इश्क़ को मज़बूरियाँ ले डूबती हैं ज़माने की romantic shayari ,

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इश्क़ को मज़बूरियाँ ले डूबती हैं ज़माने की romantic shayari ,
इश्क़ को मज़बूरियाँ ले डूबती हैं ज़माने की romantic shayari ,

इश्क़ को मज़बूरियाँ ले डूबती हैं ज़माने की romantic shayari ,

इश्क़ को मज़बूरियाँ ले डूबती हैं ज़माने की ,

गोया फ़ितरतन कोई बेवफ़ा नहीं होता

 

किसी को ग़म किसी को मौज ए रोज़गार मिला ,

किसी के मुफ्लिशी में कितनो ने कारोबार किया ।

 

सर इल्ज़ाम नहीं लेता मेरी बर्बाद ए मोहब्बत का ,

इश्क़ ए जूनून की ख़ातिर कितने हुए हैं बाग़ी कितने सूली पर चढ़ गए हैं ।

 

इश्क़ के गुनहगारों का न यूँ क़त्ल ए आम किया जाए ,

नाकाम ए मोहब्बत को न सरे आम बदनाम किया जाए ।

 

किसी एक के सर पर क्या इल्ज़ाम लगाना वाज़िब होगा ,

खता ए इश्क़ दोनों ने किया था ,

एक तरफ़ा की बेवफाई कहीं मुमकिन नहीं होती

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दाग़ कितने हैं मेरे दामन पर ,

सर इल्ज़ाम किसी एक के कैसे रखता ।

 

ज़माने भर के बेरोज़गारों के पास काम नहीं ,

फितूर ए इश्क़ के सर पर देना कोई इल्ज़ाम नहीं ।

 

दम घुटता है महफ़िल ए रानाई में ,

भोर का तारा खुले आस्मां का कोना तलाश करता है

 

ये ज़ौक़ ए मैकशी बस नज़रों से पूरी नहीं होती ,

गोया मैक़दे में बैठकर पैमाने की नुख़्ताचीनी किया नहीं करते

 

हर दास्तान ए लैला मजनू का यही अंजाम होता है ,

शहर के बीच मज़ारें बनती है और क़फ़न का सलाम मिलता है

 

कभी मिले तो मिलेंगे फिर महफिलों में रोशन ए चरागों की तरह ,

हम मुशाफ़िर हैं अंधेरों के ख़ाक़सारों की तरह ।

 

पत्थरों की सड़क को ताकते पथरा गयी होगी ,

पहले खूब बरसी अँखियाँ अब कुम्हला गयी होगी ।

 

किसी शायर की नब्ज़ थाम कर चलती राहें ,

कहीं धूप कभी छाँव फिर एक पड़ाव की राहें ।

 

शब् ए फुरक़त है जाम लुढ़का दिये जो राहों में ,

कभी सोचा है किसी की जान ए वफ़ा भी गुज़रेगी इसी राहों से।

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उजड़े हुए बाग़ से क्या दास्तान ए हिज्र पूँछें ,

इस दिल पर जो गुज़री है वो ज़र्द पत्तों ने सुनी है ।

pix taken by google