अधूरी चीख़ हिंदी हॉरर स्टोरी ,
डॉ. अजय वर्मा एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक था। उसने अपनी पूरी ज़िंदगी एक ऐसे सीरम की खोज में लगा दी थी जो इंसान की ताक़त को कई गुना बढ़ा सके। उसकी पत्नी, रीमा, और दो बच्चे — आरव और गुड़िया — उसे बहुत चाहते थे, लेकिन वे अक्सर उसकी प्रयोगशाला में की जाने वाली खतरनाक रिसर्च से डरते थे। एक रात, अजय ने एक नया फॉर्मूला तैयार किया, जिसे वह “लूनासेラム” कहता था। ये सीरम चाँद की रोशनी में शरीर को असाधारण शक्तियाँ देने वाला था। उसने खुद पर इसका परीक्षण करने का निर्णय लिया। जैसे ही उसने सीरम अपने शरीर में इंजेक्ट किया और खिड़की से चाँद की रोशनी उसके ऊपर पड़ी, उसका शरीर बुरी तरह से काँपने लगा। उसकी हड्डियाँ टूटने और जुड़ने लगीं, उसकी आँखें पीली हो गईं, और देखते ही देखते वो एक भयानक भेड़िया बन गया। अजय अब अर्ध-मानव, अर्ध-भेड़िया प्राणी बन चुका था — एक वेयरवुल्फ। शुरू में वह खुद को काबू में रख पाया, लेकिन हर पूर्णिमा की रात वह uncontrollable हो जाता और जंगलों में भाग निकलता। सरकार को जैसे ही इस डरावनी घटना का पता चला, उन्होंने उसे “राष्ट्र की सुरक्षा के लिए ख़तरा” घोषित कर दिया और उसे मारने के आदेश दे दिए। लेकिन अजय की पत्नी रीमा जानती थी कि उसके अंदर अभी भी इंसान ज़िंदा है। वह अपने बच्चों के साथ उसे बचाने की योजना बनाने लगी। उन्होंने उसे छिपा लिया, उसके लिए एक सुरक्षित तहखाना बनाया, और हर पूर्णिमा की रात उसे जंजीरों में बाँध देते। लेकिन एक रात, सरकार को उसके छिपने की जगह का पता चल गया। कमांडोज़ आए। गोलियाँ चलने लगीं। रीमा, आरव, और गुड़िया अजय के सामने खड़े हो गए। “अगर उसे मारना है,” रीमा चिल्लाई, “तो हमें भी मारो।” अजय की आँखों में आँसू आ गए। अचानक, उसने खुद को एक बार फिर इंसान में बदल लिया — शायद परिवार के प्रेम की ताकत से। सरकार चौंक गई। अब वे उसे एक वैज्ञानिक के रूप में नहीं, एक चमत्कार के रूप में देखने लगे। लेकिन वो सीरम… अब भी कहीं सुरक्षित रखा है… और अगली पूर्णिमा फिर आने वाली है। अजय वर्मा का आविष्कार का जूनून शांत होने का नाम नहीं ले रहा था उसके कदम महाविनाश की तरफ निरंतर बढ़ रहे थे , एक बार वो पुनः अपने आविष्कार को कारगर करने में जुट जाता है ,
“अधूरी चीख़” डॉ. अजय वर्मा एक होनहार वैज्ञानिक था — तेज़ दिमाग, देशभक्ति से भरा दिल और एक सपना: इंसान को हर बीमारी से लड़ने के लायक बनाना। उसने “लूनासेराम” नाम की दवा बनाई, जो चाँद की ऊर्जा से इंसान को अतिमानवी शक्ति दे सकती थी। उस रात जब सब सो रहे थे, अजय ने अपने लैब में खुद पर परीक्षण किया। जैसे ही उसने सीरम इंजेक्ट किया और चाँद की किरणें उस पर पड़ीं… उसकी नसों में आग सी दौड़ गई। वह ज़मीन पर गिरा, दर्द से चीखा — लेकिन उसकी आवाज़ इंसानी नहीं रही। उसकी हड्डियाँ टेढ़ी-मेढ़ी होकर फटने लगीं। नाखून पंजों में बदल गए, शरीर पर मोटे काले बाल उग आए, और उसकी आँखों में इंसानियत की जगह एक भूखी जंगली चमक आ गई। वह अब इंसान नहीं रहा था। वह एक खूँखार भेड़िया बन चुका था। उस रात उसने होश खो दिया। सुबह जब उसकी पत्नी रीमा और बच्चे लैब पहुँचे, वहाँ दीवारों पर पंजों के निशान थे, फर्श पर खून के छींटे थे… और एक सुरक्षा गार्ड की लाश। अजय को कुछ याद नहीं था — पर उसका चेहरा डर, पछतावे और पागलपन से भरा था। हर पूर्णिमा की रात वो राक्षस में बदल जाता। और हर बार उसका शिकार कोई मासूम बनता। रीमा उसे बचाना चाहती थी, पर अब वो डरने भी लगी थी।
