deep dark quotes about life रुस्वाई ज़माने की सिखा देती है हुनर ,

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deep dark quotes about life रुस्वाई ज़माने की सिखा देती है हुनर ,
deep dark quotes about life रुस्वाई ज़माने की सिखा देती है हुनर ,

deep dark quotes about life रुस्वाई ज़माने की सिखा देती है हुनर ,

रुस्वाई ज़माने की सिखा देती है हुनर ,

गोया निखर के जाता है कोई कोई बिखर के जाता है ।

 

ख़्याल ए मोहब्बत है गर सुखन की तरह ,

रूबरू ए इश्क़ फिर मिले मुक़म्मल ए ग़ज़ल बनकर ।

हम तवक़्क़ो नहीं करते ज़माने में किसी सै की कभी ,

साथ साया भी चले तो राह ए हक़ीक़ी तरह ॥

 

तहे दिल में छुपी हसरतों से खेलने की ज़ुर्रत ,

ज़रा सी चिंगारी को शोलों में बदल देती हैं ।

 

क्या लज़ीज़ियत है इश्क़ में ग़ालिब ,

सुरु करता है दिल जहां से किताब ए इश्क़ बार बार फिर वहीं से पढता है ।

 

बाद ए क़यामत के बदल जाए वो मोहब्बत ही नहीं ,

खता ए इश्क़ भी ये दिल बेसुमार करता है ।

 

दिखता है दिखता क्या महीन लिखता है ,

हंसी के ठहाकों में भी गुबार ए ग़म रिसता है ।

 

मैं अपने दिल ओ जान के साथ तमाम हसरतें भी दफ़न कर देता ,

गोया ये जो तमन्ना ए इश्क़ ए ख़ुलूस है चैन से मरने तो देता ।

 

दिल के साथ हसरतें भी दबी पड़ी थी कहीं कब्रों में ,

गोया मिजाज़ ए मौसम ने तमन्नाओं का रुख मोड़ दिया ।

 

अंदाज़ ए गुफ्तगू का अभी लहज़ा नया है ,

दौर ए मुफ्लिश से गुज़रेगे कभी तो मेरे दर पर भी आएंगे एक दिन ।

 

बुतों की परस्तिश में बुतनुमा हो गया है ज़माना सारा ,

मुर्दों के शहर में कोई आवाज़ न लगाओ यारों ।

 

आफ़त ए दौर से निकला हूँ तुझसे रुख़सती के बाद ,

तर्क ओ ताल्लुक़ ख़तम ही नहीं होता तुझसे लाख बेरुख़ी के बाद ।

 

हसरत नहीं है जीने मरने की ,

पत्थरों के शहर में मैं अपने अरमानो की कब्रें दफ़न करके आया हूँ ।

मासूम शायरी हिंदी, 

चंद लम्हात की मुलाक़ात फिर जीना दूभर ,

बस इसी बात का मलाल तमाम उम्र रहा ।

 

मोहब्बत न मिलती तो कोई बात नहीं ,

मिलके भी न मिलने का सवाल तमाम उम्र रहा ।

गुज़ार सकते थे हम ज़िन्दगी उनके बग़ैर भी ,

मगर मिलेगा किसी मोड़ पर कहीं फिर से बस इसी बात का इंतज़ार तमाम उम्र रहा ॥

 

मर के भी मौत मुक़म्मल नहीं मिलती ,

इश्क़ वालों का चारसू बस यही हाल रहा ।

 

वो समझते थे अलग होके नयी दुनिया बसायेंगे कहीं ,

क़ुर्ब में उनके खुद उनका नशेमन ज़ार ज़ार रहा ।

 

इश्क़ के लतीफ़ों में हमने ज़िन्दगी गुज़ार दी अपनी ,

तू जाने किस विशाल ए यार की जुस्तजू में बेकरार रहा ।

 

जब शायरी करते हो तो महज़ लफ़्ज़ों की अदायगी करते हो ,

कुछ हाल ए दिल सुनाओ तो क़ुर्ब ए उल्फत से ताल्लुक़ात बयान हो ।

 

रश्म ए उल्फत में साथ निभा गए हम तो ,

रफ्ता रफ्ता तन्हाई में भी काट रहा था सफ़र ।

 

शायर दिल भी तन्हाई में क्या क्या तामीर कर रहा है ,

सन्नाटे के ख़ौफ़ में ग़ज़ल बेकाबू नब्ज़ की रफ़्तार को लफ़्ज़ों में तब्दील कर रहा है ।

 

