urdu ghazal in hindi महफ़िल ए रानाइयाँ तो महज़ धोखा है ,

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महफ़िल ए रानाइयाँ तो महज़ धोखा है ,

जश्न ए मातम का तमाशा हर रोज़ रहा ।

 

मैंने बेखुदी में अपना जिसे समझा तमाम उम्र ,

वही बाजू ए खंज़र मेरे सीने में पैबस्त रहा ।

 

खिज़ा के मौसम में गुज़रा था मैं सहराओं से ,

दिल में बहार ए अंजुमन गुलज़ार रहा ।

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मेरे सीने से लगकर तमाम दुश्मन मुझसे मिलते रहे ,

जो मेरे दिल को अजीज़ था वही बस दूर रहा ।

 

दिल ए बेताब ने तस्कीन ओ सुकून महसूस किया ,

गैर की बाहों में जब मेरा जमाल ए यार महफूज़ मिला ।

 

रेत् के सेहरा में किस मुशाफिर की है प्यास बुझी ,

अपने ज़ख्मों को भिगोया है मैंने अश्क़ों से तर करके ।

 

दर बदर कौन भटकता है बियाबानों में ,

मैंने रांझे की आवाज़ सुनी है सुनसानो में ।

 

रात तनहा भी कट गयी होती ,

चाँद तारों के अलावा कोई सरीक के ग़म न मिला ।

 

हम उनके दर पर तमाम हसरतें फनाह कर आये ,

जो गदा की थी कभी उसने मोहब्बतें मुझको ।

 

दिल है ज़ख़्मी फिर भी सदा ए लब निकल ही आती है ,

दूरियाँ लाख सही रिश्तों की रूहों की छुअन आज भी समझ में आती है ।

 

यूँ नहीं की याद अब नहीं आती बस खाली सांस ही ली नहीं जाती ,

नाम से उसके अब भी बरोबर ये दिल धड़कता है ।

 

धड़कनो की भी अपनी अपनी रवायतें हैं ,

यूँ राह चलते मुसाफिरों को सुनायी नहीं जाती ।

 

इश्क़ के किस्सों में पर्दानशीनों के भी नाम आते हैं ,

राज़दारी ए मोहब्बत में किसी की इज़्ज़त यूँ उछाली नहीं जाती ।

 

दम बदम सांस का आना जाना ,

ऐसा लगता है शहर भर की हवाओं में उसी की खुशबू है ।

 

ज़िक्र उसका आज भी लर्ज़िश ए माहौल बना देता है ,

बाद उसके क़यामत की उठती ग़ज़ल सम्हाली नहीं जाती ।

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जश्न ए मातम ही ज़िन्दगी है यारों ,

किसी की बसी यादें यूँ दिल की गहराइयों से निकाली नहीं जाती ।

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