Treasure of ruins true thrill horror short story ,

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1949
Treasure of ruins true thrill horror short story ,
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खण्डहर की एक कोठरी जिसमे एक बूढी औरत अपने दो मासूम बच्चों के साथ रहती थी , उसे मकान मालिक ने वो

कोठरी मुफ्त में दे रखी थी ताकि उसकी मिल्कियत की देखभाल होती रहे , रात का दूसरा प्रहर, सारे खण्डहर में इस तरह

से प्रतीत होता था जैसे ज़मीन के अंदर बुल्डोज़र दौड़ रहे हों , तब बूढी अगसिया के बच्चे आकर डर के मारे उससे लिपट

जाते और पूछते अम्मा ये क्या हो रहा है , जवाब में अगसिया बोलती कुछ नहीं , सो जाओ और इसी खौफ में रात गुज़र

जाती , शहर के बीचों बीच १०० फ़ीट चौड़ा और लगभग २०० लम्बा चौड़ा एक प्लाट जिस पर बना है लपटा वालो का घर

जो वाक़ई में चौबे खानदान की एक ऐसी विवादास्पत संपत्ति का एक छोटा सा हिस्सा है , जिसे न कोई लेना चाहता है न

ही बेचना चाहता है , लपटा में उनके पास लगभग ५०० एकड़ की ज़मीन आज भी है , परिवार इतना संपन्न है की उन्होंने

अपनी बहुत सी संपत्ति लोगों को दान में दे रखी है , इसके पहले हमने एक कहानी

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में ज़िक्र किया था , तो आइये अब आते हैं कहानी के प्रमुख किरदार पे चौबे खानदान के दो भाइयों में पहले वाले के चार

लड़के हैं , देवेंद्र , महेंद्र , नागेंद्र ,राजेंद्र और दूसरे वाले के दो लड़के हैं रमेश और सुरेश , वैसे चौबे खानदान में हर एक

व्यक्ति पढ़ा लिखा और अच्छे सरकारी पदों में कार्यरत था , बस सुरेश ही था जो की सरकारी नौकरी में नहीं था और खेती

बाड़ी की देखभाल किया करता था , और भाइयों को तिकड़म पढ़ा पढ़ा के पैसे ऐंठता रहता था , महेंद्र ददऊ की दो बेटियां

हैं रन्नो और बिट्टो , रन्नो आयुर्वेदिक डॉक्टर है और बिट्टो एम्. बी. ए . कर रही थी ,

 

तो अब आते हैं कहानी पर , ८० का दसक महेंद्र ददऊ का ट्रांसफर जिला कॉलेज में हो गया था , अब हुआ यूँ की वो रहेंगे

कहाँ तो उन्होंने मन बनाया की शहर के बंद पड़े मकान में ही रहने की व्यवस्था की जाए , उन्होंने अपने रहने के हिसाब

से एक कमरे को साफ़ सुथरा करवा लिया था , अब चूंकि मकान बरसों से खाली पड़ा था , तो उसमे लाइट और पानी का

प्रबंध करना अनिवार्य था , अगसिया काकी तो यहां वहाँ से पानी लेकर गुज़र बसर कर लेती थी , खैर महेंद्र ददऊ ने नल

और लाइट का कनेक्सन भी ले लिए ,जिस कमरे में महेंद्र ददऊ का डेरा था उसकी छत जर्जर थी वो भी उन्होंने सुधरवा

ली थी , वो दिन भर तो बाहर ही रहते थे रात में ही आते थे , सोने के लिए घर में , ज़मीन के नीचे से आती गड़गड़ाहट

पर वो कभी ध्यान नहीं देते थे , कुछ दिन गुज़रे महेंद्र ददऊ को खाना बनाने में दिक्कत जाती थी , इन्ही सबके चलते वो

अपनी पत्नी को भी शहर ले आये थे ।

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दोपहर का वक़्त अगसिया काकी जो की किला के खालसा दाड़ी में काम करती है अभी किला से लौटी है और बच्चों के

लिए लिए खाना पका रही है ,

इधर दोपहर का वक़्त है महेंद्र ददऊ की पत्नी घर का काम निपटा कर आईने को सामने रखकर बालों में तेल कंघी करती

