गोया एक लम्स वफ़ा का मिलता Alfaaz shayari,
गोया एक लम्स वफ़ा का मिलता ,
जलते बुझते सरारों से बर्फ बनाने का हुनर भी दिखता ।
दूसरों के दामन पर सबकी नज़र रहती है ,
अपने हाँथों की कालिख को वो हुनर कहते हैं ।
सामरिक शक्तियों में वो क़हर होती है,
आने वाली नश्लें तक तबाह करती हैं ।
तुम्हारी किश्मत में जश्न ए रानाईयां ही सही ,
हम ग़म ए फुरक़त की महफिलों में जश्न मना लेंगे ।
ख्वाब ज़र्द होकर के मेरी आँखों में ,
सब्ज़ बाग़ों के चारागार खार बनके जिगर में चुभते हैं ।
बात उनसे कुछ ऐसे लहज़े में हुयी ,
जो किसी ने न देखी न भाली न सुनी ।
रात भर सोती नहीं आँखों के नीचे धब्बा है ,
हाल ए दिल की बेचैनियां छुपाने का हुनर भी तुमको आता है ।
देखे हैं तूफ़ानो में उड़ते बाज़ों के हुनर ,
बड़ी ख़ामोशी से थामे रखते हैं तूफ़ानो में जिगर ।
जिश्म लाख पंगु सही ,
हमने देखे हैं ज़माने में हुनर दिल से जंगबाजों के ।
सुर्ख लबों की खुस्की कहती है ,
जलते जलते दिलों के अरमान बुझे बुझे क्यों हैं ।
हटाओ ज़ुल्फ़ रुख़सार से दो लबों के ज़ाम होने दो ,
कौन जीता है सेहर तक अभी तो शाम होने दो ।
मुसल्सल तेरी यादों के जुगनू जिगर में जलते हैं,
मैं हर रात घनघोर अँधेरे में अँधेरा ओढ़ के सोता हूँ ।
पिले बैठे हैं मुर्दों पर मुर्दे,
शहर ए आदम के समशानो में हर शख्स आदमख़ोर लगता है ।
क़ातिलों के शहर में हर रोज़ क़त्ल ए आम होता है .
क़त्ल करता है हुश्न और कम्बख़्त इश्क़ बदनाम होता है ।
यक़ीन आता नहीं तेरी क़ाफ़िर निगाहों पर ,
तेरी क़ातिल निगाहें शहरी सियाशत् सीख रखी है ।
एक लफ्ज़ में सिमटा था फ़साना शहर में,
आया जो रूबरू तो मायने बदल गए ।
जागी रही नज़र तो सेहर दूर तक न थी,
जैसे हुयी खत्म सवेरा बाहों में सिमट गया ।
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हर बात लहज़े में बयाँ होती नहीं ,
कुछ हुश्न ओ इश्क़ के हुनर अंधेरों में चलते हैं ।
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