वर्क़ खोले हैं तो हाल ए दिल ही मुक़म्मल कर दें sad shayari ,
वर्क़ खोले हैं तो हाल ए दिल ही मुक़म्मल कर दें ,
कुछ सफ़हे किताबों के बेज़ा ज़ाया हैं ।
मुक़म्मल नहीं है तू भी मुक़म्मल नहीं हूँ मैं भी ,
बिन तेरे मेरे था मुक़म्मल जहान ये कल भी है अब भी ।
ज़िंदा लोगों को मुर्दा करके ,
सियासी मुर्दों की फ़िक्री में डूबे रहते हैं ।
पैरों की पाज़ेब को अलमीरा मुक़म्मल करके ,
वो मज़बूरी में गयी होगी जिस्म का सौदा करने ।
सियासियों को सत्ता मुक़म्मल करने के वास्ते ,
हमने देशद्रोहियों को देशभक्ति पर भाषण देते सुना है ।
आरोपों प्रत्यारोपों के बीच जब सरकार घिर जाए ,
जनहित न हो मुक़म्मल कैसे फ़रियादी फ़रियाद सुनाये i
हर बात सुख़नवर हो ज़रूरी तो नहीं ,
कुछ खार मुक़म्मल हो हर्ज़ा क्या है ।
कभी सूरत नहीं मिलती कभी सीरत नहीं मिलती ,
दिन रात बनाता हूँ तेरी तस्वीर मुक़म्मल नहीं बनती ।
तेरी तस्वीर बनाने की रही ताउम्र जद्दोज़हद ,
कभी रुख़ से नक़ाब सरके तो सूरत ए मुक़म्मल मिलें ।
दर बदर थी जो रात की तन्हाई में ,
फिर वही बात क्यों तर बतर मुक़म्मल मिली ग़म ए जुदाई में ।
लरज़ते हाँथों से पैमाना उठाया हमने ,
ज़बान तक आते आते मुक़म्मल बातों का लहज़ा बदल गया ।
फ़िज़ा कुछ सदा कुछ धड़कने कुछ का कुछ बताती हैं ,
की हाल ए दिल की मुक़म्मल चेहरे से बयानी नहीं होती ।
रगों में रवां रवां साँसों में मुक़म्मल सा तू है ,
हर मंज़र है धुआँ धुआँ दिल में इश्क़ ए हासिल की उम्मीदें क़ामिल क्यों हैं ।
ख़ुद की हिफाज़त के वास्ते ही सही ज़िंदा है तो ,
ज़िंदा होने का भी ज़माना सबूत माँगे हैं ।
तुमको सिद्दत समझ आती नहीं हमको ज़िल्लत समझ आती नहीं ,
तुमको इज़्ज़त से मिल रहे हैं तो इश्क़ के सगूफे क़बूल तो कर लो ।
चाँद तारों को लड़ियों में पिरो लाया हूँ ,
शब् ए माहताब अरमानों की तस्बीह बना लाया हूँ ।
सियासी चुनावी अमलों में मज़हबों की धज्जियाँ उड़ा देते हैं ,
उसके बाद खुदाओं की तस्बीह बीनते नहीं बनती ।
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