उसके बच्चे छिपने लगे थे। अजय की आत्मा अंदर से चीखती, पर शरीर पर अब हैवान का कब्ज़ा था। सरकार ने इस
“क्रूर जानवर” को ढूंढ निकालने और मार गिराने का आदेश दे दिया। लेकिन डरावना मोड़ तब आया, जब एक रात अजय ने खुद अपने बच्चे पर हमला कर दिया — बिना ये जाने कि वो कौन है। गुड़िया के शरीर पर उसके पंजे के ज़ख्म थे। रीमा का दिल टूट गया। लेकिन वो जानती थी — ये अजय नहीं था। ये वो राक्षस था जो उन्होंने खुद बनाया। अब सवाल ये था: वो अपने प्यार को बचाए या उस राक्षस को खत्म करे जो उसके अंदर पनप गया था? उसने अजय को एक तहखाने में कैद कर दिया, और हर चाँदनी रात उसे लोहे की ज़ंजीरों से बाँध देती। लेकिन एक रात… चाँद पूरा था… ज़ंजीरें कमज़ोर थीं… और तहखाने का दरवाज़ा खुला रह गया… अगली सुबह पास के गाँव में 6 लोग मरे पाए गए — उनके शरीर ऐसे नोचे गए थे जैसे किसी जानवर ने उधेड़ दिए हों। अजय अब खो चुका था। पर रीमा अभी भी उम्मीद किए बैठी है — “कहीं न कहीं… मेरा अजय अब भी जिंदा है… गाँव की लाशों की खबर जंगल से होते हुए राजधानी तक पहुँच गई। अब ये सिर्फ एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं थी — ये एक राष्ट्रीय संकट बन चुका था। सरकार ने “ऑपरेशन शून्य” शुरू किया — आदेश साफ़ था: “मरे या ज़िंदा, उस राक्षस को ढूंढो और खत्म करो।” रीमा जानती थी, अगर उसने अब कुछ नहीं किया, तो अजय मारा जाएगा — या फिर वो किसी और मासूम की जान ले बैठेगा। उसने बच्चों को रिश्तेदारों के यहाँ भेजा और खुद अजय की पुरानी रिसर्च लेकर लैब में घुस गई। वो अब सिर्फ एक पत्नी नहीं थी — वो एक वैज्ञानिक थी… और एक माँ… जो अपने पति की आत्मा को हैवान के शरीर से छुड़ाना चाहती थी। अंधेरे में तलाश रीमा ने खुद पर रिसर्च शुरू की। अजय की नोटबुक में कुछ इशारे थे — “सीरम चाँद की पराबैंगनी तरंगों से सक्रिय होता है…” “कभी-कभी इंसान की भावनाएँ मेटामॉर्फोसिस को रोक सकती हैं…” “लेकिन यह तभी होगा जब राक्षस खुद… मरना चाहे…” उसने एक नया सीरम तैयार किया — “लूनारिवर्स”, जो लूनासेराम को निष्क्रिय कर सकता था। लेकिन एक शर्त थी — इसे भेड़िए के दिल में सीधे इंजेक्ट करना होगा। यानी उसे अजय के सामने जाना होगा… पूर्णिमा की रात। आखिरी रात उस रात, पूरा जंगल घना कोहरा ओढ़े सो रहा था। चाँद आसमान में लहू जैसा लाल दिख रहा था। रीमा ने खुद को एक लोहे की जाली से घेर लिया, हाथ में सीरम की मोटी सी सिरिंज पकड़े। भेड़िए की आवाज़ गूंजने लगी — गले से निकली दबी हुई चीख़, जैसे इंसानियत अंदर से मरने से पहले चिल्ला रही हो। और तभी वो आया। अंधेरे से निकलता हुआ, लाल आँखों, खून से सने पंजों और दहाड़ के साथ। अजय नहीं… अब वो पूरी तरह राक्षस था। रीमा ने सिरिंज उठाई। “अजय… अगर तू अब भी मुझे सुन सकता है… तो रुक जा। मैं तुझे बचाने आई हूँ… या खुद को तेरे हाथों मारने।” भेड़िया रुका। उसकी आँखें