दिल के अल्फ़ाज़ समझने को जज़्बा ए जूनून का होना भी लाज़िम था ,

हर्फों में बयान है दास्तान सारी फिर भी न समझ पाया क्या इस कदर से बदगुमां था ।

 

अब तो मौत के बाद ही ख़ुमार उतरे शराब का ,

साक़ी पिलाये जाम और उनकी आँखों के नाम हो ।

 

अल्फ़ाज़ समझने को जज़्बा ए जूनून का कुछ तो था दरमियाँ दोनों के ,

क्या खाली लम्हात भी कसकता है ।

 

मैं उसी लम्स अब भी सिमटा हूँ ,

छू कर जज़्बात दिल के जब से कोई गुज़रा है ।

 

शब् भर गुज़र गयी फिर ख़्यालों की पतवार चलाते ,

सेहर होते ही समझ आया कस्ती वहीँ साहिल वहीँ मझधार वहीँ है ।

 

आरज़ू ए दिल बस यही चाँद तारों में हो मोहब्बत के कहकहे अब तो ,

कभी तू उतरे ज़मीन पर मुझसे मिलने को कभी हम फलक पर जाकर छेड़े ख़ुलूस ए इश्क़ के फलसफे अब तो ।

 

ज़मीन पर टिकते नहीं कदम आसमान पर दास्तान ए मोहब्बत सुनायी जाए ,

चाँद तारों पर हो ग़ज़ल चाँदनी रात पर बज़्म सजाई जाए ।

 

मचल गयी है रात बाद ए तसब्वुर के उनके ,

अब से पहले तख़य्युल में भी कभी इतनी हसीन न लगती थी ।

 

पिघल रहा है आईना भी पानी बनकर ,

बाद दीदा ए यार के खुद बा खुद शर्मसार हुआ हो जैसे ।

 

इश्क़ ए जानिब जब समझा ताल्लुक़ात मेरे ,

ज़िक्र आने से पहले किश्तियाँ डुबो गया साहिल ।

 

जाने किस उहापोह में गुज़र रही है ज़िन्दगी ,

मौत क़ामिल है जानकर भी कुछ हासिल करने की ज़िद में अड़ी है ज़िन्दगी ।

 

सब रंग मंच के कलाकार बस क़िरदार निभाना है ,

ये रश्म उल्फत भी है एक सनसनीखेज हंगामा इसका भी अपना ही फ़साना है ।

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हुश्न के चेहरे पे ग़ज़ल सजती है ,

इश्क़ की तासीर आफ़ताबी है ।

 

लाख सजते हैं सुख़नवर घनेरी ज़ुल्फ़ों तले ,

मंज़िल ए मक़सूद के पहले तो क़यामत ही नज़र आती है ।

 

इश्क़ अज़ाब ए हवादिस है कोई बात नहीं ,

हर बार जुर्माना ए मोहब्बत हम ज़िन्दगी से अदा कर देंगे ।

 

जो समझते हैं क़ामिल ए मोहब्बत पर वारिसाना हक़ अपने आपका ,

कोई बतलाये उन्हें उस जागीर ए मोहब्बत की नक़ल ही सही हमारे पास है ।

 

जिस्म जलता नहीं रूहें बस सिसकती हैं ,

ग़म ए बारिश में बहा सबकुछ ख्वाहिशें आज भी मचलती हैं ।

 

दरिया में डूबने का भी मज़ा होगा ,

मिजाज़ ए लुत्फी ही सैलाब में कस्तियाँ लेकर के उतरता होगा ।

 

कुछ साद ओ ग़म से आबाद मिली है मुझको ,

ज़िन्दगी वीरानियों में गुमसुदगी के सिवा कुछ भी नहीं ।

 

कुछ इस तरह से ज़िन्दगी की बसर होती है आजकल ,

खुद के जिस्म में साँसे मकीन हो जिस कदर ।

 

हर बाद ए मरहला ये हंसी आती है ,

फ़ितरतन ज़िन्दगी हर रोज़ नए रंग फिर दिखाती है ।

हमें भी फ़ितूर ए आशिक़ी है हँस कर जी लेंगे ,

तेरा ये ज़ौक़ ए हुनर तू हर रोज़ कहाँ से लाती है ॥

 

पेश ए मतला है नोश फरमाइए ,

ज़िन्दगी की ग़ज़ल भी बिना रंज ओ ग़म के हसीन कहाँ लगती है ।

 

वो जब ग़ैर की बाहों में महफूज़ मिल गया ,

मोहब्बत थी इस क़दर की इसमें ही मेरे दिल को सुकून मिल गया ।

 

