शाम से फ़िज़ाओं में बग़ावत सी है hindi shayari ,
शाम से फ़िज़ाओं में बग़ावत सी है ,
यूँ सरे राह बेनक़ाब तो निकला न करो ।
आस्मां को फ़लक़ पर चाँद तारे सजाने की ज़िद ,
जहां के बाद एक और जहां हम भी बसा लेंगे ।
यूँ तो उनके मुस्कुराने से हर शाम बहक जाती है ,
फिर भी सज़दे को निकल आता हूँ मैं शाकी तेरे मैखाने में ।
झरोखों में अब भी रौशनी सी है ,
तब्दीलियत ए मुश्त की दो चार रज़ा बाकी है ।
इन निगाहों के दरूं लाख़ आफ़ताब ए हुश्न सही ,
तेरी जुगनू ए ख्याली में ही बस रात गुज़र जाती है ।
बुझते हुए चरागों की अमन ए फ़िराक को देखो ,
गोया खुद बुझ के भी एक नया सवेरा दिखा जाते हैं ।
आफ़ताब ए रोशन की तमन्ना को देखो ,
गोया खुद जल रहा है दिल की आग को राख़ राख़ कर के ।
नवाबी शौक़ और बुढापे में जेल की हवा ,
गोया उफ़ ये कमर में दर्द भगववान किसी को ये दिन न दिखाए तौबा ।
बड़ा सुकून है मेहबूब के आगोश के जैसा मौत जिसे कहते हैं ,
ज़िन्दगी तो बस तन्हाईयाँ रुस्वाइयाँ है और कुछ भी नहीं ।
आँखों के समंदर में ख़्वाबों की जो कश्ती है ,
खेता हूँ रात भर मैं सेहर फिर भी होती नहीं है ।
रात कूचे में काटी थी दिन गलियों में बसर हो ,
किसी का नाम न हो बदनाम हमसे क़ब्र ही चाहे हश्र हो ।
चलो इसी बहाने मोहब्बत का कहीं सुबा तो मिला ,
कहीं कुछ फूल मिले कहीं यादों का गुलिस्तान खिला ।
मुद्दतों बाद सामने थे हमदम ,
ज़बान गुमसुम लब खामोश बस स्तब्ध से खड़े थे हम ।
हर मोहब्बत की हर बार मोहब्बत की कसम खाते गए ,
जिस मेहबूब के दर से गुज़रे अपने मेहबूब का नाम गुनगुनाते गए।
रंगरोगन किये सुनहरी शाम चली ,
ओढ़े धानी चूनर थामे रात का दामन आँख में ओश की बूँदें करती सूरज को सलाम चलीं ।
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