काँपीं। पलभर को उसकी सांसें थमीं। पर तभी उसने दहाड़ मारी और लोहे की जाली तोड़ दी। रीमा ने दौड़ते हुए उसके सीने में सिरिंज घोंप दी — और… वक़्त रुक गया। भेड़िया चिल्लाया, उसकी चमड़ी फटने लगी, आँखों से खून बहने लगा… और अचानक वो ज़मीन पर गिर गया। सन्नाटा। धीरे-धीरे उसका शरीर फिर से इंसान में बदलने लगा। अजय — लहूलुहान, थका हुआ… पर इंसान। “रीमा…” उसने फुसफुसाया… और बेहोश हो गया। अब… सरकार जब पहुँची, उन्हें वहाँ कोई राक्षस नहीं मिला — सिर्फ एक अधमरा वैज्ञानिक और एक बहादुर औरत। अजय को एक सीक्रेट फैसिलिटी में ले जाया गया। सरकार ने सच्चाई को दबा दिया। “कहानी खत्म हो चुकी थी” — ऐसा सबको बताया गया। पर रीमा जानती थी… हर पूर्णिमा के बाद अगली पूर्णिमा ज़रूर आती है। और कहीं न कहीं… उस राक्षस की भूख… अब भी साँस ले रही है।
जब सरकार को यह अहसास हुआ कि अजय सिर्फ एक राक्षस नहीं, बल्कि अलौकिक शक्ति से युक्त एक अस्थिर प्राणी है
— तब उन्होंने फैसला किया कि इंसानी पुलिस या सेना उसके खिलाफ कुछ नहीं कर पाएगी। इस बार भेजी गई — H.U.N.T (Humanoid Unit for Neutralizing Threats) एक खास ह्यूमनॉइड रोबोटिक बल — बिना भावनाओं के, सिर्फ आदेश मानने वाली मशीनें। इन मशीनों को खासतौर पर अजय जैसे प्राणियों को खत्म करने के लिए तैयार किया गया था। उनमें थर्मल सेंसिंग, सोनिक वेपन, और एनर्जी प्रोजेक्टर लगे थे — जिनसे इंसान तो क्या, एक बंकर भी फट सकता था। — रक्त की बारिश पूर्णिमा की रात, घना जंगल… अजय अब पूरी तरह से हैवान बन चुका था। अब वह अपनी पहचान भी भूल गया था। H.U.N.T यूनिट जंगल में उतरी। रोबोट्स बिना आवाज़ के पेड़ों के बीच चल रहे थे। उनके स्कैनर अजय की मौजूदगी को ट्रैक कर चुके थे। और फिर… शुरू हुआ नरक का दरवाज़ा खुलना। अजय ने एक रोबोट पर छलांग मारी, उसे टुकड़ों में फाड़ डाला। दूसरे रोबोट्स ने उसकी ओर एनर्जी-बीम दागी, जिससे पेड़ जल उठे, पर अजय अपनी अलौकिक गति से बच गया। वो अब सिर्फ भेड़िया नहीं था… वो एक युद्ध मशीन था। रोबोट्स उसे घेरने की कोशिश करते, लेकिन हर बार वो उनकी कमजोरी भांपकर उन्हें चीर डालता। तीन रोबोट्स तबाह… चार जख़्मी… और बाकी भागने को मजबूर। पर तभी H.U.N.T की अंतिम यूनिट आई — Model-X9, एक रोबोट जो इंसान की तरह सोच सकता था। उसने अजय को फँसाने के लिए उसकी पत्नी रीमा की नकली आवाज़ का इस्तेमाल किया: “अजय… रुक जा… मैं हूँ रीमा…” अजय ठिठका। उसकी आँखें काँपीं। पर अगले ही पल वो चीख़ता हुआ उस रोबोट पर टूट पड़ा। भयानक टक्कर हुई। Model-X9 ने उसके पंजे रोक लिए। एन्टी-वोल्टेज करंट छोड़ा। अजय ज़मीन पर गिरा… तड़पता हुआ… मगर जिंदा। रीमा जंगल के छोर से भागती आई। उसके हाथ में था “लूनारिवर्स” — अंतिम मौका, अंतिम उम्मीद। “अजय… मुझे देखो… मैं हूँ रीमा… अगर कहीं अंदर से तू अब भी मुझे सुन सकता है… तो मत लड़… बस एक बार रुक जा…” अजय की आँखें लाल से पीली हुईं… फिर थोड़ी नम… Model-X9 ने कहा: “तुम्हारे पास 5 सेकंड हैं, फिर मैं टारगेट खत्म कर दूँगा।” रीमा दौड़ी, रोती हुई, काँपते हाथों से उसने सिरिंज अजय के दिल में घोंप दी। एक पल… फिर तड़प… अजय का शरीर काँपता रहा, आँखों से खून निकलने लगा… मगर