एक ताज़ा रौशनी की जुस्तजू लेकर love shayari,
एक ताज़ा रौशनी की जुस्तजू लेकर ,
दिल ए नादाँ निकल आया है शब् ए बारात में सेहर की आरज़ू लेकर ।
और कितने चिलमन में छुपाओगे नशेमन अपना ,
ग़म की सीलन में हर बर्क़ भीग जाता है ।
महज़ ज़िन्दगी जीने की ख़ातिर ,
बर्क़ पर बर्क़ करता है आदमी , आदमी की ख़ातिर ।
वक़्त से रंगत बदल गयी सारी ,
जितने नज़ीद क़दीम हैं सब गुज़रे यहीं से हैं ।
गर्द चेहरों की मुस्कराहट से शब् ए महताब दमक जाता है ,
हो गर रूबरू ए क़दीम दोस्त सारा जहां गमक जाता है ।
जिसकी ख़ुश्बू ए जिस्म फ़िज़ा में सुर्खरू सी है ,
वही जुस्तजू ए यार आज मेरे रूबरू सी है ।
जदीद क़दीम किस्से तो होते रहते हैं ,
शब् ए बज़्म हर शाम नयी शमाएं रोशन होती रहती हैं ।
वक़्त की गर्द में ढक जायेगा ,
क्या क़दीम क्या जदीद सबके रंग में रंग जायेगा शायर।
ज़ीनत ए जहां की अप्सरा वो थी कभी ,
ख़ाक ए फर्श पर मिलकर यहीं पर अब सोयी पड़ी है ।
कल तलक था जो अर्श पर शान ए महफ़िल यहां ,
आज फर्श पर बिखरा पड़ा है उसका कारोबार ए जहां ।
परी हो हूर हो या कोई अप्सरा ,
अर्श हो खुल्द हो ख़ाक ए ज़मीन ही है सबका बाकी जहां ।
जलते सेहराओं में अरमानो की नमी रहती है ,
एक मसर्रत की तलाश में बस उम्रें तबाह होती हैं ।
चमन से गुंचा ए गुल नदारद हैं गुलों से रंग ओ बू ,
मौसम ए हिज्र का असर है या फ़िराक ए यार का क़हर है ये ।
बारूद के ढेर पर बैठकर ये ज़ौक़ ए आतिशा हम भी रखते हैं ,
फ़िराक ए क़ाफ़िर ही सही दोस्तों पर नीयत साफ़ हम भी रखते हैं ।
दिल को तलब है दीदा ए यार हो इस क़दर ,
श्याम स्याह रात में सुर्ख आफताब हो जिस क़दर ।
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