हुयी कोई गीत गुना रही थी की तभी उन्होंने देखा की आईने में एक औरत पहले से बाल फैलाये बैठी है और उनके साथ

साथ बाल संवार रही है , ये देख कर महेंद्र ददऊ की पत्नी चीख पड़ती है , और दौड़ती हुयी अगसिया काकी के पास

पहुँचती है और उन्हें सारी घटना बताती है , अगसिया काकी समझाती है बहू कभी अकेले मत रहा करो ये जगह सही नहीं

है , महेंद्र ददऊ की पत्नी ने कई बार उस घर में महसूस किया था की नहाते वक़्त कोई औरत उनके साथ नहा रही थी

और खाना बनाते समय भी उन्हें कई बार ऐसा महसूस हुआ की कोई उनके साथ खाना बना रहा है , मगर आज की घटना

इतना डरा दिया था की अब वो एक पल उस घर में नहीं रहना चाहती थी ,

 

शाम को जब महेंद्र ददऊ घर आये तो उनकी पत्नी ने सारी घटना उनको बताई , तब महेंद्र ने समझाया इतना बड़ा घर है

ये तुम्हारा वहम है, बस इतनी सी बात में तुम डर गयी आस पड़ोस में इतने लोग हैं अगसिया काकी है , तुम उनके पास

चली जाया करो , अकेले मत रहा करो , उधर महेंद्र ने अपने सबसे छोटे भाई सुरेश को बोल दिया था जब फ्री रहा करे

शहर वाले घर में आ जाया करे , एक दिन दोपहर को सुरेश आ धमका , महेंद्र ददऊ की पत्नी अकेले थी घर पर जाते ही

पाय लागूं भौजी करते हुए सीधा चरणों में दंडवत , महेंद्र की पत्नी को पता था की सुरेश बहुत चापलूस आदमी है पैसो के

लिए किसी भी हद तक गिर सकता है , वो पूछती है क्या बात है सुरेश बोलो आज कितना पैसा चाहिए , सुरेश बोला कुछ

नहीं भौजी बस एक सौ का पत्ता दे दो और भैया से न बतइयो , और भौजी का तुम्हे पता है रात में जो फर्श के नीचे गडर

गडर की आवाज़ होये करथी न कछु नहीं खजाना दबो है हमारे पूर्वजों का ,

 

तो महेंद्र ददऊ की पत्नी कहती कुछ काम धाम करो छोट भैया , ज़मीन के अंदर का वैसे भी पुराना धन माया बन जाता है

, पूरे चौबे टोला में जिसके यहां भी खुदाई हुयी है सारा धन मिटटी का हो गाओ है । इस बात पर सुरेश मुँह बना के चला

जाता खैर दिन गुज़रे महेंद्र ददऊ का ट्रांसफर हो गया वो अपना ताम झाम समेटे और एक दिन चलते बने अब सुरेश का

रास्ता क्लियर हो चुका था वो अक्सर रात में आता अब तो लाइट पानी की भी दिक़्क़त नहीं थी , रात भर खण्डहर की

फर्श को खोदता आखिर एक दिन ऐसा भी आया की जब उसे लगा की धन उसे मिल जायेगा , ज़मीन में लगभग १० फ़ीट

गहरा गड्ढा खोद चुका था , और जैसे ही उसकी कुदाली की नोक धातु के बर्तन से टकराई सामने दो विशाल सांप प्रकट

हए और सुरेश वहीँ चारों खाने चित हो गया , सुबह के तकरीबन १० बज चुके थे आज सुरेश दिखाई नहीं दिया मोहल्ले

वालों को लगा सुरेश कहीं मर तो नहीं गया , सबने दरवाज़ा तोडा अंदर गए सुरेश दस फ़ीट नीचे गड्ढे में बेहोश था ,

उसका चेहरा फूल कर मटके जितना हो चुका था , उसे हस्पताल ले जाया गया , और किसी तरह सुरेश ठीक हुआ अब

