तेरी नज़रों के बावस्ता आज रात चली love shayari,
तेरी नज़रों के बावस्ता आज रात चली ,
ग़ुल खिले फिर बाग़ ए बहारों में तेरी बात चली ।
कब्ज़े में उसके दिल की मसर्रतें तमाम रात ,
नादान पड़ी सेज़ के कोने बदल रही ।
हर दौर बस नफ़रत ए दौर रहा ,
इश्क़ ए हक़ीक़ी का ज़ोर डायरी के पन्नो में हर ओर रहा ।
अब इस दौर में खिलौनों से खेलने की ज़िद ,
शहर के किस कोने में मीना बाजार लगाएं ।
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इस गुल ए गुलज़ार मुखड़े पर ना जाओ सोणियो ,
बिना दाढ़ी मूछ के भी इश्क़ में राँझा फ़क़ीर होते हैं ।
सरहदों की राह जोड़ते उम्रें गुज़र गयी ,
कुछ तार दिल से दिल को अनछुए से छू गए ।
कभी तुम उसका भी तो ख्याल करो ,
जो तुम्हारे ख्यालों में डूबा रहता है ।
चंद साँसों की मोहताज़ लगती है ,
जान मेरी , तेरी गुनहगार लगती है ।
रुई की पोनी से मज़हब मत पूछो ,
चरागों में तिल तिल के जलना ही जिसकी किस्मत है ।
रात सोने नहीं देती सरहदों पर गूँजती गोली ,
कभी लोरी के संग माँओं की , कूकती थी कोयल की बोली ।
मुर्दों को तड़पने के लिए मुर्दा छोड़ देते हैं ,
हुश्न वाले ज़िन्दों के गिरेबानो की साँसे भी नाप लेते हैं ।
कोई तेरा मरा होगा कोई मेरा मरा होगा ,
सरहद पर सहादत के वास्ते सहीदों को कफ़न भी मिला होगा ।
सिराओं और धमनियों के पार चलती हैं ,
सरहद में गोलियों के साथ धड़कने बेशुमार चलती हैं ।
धमक गयी फिर चमक गयी फिर , काली रात सुहानी सी ,
वो बदरा संग आँख मिचौली , रिमझिम फ़ुहार मतवारी सी ।
चले हैं रात के मुलाज़िम पलकों पर सफर करने को ,
जाने कब सेहर हो जाने कब बात बन जाए ।
हमारी तरह तुम भी बड़े ग़मख़्वार लगते हो ,
चले हो रात के कोहरे को पलकों से चाबुक मारते शायद ।
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