मिल बाँटकर सियासत के गलियारे में ,
आम जनता का निवाला उड़ाया जायेगा ।
क़लम जब भी लिखती हैं अवाम ए हालात की बातें ,
मेरे रोने से पहले क़लम आँसू बहाती हैं ।
बड़ी ख़ामोश रहकर भी तरास लेती हैं नए लहज़े ,
फिर अपनी नाकाम कोशिशें कागज़ पर उतारती हैं ।
कभी खड़ी होती हैं तलवार ले ले कर ,
कभी आँसू बहाकर खमोश सी बैठ जाती हैं ।
जैसे फ़िक़्र हो इसको ज़माने भर की ,
इक उम्र के बाद हर सै सम्हलती हैं ।
ये वक़्त दर वक़्त ख़ुद बा ख़ुद क़लम और तेज़ चलती हैं ,
ये कहती हैं मुझे लिखने दो ।
अभी तो एक तज़ुर्बा आया हैं ,
फिर कहती हैं अभी मैं सीखती हूँ हर रोज़ ये ख़्याल ए वक़्त का सरमाया हैं ।
अथक परिश्रम से थक गयी होगी ,
यही सोच कर मैं इसे अब विश्राम देता हूँ ।
अल्प विराम हैं ये पूर्ण विराम नहीं ,
क़लम की सहादत हैं सर आँखों पर क़ायर हो हरगिज़ ये ऐतबार नहीं ।
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