धीरे-धीरे उसका शरीर शांत होने लगा। वो फिर इंसान बन गया। रीमा ने उसे गले से लगा लिया। Model-X9 ने कहा: “टारगेट न्यूट्रलाइज़्ड… मिशन कंप्लीट।” — अब… H.U.N.T यूनिट लौट गई। अजय अब एक सरकारी बायो-कॉन्टेनमेंट में है — सुरक्षित, नींद में। रीमा उसके पास रोज़ जाती है — उम्मीद लिए कि वो एक दिन जागेगा… और हमेशा के लिए इंसान रहेगा। पर हर बार जब पूर्णिमा आती है… उसकी पलकों में एक हल्का कंपन होता है। और जंगल अब भी डरता है…
शायद… वह वंश पूरी तरह मरा नहीं… बस इंतज़ार कर रहा है। अगली पीढ़ी में जागने के लिए। अब कहानी एक गहरे, मनोवैज्ञानिक और डरावने मोड़ पर आ रही है। अब ये सिर्फ एक ट्रैजेडी नहीं, बल्कि एक भयावह विरासत बन रही है। — रीमा को लगा कि सब खत्म हो चुका है। अजय अब इंसान के रूप में बायो-कॉन्टेनमेंट यूनिट में कैद था। हर दिन उसकी धड़कनें धीमी हो रही थीं। लेकिन एक रात… जब पूर्णिमा अपनी चरम पर थी… अजय की आँखें खुल गईं — और इस बार… वो पहले जैसा नहीं था। उसकी चेतना अब स्थायी रूप से भेड़िये की थी। — अजय की नयी सोच अब अजय के भीतर कोई द्वंद नहीं था। वो मान चुका था कि इंसान बनना एक गलती थी… और “बनाया गया भेड़िया” ही उसका असली स्वरूप है। “अगर दुनिया मुझे राक्षस समझती है… तो मैं उनका अंत बनूंगा। लेकिन अकेला नहीं — मेरा वंश मेरे साथ होगा।” उसके भीतर एक क्रूर विचार उभरा — अपनी पत्नी रीमा, बेटे आरव और बेटी गुड़िया को भी उसी सीरम से बदल देना… ताकि वो भी उसकी “नस्ल” का हिस्सा बन जाएं। अजय बंधनों को तोड़कर भाग निकला। वो अपने पुराने घर पहुँचा जहाँ रीमा बच्चों के साथ रह रही थी। सब सो रहे थे। अंधेरे में, रीमा को किसी की साँसों की आवाज़ सुनाई दी… तेज़, भारी… जानवर जैसी। वो उठी… और दरवाज़े पर वही खड़ा था — अजय। मगर इस बार उसकी आँखों में कोई पछतावा नहीं था… बस पशु जैसी भूख थी। “रीमा,” उसकी आवाज़ अब इंसान की नहीं रही, “अब तुम मेरी पत्नी नहीं… मेरी रानी बनोगी। और हमारे बच्चे… अगली पीढ़ी के शिकारी।” रीमा सन्न रह गई। “तू पागल हो गया है अजय! ये कोई परिवार नहीं, ये तो एक अभिशाप है!” “नहीं,” अजय गुर्राया, “ये प्रकृति का अगला कदम है। इंसान अब कमजोर हैं। भेड़िये अब राज करेंगे।” उसने रीमा की ओर सीरम भरी सिरिंज बढ़ाई। — माँ का निर्णय रीमा ने अपनी बेटी को पीछे छिपाया, बेटे को भागने को कहा। “अगर तुझे वंश चाहिए… तो पहले मुझे हराना होगा।” और शुरू हुई एक भीषण लड़ाई — प्रेम और पिशाचत्व के बीच। रीमा ने अजय को चकमा देकर उस पुराने तहखाने की ओर दौड़ लगाई, जहाँ पहले वो उसे बाँधा करती थी। वो जानती थी — वहाँ अब भी एक सिरिंज “लूनारिवर्स” की है, शायद आखिरी। अजय पीछे-पीछे दौड़ा — दीवारें फाड़ता हुआ, दरवाज़े तोड़ता हुआ। अंत में, जब वह उस पर झपटा… रीमा ने आँखें बंद कर के सीरम उसकी गर्दन में घुंसा दिया। अजय चीखा — इतना ज़ोर से कि खिड़कियाँ चटक गईं। उसका शरीर थरथराया, ज़मीन पर गिरा… और इस बार… वो राख में बदल गया। — अब… रीमा, आरव और गुड़िया बचे… लेकिन उस रात के बाद से उन्हें नींद में अजीब सपने आते हैं — चाँद की ओर खिंचती एक अदृश्य ताकत… गले में सूखापन… और आँखों में पीलापन। शायद…
writer and pics by ai ,