उसने कान पकड़ा नहीं खोदेगा खजाना और गाँव भाग गया ,

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गाँव जाकर सुरेश ने सारे परिवार ने ये बात बतायी सबने सुरेश का खूब मज़ाक उड़ाया , जो भी मिलता वो यही कहता की

का है सुरेश भाई चलें खज़ाना खोदने , सुरेश इस बात पर शर्म से पानी पानी हो जाता , देवेंद्र की बेटियां गाँव आई थी ये

बात बिट्टो और रन्नो तक पहुंची , बिट्टो रन्नो भोपाल की पढ़ी लिखी थी , वो भूत प्रेत जैसी तकिया नूसी बातों पर

विश्वास नहीं करती थी , बिट्टो को एम्. बी. ए. करना था अब प्रॉब्लम ये थी की बिट्टो के साथ शहर वाले घर में रहेगा

कौन , रन्नो उसके साथ रहने के लिए तैयार हो गयी दोनों शहर वाले घर में डेरा जमा लिए बस उन्हें डर इसी बात का था

की कहीं सुरेश काका की कही बात सच न निकल जाए , इसी के चलते वो रात भर सारे घर की लाइट्स ऑन करके सोती

थी , उन्हें भी खण्डहर में दो बड़े बड़े सांप दिखे थे , मगर उन्होंने कभी इस बात पर गौर नहीं किया । रन्नो और बिट्टो की

अब मोहल्ले में सहेलियां भी बन गयी थी ,

 

उन्ही सहेलियों में से एक थी अन्नू दीदी , नाग पंचमी का दिन था गली गली सपेरे सांप लिए बीन बजाते हुए घुमते नज़र

आते हैं , रन्नो और बिट्टो अपनी सहेलियों के साथ सांप देखने के लिए गली से गुज़र रहे सपेरे को रोक लेती हैं , सपेरे ने

सांप दिखाया और एक बहुत बड़ी सांप की केचुली भी दिखाई , अन्नू थोड़ा अंधविश्वासी थी उसने कहीं सुना था की सांप

की केचुली किताब में रखने से विद्या आती है , उसने सपेरे से बोला की सांप की केचुली मुझे देदो कितना लोगे सपेरे ने

बोला पैसे में नहीं दूँगा नयी साड़ी के बदले केचुली दे सकता हूँ , अन्नू नादान माँ की नयी साड़ी उठा के सपेरे को दे दी

,रन्नो और बिट्टो ने सपेरे को बताया की उनके खण्डहर में दो सांप रहते हैं क्या वो उन्हें पकड़ सकता है , सपेरा सांप के

पीछे पीछे बीन बजाता बागता रहा , सांप दिखे ज़रूर मगर उनकी भयानक फुंकार के आगे सपेरा एक पल भी टिक नहीं

सका और दुम दबा के भाग गया । जब माँ को पता चला की अन्नू ने नयी साड़ी केचुली के बदले सपेरे को दे दी है तो

अन्नू की जमकर पिटाई हुयी ।

 

दिन गुज़रते गए रन्नो की शादी नेवी अफसर के साथ हो गयी , मगर कहते हैं की वो एक बार जहाज़ से गया तो आज

तक वापस नहीं आया , रन्नो आज भी उस खण्डहर में पागलों की तरह वो आएगा वो आएगा करती रही आती है , और

बिट्टो की शादी तो हुयी मगर वो रन्नो को अकेला छोड़कर कहीं जा नहीं पाती है । खण्डहर के सामने आज भी बबूल का

बहुत बड़ा झाड़ है जिसमे आकर के मोहल्ले भर की पतंगे अटक जाती हैं , मगर किसी लड़के की हिम्मत नहीं होती की

उस खण्डहर के आस पास भी भटक पाए ।

 

अगसिया काकी अब मर चुकी है उसके बच्चे अब बड़े हो गए हैं , कहीं और मकान बनवा के रह रहे हैं , और अपने बाल

बच्चे पाल रहे हैं , और लपटा वालों का खण्डहर आज भी वैसा ही है बस ईमारत का कुछ हिस्सा भूकंप के झटको की

वजह से गिर चुका है ।

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pix taken by google