गोया एक लम्स वफ़ा का मिलता Alfaaz shayari,

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गोया एक लम्स वफ़ा का मिलता Alfaaz shayari,
गोया एक लम्स वफ़ा का मिलता Alfaaz shayari,

गोया एक लम्स वफ़ा का मिलता Alfaaz shayari,

गोया एक लम्स वफ़ा का मिलता ,

जलते बुझते सरारों से बर्फ बनाने का हुनर भी दिखता ।

 

दूसरों के दामन पर सबकी नज़र रहती है ,

अपने हाँथों की कालिख को वो हुनर कहते हैं ।

 

सामरिक शक्तियों में वो क़हर होती है,

आने वाली नश्लें तक तबाह करती हैं ।

 

तुम्हारी किश्मत में जश्न ए रानाईयां ही सही ,

हम ग़म फुरक़त की महफिलों में जश्न मना लेंगे ।

bazm sham e ghazal,

ख्वाब ज़र्द होकर के मेरी आँखों में ,

सब्ज़ बाग़ों के चारागार खार बनके जिगर में चुभते हैं ।

 

बात उनसे कुछ ऐसे लहज़े में हुयी ,

जो किसी ने न देखी न भाली न सुनी

 

रात भर सोती नहीं आँखों के नीचे धब्बा है ,

हाल ए दिल की बेचैनियां छुपाने का हुनर भी तुमको आता है ।

 

देखे हैं तूफ़ानो में उड़ते बाज़ों के हुनर ,

बड़ी ख़ामोशी से थामे रखते हैं तूफ़ानो में जिगर

 

जिश्म लाख पंगु सही ,

हमने देखे हैं ज़माने में हुनर दिल से जंगबाजों के ।

 

सुर्ख लबों की खुस्की कहती है ,

जलते जलते दिलों के अरमान बुझे बुझे क्यों हैं ।

 

हटाओ ज़ुल्फ़ रुख़सार से दो लबों के ज़ाम होने दो ,

कौन जीता है सेहर तक अभी तो शाम होने दो ।

 

मुसल्सल तेरी यादों के जुगनू जिगर में जलते हैं,

मैं हर रात घनघोर अँधेरे में अँधेरा ओढ़ के सोता हूँ ।

 

पिले बैठे हैं मुर्दों पर मुर्दे,

शहर ए आदम के समशानो में हर शख्स आदमख़ोर लगता है ।

 

क़ातिलों के शहर में हर रोज़ क़त्ल ए आम होता है .

क़त्ल करता है हुश्न और कम्बख़्त इश्क़ बदनाम होता है ।

 

यक़ीन आता नहीं तेरी क़ाफ़िर निगाहों पर ,

तेरी क़ातिल निगाहें शहरी सियाशत् सीख रखी है ।

 

एक लफ्ज़ में सिमटा था फ़साना शहर में,

आया जो रूबरू तो मायने बदल गए ।

 

जागी रही नज़र तो सेहर दूर तक न थी,

जैसे हुयी खत्म सवेरा बाहों में सिमट गया

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हर बात लहज़े में बयाँ होती नहीं ,

कुछ हुश्न ओ इश्क़ के हुनर अंधेरों में चलते हैं ।

pix taken by google