जान की बाज़ी लगानी है तो ज़ौक़ ए इश्क़ फरमाइए romantic shayari,
जान की बाज़ी लगानी है तो ज़ौक़ ए इश्क़ फरमाइए ,
चूम के यार का दर ख़ुद अपना सर कलम करवाइये ।
मसर्रत दहलीज़ तक आती नहीं ,
बस उसने ही नहीं दामन ग़म ए बारिश में भिगोया है ।
नक़ाब हटते हैं चिलमन के परे आहिस्ता ,
ताल्लुक़ ए मसर्रत ख़त्म होती नहीं नज़रों के बावस्ता ।
आदम का आदमीयत से वास्ता नहीं है ,
लोग कहते हैं बुतक़दों में अब ख़ुदा नहीं मिलता ।
दरमियाँ चिलमन जो ढाँप रखे हैं ,
शब् ए माहताब में चाँद छुपा रखे हैं ।
जुम्मा रात की नेक नीयत की क़सम ,
माहताब संग चांदनी बहक जाए ख़ुदा ख़ैर करे ।
दर्द ए रूमानी का अपना ही मज़ा है बस ,
वो कहते हैं इश्क़ का काढ़ा कड़वा है तो हम भी ज़रूर चखेंगे ।
तेरी नज़रों में मेरे अक़्स नज़र आते नहीं ,
तेरे चेहरे की रंगत से अब नज़ारे बदलते हैं ।
रिश्ता खून का ही हो ज़रूरी तो नहीं ,
कुछ तार जिगर के साँसों से तेज़ चलते हैं ।
जल जाते हैं फ़क़त चराग मेरे साँझ ढले ,
सब्ज़ बागों में तेरे घनघोर अँधेरा न हो ।
क्योंकर ज़माने ने उठाये कहकशां फिर से ,
साज़ ए दिल तार तरन्नुम के कोई छेड़ गया ।
बिस्तर में पड़े हैं टूटी हड्डियाँ हाँथ में बत्तीसी लटकाये ,
गोया चिकनी फर्श पर खूब दौड़े हैं मियाँ मुँह उठाये ।
शरबती चश्म में अब मिठास नहीं ,
ग़ैर नज़रों के खार नमक लगते हैं ।
ट्रैन की पटरियों पर सरपट दौड़ती भागती ज़िन्दगी ,
रात भर सोता नहीं है शहर बस आँख मिचौली खेलता है ।
ख्यालों से भी आगे की परवाज़ भरते हैं ,
आसमानी परिंदों के पर सिक्कों से नहीं तौले जाते ।
जिगर में ज़माने भर का तूफ़ान लिए फ़िरते हो ,
नाज़ुक से उम्र ए दौर में इश्क़ ए जानिब जाने क्या क्या ख़्यालात लिए फ़िरते हो ।
खामोश रातों में यार वालों की इश्क़ ए बेइंतेहाई ,
गोया बेज़बानी में चाँद तारों से बातें सेहर होने तक ।
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