सारे मरहला ए मसले तो बस दिल से ही निकलते थे ,

फिर यूँ हुआ की जिस्म को ज़िंदा रखा और दिल की धड़कनो को बस मार दिया ।

 

हमारा इश्क़ इश्क़ नहीं ज़राफ़त ही सही ,

दिल्लगी के लिए ही वो हमारे दिल की मुख़ालफ़त तो करता ।

 

तू लफ़्ज़ों में रवां रवां है इस क़दर ,

मेरी शायरी मेरा नशा है जिस क़दर ।

 

तमाम उम्र की दास्तान बनकर रह गयी है ज़फ़ा तेरी ,

जो ज़िक्र ए उल्फ़त में नाम तेरा ले लूँ तो होगी तौहीन ए मोहब्बत मेरी ।

 

ग़ैर तो ग़ैर थे उनसे शिकवा क्या है ,

मुझसे अब पूछता है मेरा लहू मेरे मुतअल्लिक़ रिश्ता क्या है ।

 

किसी ने ज़िक्र उसका छेड़ा होगा ,

फलक पे रात चाँद तारों की बरात लेकर के यूँ ही टिकती नहीं ।

 

सारा शहर ग़मज़दा सा है ,

क्या सबका महबूब पत्थर का खुदा सा है ।

 

बाद बारिश के बहार है हरसू ,

एक हमारा अंजुमन सावन जला गया ।

 

फुर्सत से खुदा ने इब्न ए इंसान तामीर किया ,

फिर दिल दिया दर्द भरे दिल में मोहब्बत को तस्कीन किया ।

 

था गुरूर जिसको मलबे से ज़्यादा वो नहीं था ,

मिटटी के ढेर में डाब के रह गया वो गुलबदन ।

 

आशिक़ी बदनाम अपनी नाम तेरा तमाम होता गया ,

हम जीते रहे गुमनाम अंधेरों में तुझे कौन सा मोहब्बत का हासिल ए मुक़ाम हो गया ।

 

हर रोज़ ईद जैसा हर रात दिवाली ,

बाद दीदा ए यार के हर दुआ क़बूल हमारी ।

 

सर ए शाम बेनक़ाब वो छत पर निकल गया ,

देख कर जमाल ए यार शब् ए माहताब जल गया ।

 

रोशनी पनाह मांग रही हैं ऐसे ,

रूबरू ए हुश्न आफ़ताब जल के ख़ाक हो गया हो जैसे ।

 

किसने अरमान सजा रखे थे ख़ूबरू ए बहार ए मंज़र ,

दिल ए नादान तो बस दीदा ए यार का शौक़ीन रहा ।

 

सेहर की धुंध से निकलता सूरज ,

रात सरमा के किरणों की आगोश में सिमट रही हो जैसे ।

 

जब भी आज़माना हो ज़माने में कौन अपना ओ बेगाना है ,

बस किसी हसीं चेहरे को सरीक ए ज़िन्दगी कर लो ।

 

तन्हाइयों में अक्सर महसूस करता हूँ कुछ लम्स हैं मेरे अपनों के ,

खो जाता हूँ उनको तलाश करने में मगर ज़र्रे ज़र्रे में कहीं नाम ओ निशान नहीं पाता हूँ ।

 

जुमलेबाज़ी को भी तरक़ीब समझते थे कभी ,

अब मसला ए ज़िन्दगी पर भी नुक़्स निकाल देते हैं ।

 

बहुत शोर करती हैं खामोशियाँ भी आजकल ,

सोये पड़े लम्हों को भी चैन से रहने नहीं देती ।

 

जीते जी हसीन हासिल न थी ज़िन्दगी ,

बाद मरने के जन्नत मिले मुझको सबने दुआ मांगी ।

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एक अल्फ़ाज़ ए बयानी मांगता है ,

ये इश्क़ है साहेब कौन कहता है की ये बस जवानी मांगता है ।

 

ज़िन्दगी एक क़शमक़श में गुज़र रही है ,

अब तो इंतज़ार भी नहीं उसका फिर भी दिल को ऐतबार है शायद वो आ रही है।

 

ख़ुमार ए इश्क़ है या तब्दीलियत ए मौसम का असर ,

जिस्म हरारत से जल रहा है मिजाज़ खुशनुमा सा है ।

 

देख के उसको मेरे दिल को तस्कीन हुआ ,

बिछड़ के मुझसे उसको सुकून ओ राहत है ।

 

सियासत में जिस्मों से कमाने का चलन ,

मुर्दा लाशों के भी फिर दाम निकल आते हैं ।

pics taken by google ,